Women Day Special: महिलाओं और मानवता की पक्षकार वृंदा ग्रोवर की कहानी

महिला दिवस स्पेशल, न्याय हर किसी को मिलना चाहिए- केवल विशेषाधिकार प्राप्त शीर्ष पर आसीन भारतीयों को ही नहीं बल्कि उनको भी जो पिछड़े और तनावपूर्ण क्षेत्रों में हैं, अन्यायपूर्ण ढंग से प्रताड़ित किये जा रहे हैं, जेलों में बंद हैं या जिन्हें मौत की सज़ा सुनाई गयी है, और उनको भी जो लचर व्यवस्था का शिकार हुए हैं.. ये मानना है देश की जानी-मानी  मानवाधिकार की वकील वृंदा ग्रोवर का है.

 

सिख विरोधी दंगों को लेकर चर्चा में आईं वृंदा ग्रोवर दिल्ली हाई कोर्ट में वकालत कर रही हैं. उन्होंने मानवाधिकारों के हनन के खिलाफ और महिलाओं को समान अधिकार दिलाने के लिए लम्बी और प्रभावशाली लड़ाई लड़ी है। वृंदा घरेलू व यौन हिंसा से प्रताड़ित महिलाओं एवं बच्चों , यौन हिंसा से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों, साम्प्रदायिक नरसंहार के शिकार एवं पीड़ितों के हक में अपनी आवाज़ उठाती रही हैं. बतौर मानवाधिकार कार्यकर्ता वृंदा ने जेल में यातना तथा भारत में मृत्युदंड के खिलाफ भी मुहिम चलाई है.

 

दिल्ली के सेंट स्टीफेन कॉलेज से इतिहास में स्नातक करने के बाद वृंदा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से विधि की डिग्री प्राप्त की. उसके बाद उन्होंने न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से विधि में परास्नातक किया.

 

वृंदा ने साल 2001 में संसद में हुए हमले के मुख्य आरोपी एस.ए.आर गिलानी को बतौर सलाहकार अपनी सेवाएं दी हैं. साथ ही 2013 में हुए मुज़फ्फरनगर दंगों में गैंगरेप पीड़िताओं को इन्साफ दिलाने के लिए भी कानूनी लड़ाई लड़ी है.

 

वृंदा ग्रोवर मल्टीपल एक्शन रिसर्च ग्रुप (MARG) में कार्यकारी निदेशक रह चुकी हैं. वे सेंटर फॉर सोशल जस्टिस की ट्रस्टी हैं और ग्रीन पीस की बोर्ड मेम्बर हैं. ग्रोवर यूनिवर्सल पीरियोडिक रिव्यू और यूएन स्पेशल रिपॉर्टर, यूएन विमेन इंडिया सिविल सोसायटी एडवाइजरी ग्रुप सहित संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार तंत्र के साथ सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं. वे साउथ एशियन्स फॉर ह्यूमन राइट्स (SAHR) की ब्यूरो मेम्बर हैं. साथ ही ‘द फण्ड फॉर ग्लोबल राइट्स’ के ग्लोबल बोर्ड में भी शामिल हैं.

 

वृंदा ग्रोवर ने कई प्रख्यात मामलों जैसे सोनी सोरी बलात्कार मामला, 1984 के सिख विरोधी दंगे , 1987 का पुलिस किलिंग मामला, 2004 इशरत जहाँ केस और 2008 में कंधमाल में हुए ईसाई विरोधी दंगों के पीड़ितों के हक़ में कानूनी लड़ाइयां लड़ी हैं. साथ ही आपराधिक क़ानून संशोधन 2013, पॉस्को एक्ट 2012 और यातना रोकथाम विधेयक 2010 का प्रारूप तैयार करने में भी ग्रोवर ने प्रभावी भूमिका अदा की है.

 

साल 2013 में टाइम मैगजीन ने वृंदा का नाम दुनिया के 100 प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में शामिल किया था. वृंदा ने अपने कई शोध कार्यों और लेखों में मानवाधिकार हनन के सम्बन्ध में राज्य से दंड मुक्ति, महिलाओं की पराधीनता में क़ानून की भूमिका, सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा के दौरान आपराधिक न्याय प्रणाली की विफलता; ‘सुरक्षा’ कानूनों का मानव अधिकारों पर प्रभाव, अनाधिकृत श्रमिकों के अधिकार, विस्थापित लोगों की चुनौतियों आदि की पड़ताल की है. राजनीतिक और विधिक व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए वृंदा दृढ़ संकल्पित हैं. वे चाहती हैं कि सभी को न्याय व समानता मिले. हालांकि उनका ये लक्ष्य अभी दूर है लेकिन वे राजनेताओं को ये याद दिलाये रखना चाहती हैं कि इससे कम में काम चलने वाला नहीं है.

 

 

 

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