उत्तराखंड की आस, भू कानून-मूल निवास 1950

उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट,  उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव से पहले राज्य के स्थानीय मुद्दों पर सियासत गरमा गई है। दअरसल राज्य में उत्तराखंड मूल निवास, भू कानून, नौकरियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दिए जाने समेत तमाम मुद्दों पर सियासत गरमा गई है। इसी कड़ी में 24 दिसंबर को भू कानून और मूल निवास के लिए विशाल स्वाभिमान महारैली” का आयोजन किया जा रहा है…इस महारैली को तमाम विपक्षी दलों, सामाजिक संगठनों के समर्थन के साथ ही लोकगायक नरेंद्र सिंह का भी साथ मिल गया है। नरेंद्र सिंह नेगी ने लोगों से इस मुद्दे को लेकर स्वाभिमान रैली में जुटने का प्रदेशवासियों से आह्वान किया है…जनता के इस आक्रोश ने सरकार की टेंशन बढ़ा दी है…हांलाकि सरकार ने बिना देर किए एक बड़ा फैसला मूल निवास के संबंध में लिया है। धामी सरकार के इस फैसले के बाद उत्तराखंड में अब मूल निवास प्रमाण पत्र धारकों को स्थायी निवास प्रमाण पत्र दिखाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। राज्य के मूल निवासियों व सामाजिक संगठनों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए सरकार ने यह आदेश जारी किया है। वहीं राज्य के क्षेत्रीय दल यूकेडी ने भी स्थानीय मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने की रणनीति तैयार की है। इसी के तहत यूकेडी की केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई जिसमें कई प्रस्तावों को पारित किया गया…यूकेडी के केंद्रीय अध्यक्ष पूरण सिंह कठैत ने कहा कि मूल निवास की व्यवस्था के साथ ही उत्तराखंड में सशक्त भू कानून भी तत्काल लागू किया जाए। ऐसा न किए जाने पर उक्रांद राज्य के लोगों को लामबंद कर मुहिम चलाएगा। साथ ही स्थायी राजधानी का मुद्दा हल करते हुए गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित किए जाने की भी मांग की है।

 

उत्तराखंड में मूल निवास का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। 24 दिसंबर को मूल निवास के लिए विशाल स्वाभिमान महारैली” का आयोजन किया जा रहा है…इस महारैली को तमाम विपक्षी दलों, सामाजिक संगठनों के समर्थन के साथ ही लोकगायक नरेंद्र सिंह का भी साथ मिल गया है। नरेंद्र सिंह नेगी ने लोगों से इस मुद्दे को लेकर स्वाभिमान रैली में जुटने का प्रदेशवासियों से आह्वान किया है…जनता के इस आक्रोश ने सरकार की टेंशन बढ़ा दी है…हांलाकि सरकार ने भी इस संबंध में एक बड़ा फैसला लिया है। धामी सरकार के इस फैसले के बाद उत्तराखंड में अब मूल निवास प्रमाण पत्र धारकों को स्थायी निवास प्रमाण पत्र दिखाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। राज्य के मूल निवासियों व सामाजिक संगठनों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए सरकार ने यह आदेश जारी किया है।

आपको बता दें कि उत्तराखंड में साल 2001 के बाद से मूल निवास प्रमाण पत्र की जगह पर स्थाई निवास प्रमाण पत्र बनना शुरू हुए थे। इसके बाद उत्तराखंड हाईकोर्ट की ओर से भी आदेश जारी हुए कि राज्य गठन के समय जो भी व्यक्ति उत्तराखंड में रहा, वो यहां का निवासी माना जाएगा। वहीं देश में मूल निवास प्रमाण पत्र साल 1950 से बनने शुरू हुए थे। बाद के वर्षों में सभी राज्यों में यही व्यवस्था दी गई कि 10 अगस्त, 1950 के समय जो व्यक्ति जिस राज्य में रहा, उसे वहीं का मूल निवासी माना गया। वहीं क्षेत्रीय दल यूकेडी समेत तमाम दलों ने भी सरकार से राज्य में इसी व्यवस्था को लागू करने की मांग की है। इसके साथ ही क्षेत्रीय दल यूकेडी ने भी स्थानीय मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने की रणनीति तैयार की है। इसी के तहत यूकेडी की केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई जिसमें कई प्रस्तावों को पारित किया गया…जिसमें मूल निवास की व्यवस्था के साथ ही उत्तराखंड में सशक्त भू कानून भी तत्काल लागू किये जाने की मांग की है।

कुल मिलाकर राज्य के स्थानीय मुद्दों पर सियासत एक बार फिर गरमा गई है। राज्य में उत्तराखंड मूल निवास, भू कानून, नौकरियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दिए जाने समेत तमाम मुद्दों पर सियासत गरमा गई है। हांलाकि धामी सरकार ने अपने फैसले से इस आक्रोश को थामने की कोशिश तो जरूर की है लेकिन तमाम संगठन सरकार के इस फैसले पर सवाल खड़े करते हुए आंदोलन को जारी रखने की बात कह रहे हैं।

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