जानिए दिल्ली स्टेट मेडलिस्ट राहुल की दर्दभरी कहानी

कानपुर- मोदी सरकार ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए आम बजट पेश किया जहाँ खेल बजट में 27 फीसदी की बढ़ोतरी की गई। और करीब खेल को 3,397.32 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया,ये सब सुनने में तो काफ़ी अच्छा लगता है| लेकिन जब आप 25 साल के एथलीट राहुल की कहानी सुनेंगे तो यह सब कुछ बेमानी सा लगेगा। राहुल नेशनल लेवल के लॉन्ग और मिडिल डिस्टेंस रनर हैं। लेकिन अभी वह दिल्ली की सर्द रातों में कोल्ड स्टोरेज में काम करने को मजबूर हैं।

तीन बार के दिल्ली स्टेट मेडलिस्ट राहुल ने सिर्फ 4 साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया था। इसके बाद वह नौकरी की चाह में दिल्ली आए और गुरुद्वारा बंगला साहेब में 8 महीने गुजारे। वह 14 साल की उम्र से पश्चिमी दिल्ली में रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक कोल्ड स्टोरेज से ट्रकों में दूध का पैकेट लोड करने का काम करते हैं।

2017 में अंडर-20 क्रॉस कंट्री नेशनल्स में ब्रॉन्ज जीतने वाले राहुल ने बताया,” कोल्ड स्टोरेज में काफी दिक्कत होती है। ऐसा लगता है कि एक खुले फ्रीजर में है। मेरे हाथ-पैर सुन्न हो जाते हैं, लेकिन मेरे पास कोई चारा नहीं है।” पांच फीट लंबे राहुल दूध के क्रैरट के पीछे छुप जाते हैं, जिन्हें वह बिजली की गति से एक ठेले से ट्रकों की ओर धकेलते हैं। स्टोरेज से ट्रक तक पहुंचने के बीच के समय में उन्हें ठंड से थोड़ी राहत मिलती हैं।

इस दौरान राहुल के घायल होने का काफी खतरा होता है। उन्होंने बताया कि , “अगर आपका एक सेकंड के लिए भी ध्यान भटकता है तो आप मेटल कार्ट से टकरा सकते हैं। एक बार मैं फिसल गया और भरी हुई कार्ट मेरे ऊपर गिर गया और मैं बेहोश हो गया था।” वह उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर के पास शिकारपुर से अपने बड़े भाई के साथ दिल्ली आए, जो अब एक फूड ऐप कंपनी में डिलीवरी एजेंट के रूप में काम करते हैं।

13 साल की उम्र तक राहुल अपने भाई के साथ रहे। इसके बाद उनके भाई ने शादी के बाद कह दिया कि वह उन्हें अपने साथ नहीं रख सकता। उन्होंने कहा, “मेरे भाई की शादी हो चुकी थी और मैं उसके लिए बोझ था। उसने मुझसे कहा कि वह मुझे ज्यादा समय तक सपोर्ट नहीं कर सकता।” भाई के लगातार ताने सुनकर राहुल को रहा नहीं गया। वह अपना स्कूल बैग और बगैर पैसे के घर से निकल गए। उन्होंने कहा, “मेरे पास बस का टिकट खरीदने के लिए भी पैसे नहीं थे इसलिए मैं लोगों के पीछे छिप गया और किसी तरह बंगला साहिब गुरुद्वारे में पहुंच गया।

अगले आठ महीने तक वो गुरुद्वारे में रहे और लंगर खाकर अपनी ज़िंदगी चलाई। राहुल खाना बनाना जानते थे। वह बंगला साहिब में सेवा का काम करते थे, जहां हर दिन 40,000 से अधिक लोगों को खाना खिलाया जाता है। इस दौरान उन्होंने सरकारी स्कूल में पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने कहा, “मैंने स्कूल में एक दोस्त को अपनी स्थिति के बारे में बताया और उसके पिता दूध वाले कोल्ड स्टोरेज में काम करते थे। जब मैं सिर्फ 14 साल का था तब मुझे यह काम मिला।

राहुल को उनके 8 घंटे की कड़ी मेहनत के लिए प्रतिदिन 500 रुपये से अधिक का भुगतान किया जाता है। उन्होंने कहा, “आपको केवल उन दिनों में भुगतान किया जाता है जब आप काम करते हैं। अब एक नया ठेकेदार आया है जो हमें वैकल्पिक दिनों में काम देता है।”

एथलेटिक्स में राहुल के आने की कहानी भी काफी दिलचस्प है। उनके मकान मालिक का बेटा पुलिस के फिजिकल टेस्ट पास करने के लिए ट्रेनिंग कर रहा था। राहुल से उसने पूछा कि क्या वह उनके ट्रेनिंग करना चाहेंगे। लेकिन एक दिक्कत थी, उनके पास रनिंग शूज नहीं थे। उन्होंने किसी तरह अपने कैनवास के जूते जुगाड़े और अपने मकान मालिक के बेटे के साथ ट्रेनिंग शुरू की, जो अंततः परीक्षा में पास नहीं हो पाया। राहुल आगे बढ़ते रहे और 2016 में अपना पहला राज्य पदक हासिल किया। राहुल अभी भी जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में ट्रेनिंग करते हैं और उन्हें उम्मीद है कि ब्रेक मिलेगी, लेकिन उनका कहना है कि रात के काम ने उनके शरीर पर असर डालना शुरू कर दिया है|

About Post Author