बदलता दौर, नए चेहरों मोहर !

उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों के लिए 19 अप्रैल को मतदान होना है। मतदान से पहले नामांकन की प्रक्रिया भी संपन्न हो गई है। भाजपा ने 400 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। जबकि कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक दल जनहित से जुड़े मुददों के सहारे चुनावी जीत का दावा कर रहे हैँ। वहीं उत्तराखंड की राजनीति में देखने को मिला कि राज्य के पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों के पास इस वक्त कोई काम नहीं है। दअरसल भाजपा ने पार्टी के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के टिकट काटे हैं। जिसके तहत पार्टी ने डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक और तीरथ सिंह रावत का टिकट काटकर संदेश साफ कर दिया है कि पार्टी में अब नए दौर की शुरुआत हो गई है। चुनावी कुरुक्षेत्र के योद्धा रहे इन दोनों दिग्गजों की भूमिका आज पार्टी ने बदल दी है। आपको बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक और तीरथ सिंह रावत को पार्टी ने आराम देकर उनकी जगह हरिद्वार सीट से पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत और पौड़ी सीट से अनिल बलूनी को उम्मीदवार बनाया है। मौजूदा समय में देखें तो भाजपा में इस समय छह पूर्व मुख्यमंत्री हैं और इनमें से पांच के पास संगठन का फिलहाल कोई बड़ा काम नहीं है। इसके तहत उम्रदराज मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी स्वास्थ्य कारणों से मुख्यधारा की राजनीति से काफी दूर हैं। पिछले कुछ वर्षों से उनकी कोई सक्रियता नहीं हैं। जबकि पूर्व राज्यपाल और पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी भी आराम पर हैं। वहीं पूर्व सीएम विजय बहुगुणा भी केवल पार्टी के कुछ प्रमुख कार्यक्रमों तक सीमित हैं। वहीं डॉ. निशंक और तीरथ सिंह रावत का अभी काफी राजनीतिक कॅरियर बचा हुआ हैलेकिन संगठन के भीतर वापसी करने के लिए उन्हें अब काफी पसीना बहाना होगा। वहीं उत्तराखंड कांग्रेस की बात करें तो बदलते दौर के साथ कांग्रेस में भी दूसरी पांत के नेताओं में विश्वास जाग रहा है। पार्टी ने इस बार फिर परिचित चेहरों की जगह उन चेहरो पर दांव लगाया है जिनमें पार्टी भविष्य की संभावनाएं देख रही है। इसके तहत गणेश गोदियाल, प्रकाश जोशी और वीरेंद्र रावत को पार्टी ने चुनावी मैदान में उतारा है। हांलाकि ये नए चेहरे तो हैं लेकिन उतने अनुभवि नहीं है।

 

उत्तराखंड में चुनावी मैदान सजा हुआ है। राज्य की पांच लोकसभा सीटों के लिए 19 अप्रैल को मतदान होना है। मतदान से पहले नामांकन की प्रक्रिया भी संपन्न हो गई है। भाजपा- कांग्रेस इस चुनावी दंगल में आमने सामने है वहीं भाजपा ने 400 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। जबकि कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक दल जनहित से जुड़े मुददों के सहारे चुनावी जीत का दावा कर रहे हैँ। वहीं चुनावी नतीजों से पहले उत्तराखंड की राजनीति में देखने को मिला कि राज्य के पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों के पास इस वक्त कोई काम नहीं है। दअरसल भाजपा ने पार्टी के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के टिकट काटे हैं। जिसके तहत पार्टी ने डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक और तीरथ सिंह रावत का टिकट काटकर संदेश साफ कर दिया है कि पार्टी में अब नए दौर की शुरुआत हो गई है।

 

आपको बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक और तीरथ सिंह रावत को पार्टी ने आराम देकर उनकी जगह हरिद्वार सीट से पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत और पौड़ी सीट से अनिल बलूनी को उम्मीदवार बनाया है। मौजूदा समय में देखें तो भाजपा में इस समय छह पूर्व मुख्यमंत्री हैं और इनमें से पांच के पास संगठन का फिलहाल कोई बड़ा काम नहीं है। इसके तहत उम्रदराज मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी स्वास्थ्य कारणों से मुख्यधारा की राजनीति से काफी दूर हैं। जबकि पूर्व राज्यपाल और पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी भी आराम पर हैं। वहीं पूर्व सीएम विजय बहुगुणा भी केवल पार्टी के कुछ प्रमुख कार्यक्रमों तक सीमित हैं। वहीं डॉ. निशंक और तीरथ सिंह रावत का अभी काफी राजनीतिक कॅरियर बचा हुआ हैलेकिन संगठन के भीतर वापसी करने के लिए उन्हें अब काफी पसीना बहाना होगा। जबकि उत्तराखंड कांग्रेस की बात करें तो बदलते दौर के साथ कांग्रेस में भी दूसरी पांत के नेताओं में विश्वास जाग रहा है। पार्टी ने इस बार फिर परिचित चेहरों की जगह उन चेहरो पर दांव लगाया है जिनमें पार्टी भविष्य की संभावनाएं देख रही है। इसके तहत गणेश गोदियाल, प्रकाश जोशी और वीरेंद्र रावत को पार्टी ने चुनावी मैदान में उतारा है। हांलाकि ये नए चेहरे तो हैं लेकिन उतने अनुभवि नहीं है।

 

 

कुल मिलाकर उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों के लिए 19 अप्रैल को मतदान होना है। वहीं राज्य की पांचों लोकसभा सीटों को जीतने के लिए सभी दलों ने पूरी ताकत लगा रखी है। वहीं बदलते दौर के साथ देखने को मिल रहा है कि भाजपा ने एकाएक अपने पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों को आराम करने के लिए घर बैठा दिया है। सवाल ये है कि क्या ये पांचों पूर्व मुख्यमंत्री किसी कार्य के लिए नहीं है। क्या कांग्रेस में बदलते दौर के साथ दूसरी पांत के नेताओं में भी विश्वास जाग रहा है। देखना होगा भाजपा-कांग्रेस को नए समीकरण का क्या कुछ लाभ देखने को मिल रहा है

 

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