देवभूमि मांगे, भू-कानून-मूल निवास !

उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट , देवभूमि उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव से पहले धामी सरकार की टेंशन तमाम राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने बढ़ा दी है। दअरसल 24 दिसंबर को देहरादून में भू कानून और मूल निवास के लिए विशाल स्वाभिमान महारैली” का आयोजन किया जा रहा है…इस महारैली को तमाम विपक्षी दलों, सामाजिक संगठनों के समर्थन के साथ ही लोकगायक नरेंद्र सिंह का भी साथ मिल गया है। कांग्रेस, यूकेडी, समेत तमाम विपक्षी दलों ने इस महारैली को सफल बनाने के लिए समर्थन का ऐलान कर दिया है। इसके अलावा राज्य के निवासी भी बड़ी संख्या में इस मुद्दे पर आंदोलन के लिए महारैली में आने वाले हैं…इस महारैली ने निश्चित ही सरकार की टेंशन बढ़ा दी है। हांलाकि सरकार का दावा है कि वो इस मुद्दे पर भी बेहद गंभीर है, और इसके लिए सरकार ने समिति गठित कर आगे की कार्रवाई शुरू कर दी है। बता दें कि धामी सरकार ने भू कानून के लिए कमेटी का गठन कर दिया है जबकि मूल निवास के लिए सरकार ने आदेश जारी किया है जिसमें उत्तराखंड में अब मूल निवास प्रमाण पत्र धारकों को स्थायी निवास प्रमाण पत्र दिखाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आपको बता दें कि धामी सरकार ने भू-कानून के लिए गठित समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए और रिपोर्ट के विस्तृत परीक्षण के लिए प्रारूप समिति गठित कर दी है। अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी को समिति का अध्यक्ष बनाया है। हांलाकि महारैली का आयोजन करने वाली मूल निवास एवं भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति ने सरकार पर मूल निवास और भू कानून के मुद्दे पर जनता को उलझाने का आरोप लगाया है। सवाल ये है कि क्या धामी सरकार भू कानून और मूल निवास के मुद्दे पर निर्णायक फैसला लेगी या फिर समिति बनाकर सरकार अपनी जिम्मेदारी को पूरा मान लेगी…

उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव से पहले राज्य के स्थानीय मुद्दों पर सियासत गरमा गई है। दअरसल राज्य में मूल निवास और भू कानून के मुद्दे पर 24 दिसंबर को देहरादून में विशाल स्वाभिमान महारैली” का आयोजन किया जा रहा है…इस महारैली को तमाम विपक्षी दलों, सामाजिक संगठनों के समर्थन के साथ ही लोकगायक नरेंद्र सिंह का भी साथ मिल गया है। नरेंद्र सिंह नेगी ने लोगों से इस मुद्दे को लेकर स्वाभिमान रैली में जुटने का प्रदेशवासियों से आह्वान किया है…जनता के इस आक्रोश ने सरकार की टेंशन बढ़ा दी है…हांलाकि सरकार ने बिना देर किए भू कानून के लिए कमेटी का गठन कर दिया है जबकि मूल निवास के लिए सरकार ने आदेश जारी किया है जिसमें उत्तराखंड में अब मूल निवास प्रमाण पत्र धारकों को स्थायी निवास प्रमाण पत्र दिखाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आपको बता दें कि धामी सरकार ने भू-कानून के लिए गठित समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए और रिपोर्ट के विस्तृत परीक्षण के लिए प्रारूप समिति गठित कर दी है। अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी को समिति का अध्यक्ष बनाया है। वहीं भू कानून के लिए भी धामी सरकार ने कमेटी गठित कर ली है। हांलाकि महारैली का आयोजन करने वाली मूल निवास एवं भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति ने सरकार पर मूल निवास और भू कानून के मुद्दे पर जनता को उलझाने का आरोप लगाया है।

आपको बता दें कि उत्तराखंड में पिछले लंबे समय से सश्क्त भू कानून और मूल निवास का मुद्दा गरमाता जा रहा है। सरकार की ओर से पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में भू कानून के लिए एक कमेटी भी गठित की थी…इस गठित भू कानून समिति ने सितंबर 2022 में धामी सरकार को अपनी सिफारिशें सौंप दी थी। लेकिन शासन स्तर पर समिति की सिफारिशों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। वहीं उत्तराखंड में साल 2001 के बाद से मूल निवास प्रमाण पत्र की जगह पर स्थाई निवास प्रमाण पत्र बनना शुरू हुए थे। इसके बाद उत्तराखंड हाईकोर्ट की ओर से भी आदेश जारी हुए कि राज्य गठन के समय जो भी व्यक्ति उत्तराखंड में रहा, वो यहां का निवासी माना जाएगा। वहीं देश में मूल निवास प्रमाण पत्र साल 1950 से बनने शुरू हुए थे। बाद के वर्षों में सभी राज्यों में यही व्यवस्था दी गई कि 10 अगस्त, 1950 के समय जो व्यक्ति जिस राज्य में रहा, उसे वहीं का मूल निवासी माना गया। तमाम आंदोलनकारी सरकार से राज्य में इसी व्यवस्था को लागू करने की मांग की है।

कुल मिलाकर राज्य के स्थानीय मुद्दों पर सियासत एक बार फिर गरमा गई है। राज्य में उत्तराखंड मूल निवास, भू कानून, नौकरियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दिए जाने समेत तमाम मुद्दों पर सियासत गरमा गई है। हांलाकि धामी सरकार ने अपने फैसले से इस आक्रोश को थामने की कोशिश तो जरूर की है लेकिन तमाम संगठन सरकार के इस फैसले पर सवाल खड़े करते हुए आंदोलन को जारी रखने की बात कह रहे हैं। ऐसे में देखना होगा आखिर इस आंदोलन का क्या परिणाम निकलकर सामने आता है

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