समाजवादी नेता शरद यादव का निधन, कैसा रहा उनका राजनीतिक जीवन

के-न्यूज/स्पेशल डेस्क, भारतीय राजनीति और समाजवादी वर्ग की एक बुलंद आवाज गुरुवार, 12 जनवरी, 2023 को खामोश हो गई। जेडीयू के पूर्व वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद शरद यादव नहीं रहे। शरद का जन्म भले ही मध्य प्रदेश में हुआ हो लेकिन उनकी छात्र राजनीति में कॉलेज की पंचायत से लेकर लोक तंत्र की सबसे बड़ी अदालत संसद तक उनकी आवाज गूंजती रही। छात्र राजनीति से संसद तक का सफर तय करने वाले शरद यादव ने मध्य प्रदेश मूल का होते हुए भी अपने राजनीतिक जीवन की धुरी बिहार और उत्तर प्रदेश की सियासत से बनाई। शरद यादव ने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और फिर बिहार में अपना राजनीतिक दबदबा दिखाया और राष्ट्रीय राजनीति में अपना अलग स्थान बनाया था। मध्य प्रदेश की राजनीतिक जमीन छोड़ बिहार की सियासत में किंग मेकर बनने तक का शरद यादव का सफर काफी उतार चढ़ाव भरा रहा। लालू प्रसाद यादव शरद यादव को अपना बड़ा भाई मानते रहे। लालू को सीएम बनाने में उनकी अहम भूमिका रही। अपनी जन्मभूमि मध्य प्रदेश की राजनीतिक जमीन छोड़ शरद यादव ने बिहार की सियासत में किंग मेकर की भूमिका निभाई। क्या रहा शरद यादव का राजनीतिक सफर और किस तरह से दूसरे राज्य में अपने आपको स्थापित करने में उन्हों कितना संघर्ष किया देखिए खास रिपोर्ट में।

जब बिहार में बने किंग मेकर

बिहार की जमीन राजनीतिक रूप से उर्वर रही है। इस जमीन ने समाजवादी विचारों से जुड़े शरद यादव को भी पहचान दिलाई। मूलरूप से मध्य प्रदेश में जन्में शरद यादव खुद कभी किंग नहीं बने, लेकिन बिहार के संदर्भ में देखें तो वे किंग मेकर की भूमिका में कई बार रहे। राजनीतिक जोड़-तोड़ के माहिर खिलाड़ी शरद यादव को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक गुरु माना जाता है। लालू यादव का राजनीतिक करियर बनाने में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई। लालू-नीतीश के साथ उनकी दोस्ती और फिर दूरी के किस्से बिहार से लेकर लेकर केंद्र तक की राजनीतिक गलियारों में मशहूर रहे हैं। एक जुलाई 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के एक गांव बंदाई के किसान परिवार में जन्मे शरद यादव ने बिहार के अतिरिक्त मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय समाजवादी नेताओं में अग्रणी थे। शरद कालेज के दिनों से ही राजनीति में सक्रिय हो गए थे। वो समाजवादी राजनीति के पुरोधा नेताओं में शामिल रहे हैं। उन्होंने पांच दशक से भी ज्यादा समय तक बेबाक और सक्रिय रहकर केंद्रीय राजनीति की। खासकर बिहार की राजनीति में उनकी विशिष्ट पहचान थी और जनता के बीच लोकप्रिय भी थे। शरद मुलायम सिंह यादव और जॉर्ज फर्नांडीस जैसे समाजवादी नेताओं के समानांतर समाजवादी खेमे के एक प्रमुख नेता थे।

शरद यादव का राजनीतिक सफर

27 साल की उम्र में पहली बार संसद पहुंचे

1971 से हुई थी राजनीतिक जीवन की शुरुआत

वे कुल सात बार लोकसभा सांसद रहे

जबकि तीन बार राज्य सभा सदस्य चुने गए

1974 में एमपी की जबलपुर सीट से सांसद बने

इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा

उत्तर प्रदेश की बदायूं लोकसभा सीट से जीते

बिहार की मधेपुरा सीट से भी सांसद चुने गए

केंद्र सरकार में अहम मंत्रालय भी संभाले

जनता दल के संस्थापक सदस्यों में से एक थे

1989-1990 में केंद्रीय टेक्सटाइल और फूड प्रोसेसिंग मंत्री रहे

1995 में जनता दल का कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया

1996 में बिहार से वे पांचवीं बार लोकसभा सांसद बने

1997 में जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने

1998 में जॉर्ज फर्नांडीस के सहयोग से जदयू पार्टी बनाई

एनडीए के घटक दलों में शामिल होकर केंद्र में मंत्री बने

2004 में शरद यादव राज्यसभा भेज दिए गए

शरद यादव 2009 में सातवीं बार सांसद बने

2014 के लोकसभा चुनावों में उन्हें मधेपुरा से हार मिली

जीवन के अंतिम पड़ाव में घनिष्ठ सहयोगी से मनमुटाव हुआ

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मन-मुटाव हुआ

इसलिए, शरद यादव ने जेडीयू से नाता तोड़ लिया था

जबलपुर से चुना गया था पहली बार सांसद

1971 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान जबलपुर मध्यप्रदेश में शरद यादव छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। 70 के दशक में कांग्रेस विरोधी आंदोलन के दौरान उनके राजनीतिक करियर का उदय हुआ। वर्ष 1974 में शरद यादव का राजनीति कद तब बढ़ गया, जब उन्होंने चौधरी चरण सिंह की भारतीय लोक दल पार्टी की ओर से विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर मध्य प्रदेश के जबलपुर में लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस को मात दी थी। 1977 में उन्होंने दूसरी बार इस सीट से जीत दर्ज की। 1977 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुकाबला करने के लिए भारत के प्रमुख राजनैतिक दलों का विलय हुआ और एक नए दल जनता पार्टी का गठन किया गया। 1977 में कांग्रेस पार्टी को हराकर जनता पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाई। हालांकि, आंतरिक मतभेदों के कारण जनता पार्टी 1980 में टूट गई और चौधरी चरण सिंह उससे अलग हो गए। इसके बाद उन्होंने अलग पार्टी बनाई उसका नाम ‘लोकदल’ था। एक समय में नीतीश कुमार, बीजू पटनायक, शरद यादव और मुलायम सिंह यादव भी इसी लोक दल के नेता हुआ करते थे।

कई नेताओं से थे अच्छे सम्बन्ध

1980 में आम चुनाव में शरद यादव के हाथ से जबलपुर सीट निकल गई। इसके बाद मुलायम सिंह यादव के साथ उनके संबंध घनिष्ठ हो गए। मुलायम सिंह की मदद से शरद यादव की एंट्री उत्तर प्रदेश की राजनीति में हुई। 1986 में शरद यादव लोक दल के राज्यसभा सदस्य बने और फिर 1989 के लोकसभा चुनाव में यूपी के बदायूं सीट से सांसद बने। हालांकि, दोनों नेताओं की दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चली और जल्द ही शरद यादव ने उनसे भी दूरी बना ली। साल 1988 में शरद यादव ने वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल यानी जेडी नाम से नई पार्टी शुरू की। इसके बाद वीपी सिंह 1989-90 के बीत अल्प समय के लिए प्रधानमंत्री बने, तो शरद यादव कपड़ा और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के प्रमुख के तौर पर केंद्रीय मंत्री बने। इधर, शरद यादव के अनुयायी लालू यादव का कद बिहार की राजनीति में बढ़ रहा था। माना जाता है कि शरद यादव के प्रयासों से ही लालू प्रसाद बिहार की सत्ता के शीर्ष पर पहुंच पाए थे। कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद शरद ने पहले तो लालू को बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाने में आगे बढ़कर सहयोग किया, फिर 1990 में कांग्रेस के पराभव के बाद खंडित जनादेश के बीच लालू को मुख्यमंत्री बनाने के लिए भी फील्ड सजाई।

 

बिहार में लालू को बनाया मुख्यमंत्री

लालू ने शरद यादव के सहारे भाजपा के सहयोग से बिहार में सरकार बनाई। उस वक्त जनता दल में तीन खेमे थे। पहला खेमा के मुखिया तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह थे। दूसरा खेमा चंद्रशेखर का था और तीसरे खेमे को देवीलाल और शरद यादव मिलकर संभाल रहे थे। बिहार में देवीलाल के मुख्यमंत्री प्रत्याशी लालू थे। वीपी सिंह के रामसुंदर दास और चंद्रशेखर के रघुनाथ झा थे। देवीलाल के लेफ्टिनेंट के रूप में शरद यादव ने ही लालू को आगे बढ़ाया। हालांकि, लालू की मुश्किल तब बढ़ गई जब सात महीने बाद ही लालकृष्ण आडवाणी गिरफ्तार हो गए और लालू की सरकार को भाजपा से समर्थन वापस लेना पड़ा। उस वक्त भी शरद फिर संकट मोचक बनकर लालू के सामने आए और झामुमो और वामदलों के सहयोग से बिहार में लालू की सरकार बचाने की पहल की। आगे चलकर बिहार में समाजवादी राजनीति दो धाराओं में बंट गई। एक का नेतृत्व शरद यादव के हाथ रहा तो दूसरे धड़े का नेतृत्व लालू ने किया। इस दौरान शरद ने नीतीश कुमार और जार्ज फर्नांडिस को साथ लेकर कई अवसरों पर देश की राजनीति को गहरे रूप से प्रभावित किया। 1991 के लोकसभा चुनावों के दौरान लालू यादव ने शरद यादव को मधेपुरा से जनता दल के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा। बिहार और खासकर मधेपुरा ने उन्हें सिर आंखों पर बिठाया। यही वजह रही कि 1991 से 2019 तक हुए लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक चार बार वे मधेपुरा से जीतकर आए। सबसे रोचक चुनाव 1999 में हुआ। तब मधेपुरा में शरद यादव और लालू प्रसाद यादव आमने-सामने आ गए थे। दरअसल, 1996 में चारा घोटाला मामले में लालू प्रसाद यादव को सजा हो गई थी। इसके बाद उन्होंने राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी। लालू प्रसाद तब जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे। पार्टी में उनका विरोध भी हुआ था। अगले वर्ष पार्टी का चुनाव होना था। इस चुनाव में शरद यादव ने पार्टी के अध्यक्ष पद की दावेदारी की थी। लालू प्रसाद इससे सहमत नहीं थे, लेकिन तब जनता दल में रहे एचडी देवगौड़ा और रामविलास पासवान सहित कई नेताओं ने शरद यादव को अपना समर्थन दिया था। शरद पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव जीत गए। इसके बाद लालू प्रसाद यादव ने जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल बना लिया। ये वो बिंदू था, जिसने मित्र रहे दो-दो दिग्गजों को राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बना दिया था। 1999 के चुनाव में लालू यादव और शरद यादव के बीच सीधा मुकाबला था। तब यह नारा चल निकला था कि रोम पोप का और मधेपुरा गोप का। चुनाव में धांधली का आरोप लगाकर शरद यादव बीएन मंडल स्टेडियम में धरने पर भी बैठ गए थे। हालांकि, मतगणना पूरी हुई तो परिणामस्वरूप उनकी जीत हुई। लालू यादव को हार सामना करना पड़ा। अपनी जन्मभूमि मध्य प्रदेश की राजनीतिक जमीन छोड़ आखिर शरद यादव बिहार क्यों आए यह प्रश्न बार-बार उठता रहा।

डॉ. लोहिया के समाजवादी विचारों से प्रेरित

एक बार खुद शरद यादव ने कहा था कि मध्य प्रदेश के सामाजिक परिवेश में उनकी राजनीतिक यात्रा मुश्किल भरी होती, इसलिए जबलपुर छोड़कर उन्होंने उत्तर प्रदेश की राह पकड़ी और फिर वहां से बिहार का रुख किया। शरद यादव भारत के पहले ऐसे राजनेता माने जाते हैं जो तीन राज्यों मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार से लोकसभा सदस्य के तौर पर चुने गए थे। जब शरद यादव छात्र राजनीति में मशगूल थे तब देश में लोकनायक जय प्रकाश नारायण के लोकतंत्र वाद और डॉ. राम मनोहर लोहिया के समाजवाद की क्रांति की लहरें परवान चढ़ रही थीं। शरद यादव भी इनसे खासे प्रभावित हुए। डॉ. लोहिया के समाजवादी विचारों से प्रेरित होकर शरद ने अपने मुख्य राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। युवा नेता के तौर पर सक्रियता से कई आंदोलनों में भाग लिया और आपातकाल के दौरान मीसा बंदी बनकर जेल भी गए। केन्यूज इंडिया परिवार दिवंगत राजनेता शरद यादव को विनम्र श्रद्धांजलि देता है। प्रबुद्ध चौहान स्पेशल डेस्क केन्यूज इंडिया।

 

 

 

 

 

 

 

 

About Post Author