चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात

गैरसैंण। बचपन से ही हम सब एक कहावत सुनते आये हैं कि चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात.  ये कहावत प्रत्यक्ष रूप से सरकारी कामकाज के मामले में देखने को भी मिल जाएगी ऐसा शायद ही किसी ने सोचा होगा।

हाल ही के दिनों में ये कहावत सत्य साबित हुई है उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों के सपनों की और प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में कुछ यू कह लीजिए की पहली बार गैरसैंण के साथ ही पहाड़ की जनता ने पहली बार इस कथन को सत्य साबित होते हुए नहीं देखा है क्योंकि हर बार या हर साल ये घटना पहाड़ की जनता साथ के साथ होती है।

क्योंकि प्रदेश सरकार विधानसभा सत्र चलाने के लिए देहरादून की शानोशौकत और आराम भरी अपनी दिनचर्या को छोड़ देहरादून से कोसों दूर पहाड़ों की हसीन वादियो में प्रकृति के आंचल में  पूरे सरकारी अमले के साथ पहाड़ तो चढ़ती है। लेकिन कुछ ही दिनों में सरकारी अफसरों और मंत्रियों का दम घुटने लगता है।

ठीक कुछ इसी तरह का पुराना इतिहास एक बार फिर दोहराया गया गैरसैंण में. वो गैरसैंण जो अब गैर तो नहीं है पर अपने आप को ठगा महसूस जरूर कर रहा है। वो गैरसैंण जो राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी तो जरूर है लेकिन यहां से ग्रीष्मकाल में कभी सरकार चली ही नही। असल बात तो ये है कि पहाड़ के विकास का दम भरने वाली इन सरकारों के नेताओं और विधायकों की कोठियां ही देहरादून के बढ़ते हुए ईन्फास्टक्चर में चार चांद लगाने का काम करती है

अब बात करते है इस साल 13 मार्च से 18 मार्च तक गैरसैंण से थोड़ी दूरी पर स्थित भराड़ीसैंण के पहाड़ों और प्रकृति की गोद में बने हुए उत्तराखंड विधानसभा परिसर भरारी सैण में प्रदेश के सबसे युवा आर हैंडसम मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी केे  नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार ने लगभग दो साल के लम्बे इंतजार के बाद यहां बजट सत्र चलाने का निर्णय लिया। सरकार ने तो यहां सत्र चलाने और वीआईपी और वीवीआईपी यो की सुरक्षा के लिए दिवालीखाल से लेकर विस तक की सड़क को छावनी में ही तब्दील कर दिया।

अब बात आई इन अफसर और नेताओं के भोजन की व्यवस्था कि तो उसके लिए भी सरकार ने महिला सशक्तिकरण की बात करते हुए इन नवाब सहाबा के लिए उत्तराखंडी पारंपरिक परिधानों केा पहन कर और अनेक प्रकार के पहाड़ी व्यंजनों को बनाने के नाम पर ही सही लेकिन सरकार,परवाडी लंगटाई, पजयाणा आदि क्षेत्रो कि इन सीधी साधी महिलाओं ने सरकार द्वारा दिये गये निमंत्रण को स्वीकार किया और अपने मवेशियों और अपने घर की व्यवस्थाओं को छोड पहुंचेगी दिन रात इनके भोजन के प्रबंध में लगी रही लेकिन सत्र के खत्म होते होते इन महिलाओं के हाथ भी कुछ लगा तो वह लगी बस निरासा।

अब न जाने कब सरकार का ध्यान खिंचेगा इन पहाड़ों की ओर आने जाने अब कब नजर आयेगे हूटर बजाते हुए और एक के पीछे एक लम्बी कतारो में चलती हुई सरकारी गाडिया और प्रदेशभर के विधायक और मंत्री।

कुल मिलाकर हम कह सकते है कि दाे दिन की छुटटी पहाडो मे मना कर पहाड़ की भोली भाली जनता को झूठे सपने दिखाकर और पहाडो केा उसी के बुरे हाल पर छोडकर मंत्री और अफसर फिर लौट आय है षहरो कि और अब विरान रह गया है उत्तराखंड विधानसभा परिसर भरारीसैण।

न जाने देवभूमि में कब खत्म होगा पहाडी जनता के ढगने का सिलसिला और कब दुरुस्त होगी पहाड़ की व्यवस्था। लेकिन जनता पांच साल में एक बार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए अपने मत का प्रयोग करते हुए पूरे मन से सरकार का ऐसा चुनाव करती है जैसे ये नेता पहाड़ के कितने बड़े हितैषी होंगे

बेरहाल अब तो सिर्फ उम्मीद ही करते है कि आने वाले सालों से इस प्रकार का छलावा पहाड़ की जनता और गैरसैंण के साथ न हो।

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