सिर्फ आडवाणी ही नहीं, पाकिस्तान में जन्मे इस शख्सियत को भी मिला है भारत रत्न

KNEWS DESK- भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से नवाजा जाएगा| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज इस बात का ऐलान किया है| लाल कृष्ण आडवाणी दो हफ्ते के भीतर भारतीय राजनीति के दूसरी ऐसी शख्सियत हैं, जिनको भारत रत्न सम्मान देने का ऐलान किया गया है| सरकार ने कर्पूरी ठाकुर के बाद लाल कृष्ण आडवाणी को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने का ऐलान किया| साथ ही लालकृष्ण आडवाणी दूसरे ऐसे व्यक्ति भी बन गये हैं, जिनका जन्म वर्तमान पाकिस्तान की धरती पर हुआ था|

लाल कृष्ण आडवाणी का जन्म सन् 1927 को मौजूदा पाकिस्तान के कराची शहर में हुआ था जबकि खान अब्दुल गफ्फार खां का जन्म 1890 में पेशावर में हुआ था| दोनों ऐसे दिग्गज हैं, जिनका जन्मी रिश्ता पाकिस्तान से रहा और उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़ कर भाग लिया था| खान अब्दुल गफ्फार खां को सीमांत खान और बाचा खान के नाम से भी जाना जाता है|

खान अब्दुल गफ्फार खां मूलत: बचूल थे| अन्याय के खिलाफ लड़ना उनके स्वभाव में शामिल था| अंग्रेजों की मुखालफत उनकी विरासत में शामिल थी| उनके दादा सैफुल्ला खां अंग्रेजों से लोहा ले चुके थे| पठानों और भारतीयों पर अंग्रेजों के जुल्म को वो बर्दाश्त नहीं कर सकते थे| उन्होंने भारत में अंग्रेजी शासन का खुल कर विरोध किया था| खान अब्दुल गफ्फार खां सीमांत प्रांत में अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ आवाज उठाते थे इसीलिए उनको सीमांत गांधी कहा जाता था| पेशावर में जब सन् 1919 में अंग्रेजों ने मॉर्शल लॉ लगाया था तो उन्होंने इसका कड़ा विरोध किया था उन्होंने शांति प्रस्ताव रखा लेकिन अंग्रेजों ने उनको गिरफ्तार कर लिया|

भारत रत्‍न - विकिपीडिया

खान अब्दुल गफ्फार खां ऐसी शख्सियत रहे हैं, जिन्होंने भारत के विभाजन का विरोध किया था| हालांकि विभाजन के बाद भी उन्होंने पाकिस्तान में रहना पसंद किया लेकिन उन्हीं खान अब्दुल गफ्फार खां को उनके जीवन के आखिरी दिनों में पाकिस्तान सरकार ने पेशावर स्थित उनके घर में नजरबंद कर लिया था और जब 20 जनवरी 1988 को उनका देहांत हुआ तो उनकी इच्छा के मुताबिक, उन्हें अफगानिस्तान के जलालाबाद में दफनया गया|

खान अब्दुल गफ्फार खान पहले गैर भारतीय थे जिनको भारत रत्न सम्मान मिला था| उनके बाद दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद आंदोलन के मुखिया नेल्सन मंडेला को भी यह सम्मान मिल चुका है| उन्हें यह सम्मान सन् 1990 में भारत सरकार ने दिया था| इन दोनों ही शख्यिसतों के अलावा महान समाज सेवी और मिशनरीज ऑफ चैरेटी के लिए दुनिया भर में जानी जाने वालीं मदर टेरेसा भी ऐसी शख्सियत हैं, जिनको भारत रत्न इन दोनों से पहले सन् 1980 में दिया गया था| मदर टेरेसा का जन्म उत्तरी मेसोडोनिया में हुआ था लेकिन मानवता की सेवा के लिए उन्होंने भारत की धरती को चुना और साल 1948 में ही उन्होंने स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता हासिल कर ली थी|

इन महान विभूतियों के अलावा गुलजारी लाल नंदा को भी भारत रत्न मिल चुका है, जिनका जन्म 4 जुलाई 1898 में सियालकोट पाकिस्तान में हुआ था| गुलजारी लाल नंदा देश के दूसरे प्रधानमंत्री थे| इनकी प्रारंभिक शिक्षा भी सियालकोट में हुई थी| इसके बाद लाहौर और फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की| उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में सक्रियता से हिस्सा लिया था| अर्थशास्त्र में उनकी विशेषज्ञता थी| देश की पंचवर्षीय योजना की रूप रेखा बनाने में उनका अहम योगदान रहा है|

गुलजारी लाल नंदा को दो बार देश का कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया था| पहली बार पं. जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद 27 मई 1964 से 9 जून 1964 तक और दूसरी बार लाल बहादुर शास्त्री के निधन पश्चात् 11 जनवरी 1966 से 24 जनवरी 1966 तक वह देश के प्रधानमंत्री बने| गुलजारी लाल नंदा को पद्म विभूषण के अलावा सन् 1997 में भारत रत्न मिला| जीवन के सौ साल पूर्ण करने पर उनका निधन 15 जनवरी 1998 को हुआ था|

लालकृष्ण आडवाणी का जन्म भी पाकिस्तान में हुआ लेकिन विभाजन के बाद भारत उनके जीवन से जुड़ा| लालकृष्ण आडवाणी ने लाहौर में शुरुआती पढ़ाई लिखाई की| उनका बचपन सिंध में बीता था| उसके बाद वो मुंबई आ गये| आडवाणी ने यहां सरकारी लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की| वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हो गए और 1947 में राजस्थान में इसकी गतिविधियों की कमान संभाली| लालकृष्ण आडवाणी भारतीय राजनीति के प्रखर हिंदूवादी चेहरा हैं| भारतीय जनता पार्टी में राम मंदिर आंदोलन के अगुवा रहे हैं| उन्होंने राम रथयात्रा निकाली थी| उन्होंने श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा लहराया था| आडवाणी इतने स्पष्ट वक्ता रहे हैं कि उन्हें साल 2005 में जिन्ना को सेकुलर कहने पर आलोचना भी सहनी पड़ी थी|

उस साल पाकिस्तान की यात्रा के समय उन्होंने जिन्ना और लियाकत अली खान के मजार पर जाकर श्रद्धांजलि दी थी| इस पर विवाद भी हुआ| बीजेपी और संघ से जुड़े कई नेताओं ने उनका विरोध किया लेकिन सच तो यही है कि लाल कृष्ण आडवाणी ने हमेशा अपने इरादों और विचारों से यह साबित किया है कि वो बीजेपी के एक कट्टर हिंदूवादी चेहरा हैं, जिसने ना केवल राम मंदिर की बल्कि हिंदू राष्ट्र के लिए भी संसद से लेकर सड़क तक अपनी आवाज बुलंद की है|

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