कल्याण सिंह- मंडल-कमंडल की राजनीति के “सुपर हीरो”

आज के समय में भारतीय राजनीति में मंडल और कमंडल की राजनीति तेज हो गई है और खासकर उत्तर प्रदेश में.. ऐसे में अगर बात पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की न की जाए. तो ना इंसाफी होगी. क्योंकि मंडल और कमंडल का जो कॉकटेल कल्याण सिंह में है. वो यूपी तो छोड़िये जनाब भारतीय राजनीति में किसी नेता के पास नहीं है. बात 90 के दशक की जाए जब राम मंदिर का मुद्दा ज़ोर पकड़ रहा था तब यूपी में दो घटनाक्रम चल रहे थे एक ओर जहां बीजेपी कमंडल की राजनीति कर रही थी वहीं दूसरी ओर बाकी पार्टियां पिछड़ों और दलित की राजनीति कर रहे थे. ऐसे में बीजेपी ने अपने ऐसे तुरुप के पत्ते का इस्तेमाल किया.. जिसमें मंडल भी था और कमंडल भी.. जिसने बीजेपी की नैया पार लगा दी.. आज भले ही कल्याण सिंह की सेहत ठीक नहीं है.. पिछले काफी समय से वह लखनऊ के पीजीआई में भर्ती हैं. लेकिन देखने वाली बात यह है कि जब कोई नेता अपनी उम्र के इस आखिरी पड़ाव में होता है. तब शायद ही उससे मिलने कोई बड़ा नेता यदा-कदा ही पहुंचता है.. उदाहरण के लिए आपको बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह जब बहुत ज्यादा बीमार हो गए थे.. तब उनसे मिलने शायद ही कोई बड़ा नेता पहुंचता हो.. और चंद्रशेखर सिंह के बारे में आपको बताने की ज़रुरत नहीं है.. उनकी एक बड़ी पहचान जन नेता और युवा नेता के रुप में थी.. लेकिन कल्याण सिंह उन नेताओं की सूची में नहीं आते हैं.. वह थोड़े अलग और ख़ास हैं..

सीएम की कुर्सी तक का सफर

उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम कल्याण सिंह को हम जन नेता ऐसे ही नहीं कह रहे हैं.. दरअसल अलीगढ़ के अतरौली से लेकर सीएम की कुर्सी तक का सफर इतना आसान नहीं था.. इसके लिए कल्याण सिंह ने कड़ा संघर्ष किया है.. ज़्यादातर नेता अपने बड़े-बड़े पदों के लिए जाने जाते हैं.. लेकिन कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद विध्वंस के बारे में जाना जाता है.. जिसके बाद उनकी पहचान और उनका कद सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि समूचे देश में बढ़ गया.. और उन्हे जननेता के रुप में जाना जाने लगा.. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भले ही कल्यान सिंह की सरकार गिर गई हो.. लेकिन जब वापस चुनाव हुए और बीजेपी सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री का चेहरा कल्यान सिंह ही बने

 

 

 

 

 

 

 

 

कल्यान सिंह एक सख्त तेवर वाले नेता

इसके अलावा भी कल्यान सिंह के कई सारे ऐसे किस्से हैं. जो यह बताते हैं कि कल्यान सिंह एक सख्त तेवर वाले नेता थे. जिन्होने जो सोच लिया वही करते थे.. फिर चाहे लाल कृष्ण आडवाणी हों या अटल बिहारी वाजपेई. कल्याण सिंह के फैसले पर रोक लगाना किसी के बस की बात नहीं थी.. और इन सबके पीछे सबसे बड़ा कारण यही था कि बाबरी विध्वंस के बाद जितना ज्यादा फायदा बीजेपी को राजनीति में मिला.. उससे ज़्यादा व्यक्तिगत तौर पर कल्याण सिंह को मिला.. जिनकी छवि हिंदूओं में एक हीरो वाली बन गई थी.. और साथ ही पिछड़ों का साथ… ऐसा कॉकटेल बीजेपी के पास तब था और न ही अब.. इसीलिए अगर कल्यान सिंह को हम सुपर कॉकटेल कह रहे हैं तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगा..

अपने सख्त तेवर और किसी की बात न मानना जिसकी वजह से आखिरकार कल्याण सिंह की बीजेपी से विदाई भी हो गई,  और कल्याण सिंह ने अपनी अलग पार्टी भी बना ली  और उन्होने 2012 के विधानसभा चुनाव में किस्मत अजमाई,  लेकिन कल्याण सिंह को कोई फायदा नहीं हुआ और पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका,  लेकिन बीजेपी अपने हीरो को भुला दे ऐसा हो नहीं सकता,  और फिर 2014 में केंद्र में बीजेपी के आने के बाद कल्याण सिंह को राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया.. क्योंकि बीजेपी यह बात अच्छे से जानती है कि आज भी करोड़ों हिंदू दिलों में कल्याण सिंह बसते हैं और जिस तरह से पार्टी के शीर्ष नेताओं का अस्पताल जाकर उनसे मिलने का सिलसिला जारी है वह किसी से छिपा नहीं है. चाहे वह रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हों या गृह मंत्री अमित शाह या फिर खुद सीएम योगी जो हर दूसरे दिन उनसे मिलने पहुंच जाते हैं और यह कहने से भी गुरेज़ नहीं होगा कि आगे अगर कोई भी केंद्र का बीजेपी का शीर्ष नेता अगर यूपी आता है तो उसे अपने दौरे में कल्याण सिंह को अस्पताल देखने जाना भी अपने कार्यक्रम में शामिल करना होगा.. कहा यह भी जा सकता है कि यूपी में 2022 का चुनाव नजदीक है और बीजेपी हर उस चीज़ का फायदा उठाना चाहती है.. जो उसकी 2022 में नैया पार करा सके..
शैलेंद्र चौहान टीवी जर्नलिस्ट

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