उत्तराखंड के इन तीन गांवों में आखिर क्यों होली मनाने से डरते हैं लोग

रुद्रप्रयाग। एक ओर जहां पूरे देश में होली की धूम है, वहीं रुद्रप्रयाग जिले के तीन गांव ऐसे हैं, जहां आज तक होली कभी नहीं मनाई गई। दो बार इन तीनों गांवों के लोगों ने होली मनाने का प्रयास किया, लेकिन होली मनाते ही गांवों में बीमारियां फैल गई और इंसानों के अलावा जानवर भी यहां अकाल मारे गये। अब ग्रामीणों ने होली मनाना छोड़ ही दिया है। लगभग तीन सौ से अधिक सालों से इन गांवों के ग्रामीणों ने होली नहीं मनाई है।


आज हम आपको रुद्रप्रयाग जनपद के विकासखण्ड अगस्त्यमुनि के तीन ऐसे गांवों की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसे सुनकर हर कोई आश्चर्यचकित होता है। क्वीली, कुरझण और जोंदला नाम के रुद्रप्रयाग जनपद के तीन गांव ऐसे हैं, जहां आज तक कभी होली नहीं मनाई गई। होली न मनाने के पीछे गांव के भूम्याल देवता और कुलदेवी का दोष मानते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि गांव के भूम्याल देवता भेलदेव हैं। जबकि कुल देवी मां नंदा और त्रिपुरासुंदरी हैं। अगर गांव में कोई होली मनाता है तो भूम्याल देवता और देवी दोष करते हैं। जिस कारण गांव के इंसानों और जानवरों में बीमारी फैल जाती है और लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। कई वर्षों पूर्व ग्रामीणों ने होली मनाने का प्रयास किया था, लेकिन तब गांव में हैजा नाम की बीमारी फैल गई थी और कई लोग मर गये थे। तब से ग्रामीणों ने होली मनाना ही छोड़ दिया है। होली के त्यौहार से इन तीन गांवों के ग्रामीणों का कोई मतलब नहीं रहता है। यह तीनों गांव आपस में मिले हुये हैं।


गांव के 35 वर्षीय युवा गणेश त्रिवेदी ने बताया कि आज तक उन्होंने कभी रंगों के त्यौहार होली को नहीं मनाया है। बुजुर्ग कहते हैं कि होली खेलने पर बीमारी आ जायेगी। अगर कोई होली मनाने का प्रयास करता भी है तो बुजुर्ग मना कर देते हैं।

एक और ग्रामीण किशन सिंह का कहना है कि क्वीली, कुरझण और जोंदला में होली नहीं मनाई जाती है। एक बार गांव में होली मनाई गई तो हैजा फैल गई थी। देवी-देवताओं के प्रकोप के कारण होली नहीं मनाते हैं। पूर्वजों की ओर से निभाई जा रही प्रथा आज भी विद्यमान है। ग्रामीणों के मन में आज भी डर बना हुआ है।

बुजुर्ग ग्रामीण दाताराम पुरोहित का कहना है कि गांवों में होली न मनाने के पीछे ईष्ट देवी का प्रकोप है। एक बार होली मनाई गई थी तो बीमारी पैदा हो गयी है। तब से इस बीमारी के डर के कारण होली नहीं मनाई जाती है।

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