सपा में एक बार फिर से दिखे बगावत के सुर

उत्तर प्रदेश।सपा में नगर निकाय चुनाव को लेकर बलिया के बाद अब संभल में बगावत शुरू हो गई है। यहां सपा सांसद डा. शफीकुर्रहमान बर्क और उनके पुत्र कुंदरकी से विधायक जियाउर रहमान बर्क ने पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार से पल्ला झाड़ लिया है। ये दोनों निर्दलीय उम्मीदवार को चुनाव लड़ा रहे हैं। बलिया के सिकंदरपुर विधायक भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं। दूसरी तरफ कई जगह पार्टी नेतृत्व ने अधिकृत उम्मीदवार के बजाय निर्दलियों को समर्थन दिया है। अधिकृत उम्मीदवारों को पीछे करने से पार्टी के आम कार्यकर्ताओं में आक्रोश है।बलिया के सिकंदरपुर में सपा ने दिनेश चौधरी को टिकट दिया है। इससे सपा विधायक मोहम्मद जियाउद्दीन रिजवी ने भीष्म यादव को निर्दल मैदान में उतार दिया। वह पूरे दमखम के साथ भीष्म को चुनाव जिताने में लगे हैं। इसी तरह संभल नगर पालिका परिषद अध्यक्ष पद पर सपा ने विधायक इकबाल महमूद की पत्नी रुखसाना इकबाल को मैदान में उतारा।

पूर्व विधायक इकबाल व सांसद शफीकुर्रहमान बर्क के बीच लंबे समय से अंदरूनी विवाद चल रहा है। ऐसे में सांसद बर्क ने पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ निर्दल उम्मीदवार के तौर पर फरहाना यासीन को उतार दिया है। उन्होंने साफ कहा कि शीर्ष नेतृत्व ने टिकट देते वक्त उनकी राय नहीं ली। ऐसे में वह अपने उम्मीदवार को चुनाव लड़ा रहे हैं। डा. बर्क के साथ उनके पौत्र और कुंदरकी के विधायक जियाउर रहमान भी निर्दल उम्मीदवार के प्रचार में जुटे हैं।

सपा ने बदले कई प्रत्याशी
समाजवादी पार्टी की ओर से उम्मीदवारों के नाम बदलने का खेल भी खूब चला। इससे कई जगह पार्टी के अंदरखाने में विरोध के स्वर हैं। पार्टी ने झांसी महापौर पद के लिए पहले डॉ. रघुवीर चौधरी को उम्मीदवार बनाया। बाद में वहां से पूर्व विधायक सतीष जतारिया को प्रत्याशी घोषित कर दिया। गाजियाबाद से पहले नीलम गर्ग को और बाद में पूनम यादव को उम्मीदवार बना दिया। इसी तरह नगर पालिका अध्यक्षों के भी टिकट बदले गए हैं। पिलखुवा में पहले मो. बिलाल को और बाद में प्रवीण प्रताप को टिकट दे दिया गया। खलीलाबाद में पूर्व चेयरमैन जगत जायसवाल ने सपा से पर्चा भरा और अगले दिन पवन छापड़िया को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। मेंहदवाल से कृतिका पांडेय ने पर्चा भरा और उनकी जगह अब लक्ष्मी निषाद को उम्मीदवार घोषित कर दिया। हैंसर नगर पंचायत से मनीषा पासवान के पर्चा भरने के बाद सुभावती ने पर्चा दाखिल कर दिया। अब देखने वाली बात यह है कि अखिलेश यादव कैसे अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं को मनाने की कोशिश करते हैं या उनको बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं।

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