नई दिल्ली- विक्टोरिया गौरी मामले पर शीर्ष अदालत ने कहा कि कॉलेजियम से सिफारिश पर पुनर्विचार के लिए नहीं कह सकते हैं। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें एडिशनल जज को स्थायी जज के तौर पर नियुक्ति नहीं मिली।
एडवोकेट विक्टोरिया गौरी मामले की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश को खारिज़ करने की मांग की थी और दलील देते हुए कहा था कि शपथ लेने वाले जजों को संविधान के प्रति आस्था रखनी चाहिए लेकिन जिनके नाम की अनुशंसा की गई है, उनके सार्वजनिक बयानों के चलते उनके नाम की सिफारिश को खारिज़ करना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने कहा कि वह कॉलेजियम से सिफारिश पर पुनर्विचार के लिए नहीं कह सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि ऐसे तमाम मामले सामने आए हैं, जिनमें एडिशनल जज को स्थायी जज के तौर पर नियुक्ति नहीं मिली क्योंकि उनकी प्रदर्शन अच्छा नहीं था। जस्टिस संजीव खन्ना का कहना है कि ”जहां खास राजनीतिक जुड़ाव वाले लोगों को नियुक्ति मिली है।” उन्होंने कहा कि जो तथ्य पेश किए गए हैं, वह साल 2018 में दिए एक भाषण के हैं और हमें लगता है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने भी विक्टोरिया गौरी के नाम की सिफारिश करने से पहले इन्हें देखा होगा।
जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि ‘कोर्ट में जज बनने से पहले मेरा भी राजनीतिक जुड़ाव रहा है लेकिन मैं 20 सालों से जज हूं और मेरा राजनीतिक जुड़ाव मेरे काम के आड़े नहीं आया है’।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने लक्ष्मण चंद्रा विक्टोरिया गौरी को मद्रास हाईकोर्ट में एडिशनल जज बनाने की सिफारिश की थी, जिसे सरकार ने मंजूर कर लिया था। जिस से विक्टोरिया गौरी को एडिशनल जज बनाए जाने का विरोध शुरू हो गया था। मद्रास हाईकोर्ट बार काउंसिल से जुड़े कुछ लोगों का कहना था कि विक्टोरिया गौरी का बीजेपी से जुड़ाव रहा है। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर गौरी की नियुक्ति को खारिज़ करने की मांग की गई।
याचिकाकर्ता ने एक अपुष्ट अकाउंट से 2019 में किए गए ट्वीट का भी हवाला दिया था और दावा किया था कि विक्टोरिया गौरी भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महासचिव रही हैं। साथ ही गौरी पर ईसाई और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ कथित टिप्पणियां करने का भी आरोप लगाया गया |