मध्यप्रदेश : विश्व का पहला स्फटिक शिवलिंग का भव्य मंदिर, दर्शन करने से होती हर मनोकमना पूरी

रिपोर्ट- राजकिशोर पाठक

मध्य प्रदेश। एक मंदिर ऐसा भी है जहाँ के दर्शन मात्र से हो जाती है सभी मनोकामना पूर्ण , क्योंकि यहाँ बिराजे है विश्व की सबसे कीमती मणी के सबसे बड़े स्फटिक शिवलिंग के रूप में, जहाँ हर दिन लगा रहता है श्रद्धालुओं का तांता ! दूर दूर से यहाँ तक की देश विदेश से भी श्रद्धालू यहाँ पहुँच कर टेकते है मथ्था ,छह एकड़ के भूभाग में फैले इस मंदिर को गुरु रत्नेश्वर महादेव मंदिर के रूप ने जाना जाता है , कहते है इस मंदिर में बिराजे स्फटिक मणि के शिवलिंग का प्रभाव सम्पूर्ण विश्व में होता है, हर साल सावन के पवित्र माह में पूण्य सलिला माँ बेन गंगा के उद्गम स्थल मुंडारा से शिव भक्त कांवड़ में जल लाकर इस मंदिर में चढ़ाते है, और अपनी मनोकामनाओ की पूर्ति होने पर भगवान शंकर का अभिषेक एवं पूजन किया जाता हैं ।

दरअसल आपको बता दें कि भारत से आने वाले श्रद्धालुओं को मंदिर तक पहुंचने के लिए सिवनी जिले के राष्टीय राज मार्ग क्रमांक 44से जबलपुर एवं नागपुर के मध्य में स्थित सिवनी से 15 की मि उत्तर की ओर पुण्यसलिला माँ बैन गंगा नदी के तट पर बसे ,इस छोटे से ग्राम दिघोरी में विश्व की सबसे विशालतम स्फटिक शिवलिंग स्थापित है, इस विशाल मंदिर बिराजमान इस स्फटिक मणि के शिव लिंग को गुरु रत्नेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है ,कहा जाता है कि द्विय पीठाधीश्वर जगतगुरु महाराज स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज की जन्मस्थली हैं ,जिस जगह स्वामी जी का जन्म स्थान है वही गर्व ग्रह की स्थापना की गई है ,दिघोरी ग्राम में रहने वाले ग्रामवासियो ने जनसहयोग और दिघोरी में एक दर्जन से अधिक परिवार द्वारा स्वेच्छा से अपने पैतृक घरो की भूमि दान में दे दी , लगभग 6 एकड़ के भूभाग में फैले इस गुरु रत्नेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण 15 फरवरी सन 2002 (माघ शुक्ल तृतीया संवत 2058 को हुआ था, इसमें विराजित विशाल स्फटिक शिवलिंग को पूना के महंत भयामदास उदासी ने शकराचार्य जी को अपनी जन्म स्थली स्थापीत करने के लिए दिये थे, और इस विशाल स्फटिक शिवलिंग की स्थापना के बाद ग्राम दिघोरी को गुरुधाम के रूप से जाना जाता है ,मान्यता है कि इस मंदिर में बिराजे विश्व के सबसे बडे स्फटिक शिवलिंग के रूप में भगवान शंकर के दर्शन मात्र से ही भक्तो की सभी मनोकामनाएं  पूरी होती हैं। मनोकामना की पूर्ति के लिए कभी मिट्टी तो कभी रेत के तो कभी धातु के शिवलिंग बना कर उनकी पूजा-अर्चना की जाती आ रही है। जैसे राज्य प्राप्ति के लिए शिवलिंग, लक्ष्मी प्राप्ति के लिए पारद के शिवलिंग की पूजा की जाती है, लेकिन सभी मनोकामनाएं की पूर्ति के लिए स्फ़टिक शिवलिंग का पूजन किया जाता है, स्फटिक अपनी स्वछता पारदर्शिता ओज और शीलता के लिए जाना जाता है, इसलिए इसे मणि माना जाता है, स्फटिक मणि की विषय मे ऐसी मान्यता है कि जिस स्थान पर स्थापित स्फटिक मणि शिवलिंग होती है, उस क्षेत्र तक अपना प्रभाव दिखता है जहाँ तक अन्य आकर में सबसे बड़ा स्फटिक शिवलिंग स्थापित नही होता इस दृष्टि से यह शिवलिंग का प्रभाव सम्पूर्ण विश्व मे होता है गुरुरत्नेश्वर महादेव मंदिर का महत्त्व कुछ इसी प्रकार पता चलता है कि यहां चारो शंकराचार्य के साथ साथ कांची कामकोठी पीठ के परम आचार्य सहित अनेकों महान तपस्वी ने भी इस मंदिर में दर्शन के लिए आते रहे हैं।

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6 एकड़ में बना हुआ है विशाल मंदिर

जानकारी के लिए बता दें कि लगभग 6 एकड़ के परिसर में बने इस मंदिर का निर्माण भव्य और विशाल हैं ,जो उत्तर भारत मे दक्षिण भारतीय शैली में बना अदभुद मंदिर है, विश्व प्रसिद्ध तांजाबुर शैली में किया गया है, मंदिर में विश्व के सर्वाधिक विशालतम मणि शिवलिंग के अलावा काले पत्थर की एक विशाल चट्टान से बने 17 टन भारी नंदी की मूर्ति स्थापित है, मंदिर के छह प्रमुख भाग है गर्व ग्रह, कलगारम्म, यलन ,मोशाल,पांडियन और स्वर्ण कला मंदिर के कलगारम्म और यलन भाग में भगवान शंकर के 16 अवतारों की मूर्ति है जबकि मोशाल पण्डियन भाग में शिव जी के परिवार और ब्रम्हा ,विष्णु, महेश की आकर्षक मूर्ति है।

मंदिर के अंदर से सुनाई देती है ॐ  नाम की धुन

गुरुरत्नेश्वर महादेव मंदिर में तीन प्रमुख द्वार बनाये गए है जिसमें मुख्य द्वार पूर्व में है और अन्य 2 द्वार उत्तर और दक्षिण में है, मंदिर के गर्व ग्रह को शास्त्र समन्त तरीके से बनाया गया है ,जिसमे 3 द्वार है जिसमे प्रत्येक दरवाजे में डेढ़ क्यूंटील चांदी का भानुद्वार नक्काशीदार काम किया गया है फ्लोर लेविल से 70 फ़ीट ऊँचाई पर बनाये गए कड़ाई नुमा गुम्मद से ॐ की ध्वनि बार बार सुनाई देती है ,गर्व ग्रह के सामने ही विशाल काले पत्थर से बनी नंदी की मूर्ति स्थापित है।

सावन के माह में निकलती कांवड़ यात्रा

हर साल सावन महीने में कावड़ यात्रा प्रारंभ होती है। जिसमें कावड़िये मुंडारा से पुण्यसलिला माँ बेन गंगा का जल लाकर गुरु रत्नेश्वर महा देव् को अर्पित कर अपनी मनोकामनां पूरी होने पर शिवजी का बंदन करते हैं। श्रद्धलुओं के लिए यह मंदिर वर्ष भर खुला रहता है। मंदिर में प्रातः 5:30 बजे मंगला आरती ,उसके बाद श्रंगार आरती, भोग आरती इसके बात दोपहर ,कपूर आरती ,और रात के 9 बजे शयन आरती की जाती है दोहपर 12 बजे से लेकर 3 बजे तक मंदिर के कपाट बंद होते है।

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मंदिर जाने के लिए ये हैं रास्ते

गुरु रत्नेश्वर महादेव् के मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए जबलुपर और नागपुर रोड में दीघोरी गांव है यहाँ सड़क मार्ग एवं वायु मार्ग के द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है और अभी वर्तमान में नजदीकी रेलवे स्टेशन छिंदवाड़ा है उसके बाद छिंदवाड़ा से बस द्वारा दीघोरी पहुँचा जा सकता है जबलपुर नागपुर छिंदवाड़ा ,बालाघाट , मंडला से सड़क मार्ग से बस से दीघोरी पहुँचा जा सकता है यदि देश के अन्य कोनो से यदि श्रद्धालुओं को आना हो तो वे नजदीकी हवाई अड्डा जबलपुर है दीघोरी मात्र 96 किमी सिवनी बस स्टेड से दीघोरी रत्नेश्वर महा देव् मंदिर की दूरी मात्र महज 15 कमी सिवनी से ऑटो या टैक्सी से भी यहाँ जाने की सुविधा है बहार से आने वाले यात्रियों को ठहरना चाहते हो तो यहाँ हर स्तर की सुभिधा यहाँ मौजूद है।

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