फिर नोट की चोट, 2000 में खोट !

देहरादून ,देवभूमि उत्तराखंड में सरकार द्वारा 2000 रुपये के नोट को बंद किए जाने के फैसले पर सियासत शुरू हो गई है। एक तरफ जहां भाजपा इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए इसे देशहित में बता रही है। तो दूसरी ओर विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार का ये फैसला आम आदमी की कमर तोड़ने वाला है। विपक्ष ने नोट बदलवाने के लिए आरबीआई द्वारा लगाई गई लिमिट को भी आम आदमी के खिलाफ बताया है। वहीं उत्तराखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट का तर्क है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास ऐसा चश्मा है जिससे वो देख रहे हैं। कि कुछ लोग ब्लैक मनी को जमा कर रहे हैं इसको देखते हुए प्रधानमंत्री ने यह फैसला लिया है। आज इसी मुद्दे पर करेंगे चर्चा पहले रिपोर्ट देखिए
वीओ-1-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 8 नवंबर 2016 के नोटबंदी के ऐलान के बाद एक बार फिर सरकार ने नोटबंदी का फैसला लिया है….हांलाकि इस बार सिर्फ 2000 रुपए के नोट को ही सरकार बंद करने जा रही है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 2000 रुपये के नोट को वापस लेने का फैसला लिया है. हालांकि ये वैध मुद्रा बना रहेगा. भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को सलाह दी है कि वे तत्काल प्रभाव से 2000 रुपये के नोट जारी करना बंद कर दें. आरबीआई ने बताया कि 30 सितंबर तक 2000 रुपए का नोट वैध मुद्रा में बना रहेंगा. यानि कि जिनके पास इस समय 2000 रुपये के नोट्स हैं, उन्हें बैंक से एक्सचेंज करना होगा….आरबीआई के इस फैसले के बाद बैंकों में नोट बदलवाने के लिए लोगों की भीड़ देखने को मिल रही है। आम आदमी की सरकार के फैसले पर मिलीजुली राय आ रही है
वहीं राज्य में 2000 के नोट बंद किए जाने के फैसले पर सियासत भी शुरू हो गई है। विपक्षी दलों ने सरकार के इस फैसले को आम आदमी की कमर तोड़ने वाला बताया है। विपक्ष ने नोट बदलवाने के लिए आरबीआई द्वारा लगाई गई लिमिट को भी आम आदमी के खिलाफ बताया है। जबकि राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस फैसले को राष्ट्रहित में बता रहे हैं। वहीं उत्तराखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट का तर्क है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास ऐसा चश्मा है जिससे वो देख रहे हैं। कि कुछ लोग ब्लैक मनी को जमा कर रहे हैं इसको देखते हुए प्रधानमंत्री ने यह फैसला लिया है।
कुल मिलाकर देश के साथ ही उत्तराखंड में 2000 रुपए के नोट बंद करने पर सियासत गरमा गई है। एक तरफ जहां भाजपा के नेता इस फैसले को सराहनीय बताते हुए इसे राष्ट्रहित में बता रहे हैं। तो दूसरी ओर विपक्ष इस फैसले को आम आदमी के खिलाफ बता रहा है। सवाल ये है कि क्या 2016 में प्रधानमंत्री का नोटबंदी का फैसला गलत था…..आखिर नोटबंदी से देश और राज्य को क्या फायदा हुआ…..आखिर क्यों सरकार को अपने ही फैसले वापस लेने पड़ रहे हैं… क्या माना जाए कि नोटबंदी का फैसला भी जल्दबाजी में लिया हुआ फैसला था…..आखिर भाजपा के नेता 2016 में भी सरकार के फैसले को देशहित में बता रहे थे और आज 2023 में भी सराहना कर रहे हैं

About Post Author