” वो कहते है न जैसे नाम वैसे काम ”
इसलिए उत्तराखंड को देवों की भूमि कह कर पुकारा जाता है , क्योंकि हर कोने में विराजमान है हमारे प्राचीन धार्मिक स्थल और उनसे जुड़ी है “भक्तों की आस्था । ना केवल देहरादून की चकाचौँध बल्कि यहां के धार्मिक स्थल भी मन को मोह लेते हैं, बात करते है राजधानी देहरादून के आँचल मे समाया भगवान शिव को समर्पित टपकेश्वर धाम, चारों तरफ़ प्रकृति की चादर ओढ़े हैं,मंदिर में गुफ़ा के भीतर शिवलिंग स्तिथ है, जहां गुफ़ा की छत से पानी की बूंदे स्वभाविक रूप से गिरकर अपनी श्रद्धा प्रकट करती है,लोगों की मान्यता के अनुसार यहां भक्तों की केवल एक गुहार से उनके कष्टों का निवारण शिव की कृपा से हो जाता है तभी तो साल दर साल यहां भक्तो की भीड़ बड़ती ही चली जा रही है .टपकेश्वर का सबसे मनमोहक दृश्य होता है.शिवरात्रि के पावन अवसर के समय जब दूर दूर से भक्तो की भीड़ महाकाल के दर्शन को उमड़ पड़ती है.कहते है टपकेश्वर का शिवरात्रि मेला नहीं देखा तो आपने देहरादून नहीं देखा।मंदिर को “इष्टदेव भी टपकेश्वर ” के नाम से भी पुकारा जाता है जो की भगवान शिव के अन्य नामो में से एक है.यहां दो शिवलिंग है व मंदिर के प्रांगण मे दो मंदिर एक संतोषी माँ व दूसरा बजरंगबली को समर्पित है.मंदिर का पूरा क्षेत्र वन से ढका हुआ है व नीचे से एक नदी बहती है जिसका नाम है टोंस नदी है जिसके ऊपरी ओर से एक पुल बनाया गया है.नदी मे तीन सर्पों को भी देखा जा सकता है अगर आपके मन मे भक्ति व श्रद्धा हो तो.
पौराणिक मान्यताओ के अनुसार :
हर मंदिर से कइ मान्यताएं जुड़ी होती है तभी तो भक्त उनपर विश्वास कर भगवान के कपाट खटखटाता है.ऐसी ही मान्यता जुड़ी है टपकेश्वर से.माना जाता है इस मंदिर के माध्यम से शिवजी ने दूध का निर्माण किया था जिसे दो्णाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को
दिया था यह कथा महाभारत मे भी प्रचलित है.ये केवल द्रोणाचार्य की तपस्थल नहीं रहा, यहीं पर गुरु द्रोण ने भगवान शिव से शिक्षा भी ली थी।व यहां पर सबसे पहले शिवलिंग खोजने वाले भी द्रोणाचार्य ही थे.दरसल द्रोणाचार्य ने शिव के दर्शन की इच्छा व्यक्त की। इस इच्छा को पूरा करने के लिए महर्षि ने द्रोणाचार्य को ऋषिकेश जाने के लिए कहा था। वह जब यहाँ पहुंचे तो उन्हें शिव जी के दर्शन हुए। तबसे ये शिवलिंग यहाँ विराजमान है और शिव भक्तो के दुःख का निवारण करते है.
कैसे पहुचें टपकेश्वर धाम :
शिव जी के स्थल टपकेश्वर पहुँचना भी बेहद आसान है.मंदिर शहर से करीब 5.5 किलोमीटर की दूरी पर बसा है, यहां देहरादून मसूरी राजमार्ग द्वारा भी पहुँचा जा सकता है। कनॉट प्लेस से ऑटो विक्रम या बस लेकर भी इस मंदिर तक जा सकते हैं। हवाई अड्डा जॉली ग्रांट भी पास है। व रेलवे स्टेशन भी है।
मगर कइ लोग मंदिर प्रांगण मे आकर खाने पीने की चीजों से मंदिर के आसपास गंदगी मचाते है जो की सरासर गलत है.अपनी संस्कृति, धरोहर, व धार्मिक स्थलों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य बनता है.मंदिर में सच्चा मन और आस्था की जरूरत है दिखावे की नहीं।