जस्टिस संजीव खन्ना आज भारत के 51वें चीफ जस्टिस पद की लेंगे शपथ, 13 मई 2025 तक पद पर रहेंगे

KNEWS DESK-  भारत के सर्वोच्च न्यायालय में आज एक नया अध्याय शुरू होने जा रहा है। जस्टिस संजीव खन्ना आज भारत के 51वें चीफ जस्टिस (CJI) के रूप में आज शपथ लेंगे, जबकि पूर्व CJI, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, कल रिटायर हो गए हैं। जस्टिस खन्ना का कार्यकाल अपेक्षाकृत छोटा होगा, जो मात्र छह महीने का होगा। वह 13 मई 2025 को रिटायर होंगे, लेकिन इस छोटे से कार्यकाल में उन्हें कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई करनी है, जिनका देश की न्यायिक और संवैधानिक दिशा पर गहरा असर पड़ सकता है।

जस्टिस खन्ना का समृद्ध न्यायिक अनुभव

64 वर्षीय जस्टिस संजीव खन्ना का न्यायिक करियर बेहद ही समृद्ध और विविधतापूर्ण रहा है। उन्होंने 2005 में दिल्ली उच्च न्यायालय में जज के रूप में कदम रखा और 2019 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने। सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में उन्होंने 65 महत्वपूर्ण फैसले दिए और लगभग 275 बेंचों का हिस्सा रहे। उनकी कार्यशैली और निर्णयों में निष्पक्षता और संवैधानिकता की विशेषता रही है।

जस्टिस खन्ना का नाम भारतीय न्यायपालिका में प्रतिष्ठित है, और उनकी सटीकता और विवेकपूर्ण निर्णयों के लिए उन्हें सम्मानित किया जाता है। उनके चाचा, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज हंसराज खन्ना से प्रभावित होकर उन्होंने कानून की शिक्षा ली थी और 1983 में दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर से एलएलबी की डिग्री हासिल की थी।

महत्वपूर्ण मामलों का सामना करेंगे जस्टिस खन्ना

हालांकि जस्टिस खन्ना का कार्यकाल अपेक्षाकृत छोटा होगा, लेकिन उन्हें कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई करने का अवसर मिलेगा। इनमें से कुछ प्रमुख मामलों में शामिल हैं:

  1. मैरिटल रेप केस: इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय को यह तय करना है कि क्या पति द्वारा पत्नी के साथ बलात्कार को अपराध माना जाना चाहिए, जैसा कि अन्य देशों में किया गया है। इस मामले में जस्टिस खन्ना का निर्णय भारतीय समाज और कानून के लिए ऐतिहासिक हो सकता है।
  2. इलेक्शन कमीशन के सदस्यों की नियुक्ति: यह मामला चुनाव आयोग के स्वतंत्रता और निष्पक्षता से जुड़ा हुआ है। वर्तमान में इसमें यह सवाल उठ रहा है कि क्या चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार की भूमिका अधिक है, या इसे अधिक स्वतंत्र और पारदर्शी बनाया जाना चाहिए।
  3. बिहार जातिगत जनसंख्या सर्वेक्षण की वैधता: इस मामले में बिहार सरकार द्वारा किए गए जातिगत जनसंख्या सर्वेक्षण की संवैधानिकता को चुनौती दी जा रही है। यह मामला राज्य और केंद्र के बीच संघीय संरचना के तहत अधिकारों के वितरण को लेकर महत्वपूर्ण हो सकता है।
  4. सबरीमाला केस का रिव्यू: 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को समाप्त किया था। इस फैसले को लेकर कई धार्मिक समूहों द्वारा पुनः समीक्षा की मांग की गई है, और जस्टिस खन्ना को इस केस की सुनवाई में अहम भूमिका निभानी होगी।
  5. राजद्रोह (Sedition) कानून की संवैधानिकता: भारत में राजद्रोह के आरोप में की जा रही गिरफ्तारी और इसके दुरुपयोग के सवालों पर सर्वोच्च न्यायालय को फैसला लेना है। यह मामला नागरिक अधिकारों और भारतीय दंड संहिता के बीच संतुलन को लेकर महत्वपूर्ण हो सकता है।

इतिहास की ओर एक नजर: परंपरा और बदलाव

भारत की न्यायपालिका में एक परंपरा रही है कि सर्वोच्च न्यायालय के सबसे सीनियर जज को चीफ जस्टिस नियुक्त किया जाता है, लेकिन यह परंपरा हमेशा से कायम नहीं रही। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दो बार इस परंपरा को तोड़ा था। 1973 में इंदिरा गांधी ने जस्टिस एएन रे को चीफ जस्टिस नियुक्त किया, जबकि वे अपने से सीनियर तीन जजों को दरकिनार कर चुके थे। इसी तरह, 1977 में जस्टिस हंसराज खन्ना की जगह जस्टिस एमएच बेग को चीफ जस्टिस बनाया गया था। जस्टिस संजीव खन्ना का नाम भी इस सूची में आता है, लेकिन उनका कार्यकाल अत्यधिक संक्षिप्त होने के कारण उन पर कोई लंबा असर छोड़ने की उम्मीद नहीं की जा सकती।

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