भाजपा की तैयारी ,विपक्ष दलों पर कितनी भारी !

 उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, उत्तराखंड बीजेपी के संगठन पर्व के अंतर्गत प्रदेश मुख्यालय में कल प्रदेश अध्यक्ष व राष्ट्रीय परिषद सदस्यों के लिए निर्वाचन प्रक्रिया शुरू की गई। निर्वाचन प्रक्रिया में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, सांसद, पूर्व मुख्यमंत्री, विधायक समेत पदाधिकारी मौजूद रहे। जिसपर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि भाजपा विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है और यहां निर्वाचन में लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाई जाती है, इसलिए निर्वाचन किया जा रहा है। साथ ही उन्होंने बताया कि पूर्व में भी प्रदेश अध्यक्ष रहे महेंद्र भट्ट लंबे समय से संगठन की कमान संभाले हुए हैं इसलिए उनके नामांकन की प्रक्रिया में भाग लिया गया। 30 जून को उत्तराखंड बीजेपी अध्यक्ष के लिए निवर्तमान अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ पहुंचकर अपना नामांकन किया था. विरोध में कोई और नामांकन नहीं होने की वजह से महेंद्र भट्ट लगातार दूसरी बार उत्तराखंड बीजेपी अध्यक्ष चुने गए। महेंद्र भट्ट उत्तराखंड बीजेपी के दो बार अध्यक्ष चुने जाने वाले बीजेपी के पहले नेता बन गए है। जिसको लेकर विपक्ष ने बीजेपी पर कई तीखे सवाल खड़े कर दिए है।लेकिन भाजपा महेन्दर भट्ट को भविष्य में उनके नेतत्व में लड़े सभी चुनाव में मिली जीत के तौर पर अग्रमि पंचयात चुनाव के साथ 2027 के चुनाव की दौड़ में मजबूत मान रही है.साथ ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के कार्यकाल पर सवाल भी उठा रही है।

उत्तराखंड में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष पद के चुनाव में एकमात्र नामांकन होने से ही यह तय हो गया था कि महेंद्र भट्ट को रिपीट किया जा रहा हैं। महेंद्र भट्ट की दोबारा ताजपोशी से मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों पदों का क्षेत्रीय व जातीय संतुलन बरकरार रखा गया है। इसे भाजपा हाईकमान की ओर से मिशन 2027 के लिए की गई किलेबंदी के रूप में भी देखा जा रहा है। संदेश साफ है कि मुख्यमंत्री धामी लगातार मजबूत होते जा रहे हैं और बीजेपी हर लिहाज से उनकी पसंद व सहूलियत का पूरा ख्याल रख रही है। महेंद्र भट्ट दोबारा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभालते ही एक नया रिकॉर्ड बनाने जा रहे है। उत्तराखंड में लगातार दो बार प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभालने वाले वह पहले नेता होंगे। 30 जुलाई 2022 को पहली बार महेंद्र भट्ट ने प्रदेश बीजेपी की कमान संभाली थी. और आज महेंद्र भट्ट की विधिवत ताजपोशी की घोषणा हो गई। उनके नामांकन के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी समेत भाजपा के तमाम बड़े नेता मौजूद रहे थे। महेंद्र भट्ट वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष होने के साथ ही राज्यसभा सांसद भी हैं। वह गढ़वाल से प्रभावशाली ब्राह्मण चेहरा हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ बेहतर तालमेल भट्ट के लिए फायदेमंद साबित हुआ। दोनों के नेतृत्व में सरकार और संगठन ने सटीक सामंजस्य बैठाकर साथ-साथ कदमताल किया जो बीजेपी हाईकमान को खूब पसंद आया। दरअसल, महेन्द्र भट्ट अपनी बेबाकी के लिए भी जाने जाते हैं। अपने बयानों से वह कई बार सुर्खियां बटोर चुके हैं। ‘हार्डकोर हिन्दुत्व’ के वह समर्थक माने जाते हैं। मात्र 54 साल के महेंन्द्र भट्ट ने ग्रास रूट लेवल से अपना राजनैतिक सफर 1991 में शुरू किया था। राम जन्म भूमि और उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के दौरान उन्हें दो बार जेल जाना पड़ा था। एबीवीपी में प्रदेश सह मंत्री, जिला संयोजक, जिला संगठन मंत्री, विभाग संगठन मंत्री का दायित्व उन्होंने बखूबी निभाया। वह भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश सह मंत्री और उत्तरांचल युवा मोर्चा में प्रदेश महामंत्री व प्रथम प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। 2002 में उन्होंने नंदप्रयाग विधानसभा सीट से चुनाव जीता। इसके बाद 2017 में उन्होंने फिर बदरीनाथ विधानसभा सीट से जीत हासिल की लेकिन 2022 में उन्हें फिर हार का सामना करना पड़ा। विधायक का चुनाव हारने के बावजूद भाजपा हाईकमान ने 30 जुलाई 2022 को उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया और फिर 2 अप्रैल 2024 को उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद बनाया। अब वह लगातार दूसरी बार प्रदेश अध्यक्ष बनकर कीर्तिमान बना रहे हैं। इस पद के लिए वह मुख्यमंत्री धामी की भी पहली पसंद बताए जा रहे है।
वही मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने हमला बोलते हुए कहा बीजेपी प्रदेश मुख्यालय में नामांकन प्रक्रिया के दौरान सिर्फ महेंद्र भट्ट द्वारा नामांकन करने व मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की उपस्थिति ने स्पष्ट संकेत दे दिया कि भाजपा में आंतरिक लोकतंत्र अब केवल दिखावा बनकर रह गया है। कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह स्थिति अघोषित आपातकाल जैसी है. जहाँ अन्य दावेदार नेताओं को बिलों में छिपा रहने का अप्रत्यक्ष आदेश दे दिया गया है। उन्होंने कहा कि क्या महेन्द्र भट्ट के सिवा भाजपा में कोई योग्य और अनुभवी नेता है ही नहीं। हल्द्वानी के महापौर गजराज बिष्ट, विधायक खजानदास, महामंत्री आदित्य कोठारी, उपाध्यक्ष ज्योति गैरोला आदि के नामों की चर्चा थी, लेकिन मुख्यमंत्री की उपस्थिति के बाद सब कुछ औपचारिकता मात्र रह गया। दसौनी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि भाजपा ने खुद “एक पद, एक व्यक्ति” का सिद्धांत दिया था, लेकिन अब उसी को खुलेआम तोड़ा जा रहा है। इससे पूर्व भी 2012 से 2017 के बीच अजय भट्ट नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष की दोहरी भूमिका निभा चुके हैं। क्या भाजपा में प्रतिभा और योग्य नेताओं की कमी को उजागर नहीं करता है. महेंद्र भट्ट के कार्यकाल को विफल और विवादित करार देते हुए गरिमा दसौनी ने कहा कि उनके कार्यकाल में संगठन पूरी तरह दिशाहीन रहा, कार्यकर्ताओं में अनुशासनहीनता चरम पर रही. चाहे मंडल अध्यक्षों का नाबालिगों के साथ दुष्कर्म मामला हो, मंत्री रहते हुए प्रेम चंद अग्रवाल का पहाड़ वासियों को गाली का प्रकरण हो, भर्ती घोटाले हो, प्रणव सिंह की बदजुबानी और हत्यारबाजी हो, हरिद्वार की महिला मोर्चा की पूर्व अध्यक्ष की काली करतूतें हों प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर महेंद्र भट्ट पूर्ण रूप से  कार्यकर्ताओं और नेताओं पर नकेल कसने में असफल साबित हुए और वे केवल मुख्यमंत्री के नाम का ढोल पीटने तक सीमित रहे। ऐसे व्यक्ति को दोबारा अध्यक्ष बनाया जाना यह दर्शाता है कि बीजेपी में काबिलियत नहीं, बल्कि चाटुकारिता और कट्टरपंथी बयानबाजी ही पद दिलाने का पैमाना बन चुकी है। कांग्रेस पार्टी इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ मानती है और प्रदेश की जनता को इस राजनीतिक नौटंकी से आगाह करती है।

आपको बता दें कि उत्तराखंड बीजेपी के निवर्तमान अध्यक्ष महेंद्र भट्ट राज्यसभा सांसद भी हैं। गढ़वाल क्षेत्र से आने वाले ब्राह्मण नेता महेंद्र भट्ट ने 30 जुलाई 2022 को पहली बार प्रदेश अध्यक्ष का पद संभाला था। महेंद्र भट्ट को उत्तराखंड बीजेपी का मुखर चेहरा माना जाता है। उन्हें अनुभवी नेता माना जाता है। सरकार और संगठन में तालमेल बनाकर चलने की उनकी दक्षता को दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे बड़ा कारण माना जा रहा है। हाल के दिनों में कई अहम मौकों पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को महेंद्र भट्ट का पूरा समर्थन मिला। महेंद्र भट्ट न सिर्फ सरकार के निर्णयों के पक्ष में खुलकर सामने आए, बल्कि प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से अधिकतर चुनावों में पार्टी को जीत भी दिलाई। जिससे अब भाजपा 2027 के चुनाव में भट्ट का दोबारा आना अहम मान रही है। भाजपा ने तो आगामी चुनाव को लेकर अपनी रणनीति तय कर ली है. क्या अब विपक्षी दल भी भविष्य को देखते हुए कोई जीत का कोई ठोस प्लान तय कर पाएंगे।