किसी भी पूजा के अंत में आरती करना क्यों है जरूरी ? जानें महत्व और इसके उद्देश्य

KNEWS DESK- सनातन धर्म में पूजा-पाठ का विशेष महत्व है। हर पूजा के अनिवार्य हिस्से के रूप में आरती की जाती है, जिसमें दीपक को विशेष तरीके से घुमाया जाता है। आज हम आरती के महत्व, इसके उद्देश्य और इसे सही तरीके से करने की विधि पर विस्तार से चर्चा करेंगे|

आरती का अर्थ और महत्व

आरती शब्द संस्कृत के ‘आर्तिका’ से आया है, जिसका अर्थ है ‘अरिष्ट’, ‘विपत्ति’, ‘आपत्ति’, ‘कष्ट’ और ‘क्लेश’। शास्त्रों के अनुसार, आरती का मुख्य उद्देश्य भगवान से जुड़ी क्लेश और विपत्तियों को दूर करना है। पूजा के अंत में आरती की जाती है ताकि भगवान की उपस्थिति से भक्तों को आध्यात्मिक शांति और सुरक्षा मिल सके।

आरती के दो प्रमुख कारण

आरती के दो प्रमुख कारण शास्त्रों में बताए गए हैं:

भगवान के अंग-अंग को चमकाना: आरती के दौरान दीपक की ज्योति से भगवान के रूप को विशेष रूप से प्रकाशित किया जाता है। इस प्रक्रिया को ‘नीराजन’ कहा जाता है। इस माध्यम से भक्त भगवान के दिव्य रूप को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं और अपनी आत्मा को शांति प्राप्त कर सकते हैं।

नजर और अरिष्ट से सुरक्षा: आरती के दौरान भगवान को एकटक निहारना भक्तों को नजर से बचाने में सहायक होता है। दीपक की ज्योति के माध्यम से भक्त भगवान को दोषमुक्त मानते हैं, जिससे उनकी रक्षा होती है।

आरती के भाव

आरती को दो प्रकार के भाव में किया जाता है:

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दुख और विपत्तियों का नाश: आरती का यह भाव इस उद्देश्य से है कि भगवान भक्त के दुखों और विपत्तियों को दूर करें। श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने विभीषण के द्वारा भगवान श्रीराम से दुखों की मुक्ति की गुहार लगाते हुए आरती करने का वर्णन किया है।

भगवान के दर्शन का आनंद: दूसरा भाव भगवान के सौंदर्य और उनके नख-शिख के सुंदर दर्शन का है। इस भाव से आरती करने पर भक्त भगवान की दिव्यता का अनुभव करते हैं और उनके चरणों की पूजा के माध्यम से अपनी समर्पण भावना प्रकट करते हैं।

आरती का सही तरीका

आरती के सही तरीके के अनुसार, पूजा के दौरान दीपक को भगवान के चरणों से शुरू करके उनके नाभि और फिर मुख के समक्ष घुमाया जाता है। और नीचे लिखी विधि का पालन किया जाता है|

चरणों की आरती: सबसे पहले भगवान के चरणों के चारों ओर दीपक की आरती की जाती है।

नाभि की आरती: इसके बाद, भगवान के नाभि की दो बार आरती की जाती है।

मुख की आरती: अंत में, भगवान के मुख की सात बार आरती की जाती है।

आरती के दौरान शंख और घंटी बजाने का भी विशेष महत्व होता है, जिससे पूजा स्थल पर एक दिव्य ध्वनि उत्पन्न होती है और वातावरण में पवित्रता का संचार होता है।

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