बुंदेलखंड, बुंदेलखंड में हर एक त्योहार को मनाने की परंपरा हमेशा से ही कुछ खास रहती है। ऐसी ही एक मान्यता है कि मकर संक्रांति पर सूर्य को तिल और जल का अर्घ देने के बाद शक्कर के खिलौने से मुंह मीठा किया जाता है. एक वक़्त था जब शक्कर के खिलौनों को खरीदने के लिए लोग बेताब रहते थे लेकिन समय के साथ ये रीति भी धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है.
यूँ तो पूरे देश में संक्रान्ति का त्योहार मनाया जाता है लेकिन बुन्देलखण्ड में इस पर्व का खास महत्त्व होता है. लोग इस पर्व को लेकर उत्सुक रहते हैं. पहले संक्रांति के पर्व पर बाजार में भी रौनक दिखाई देती थी लेकिन बदलते दौर में इस त्योहार का रंग फीका होता जा रहा है. पहले शक्कर के खिलौने खाने की परंपरा के चलते शक्कर के खिलौने बनाने महीनों पहले से इनको बनाने का काम शुरू कर देते थे लेकिन अब लोगों ने इनकी खरीददारी कम कर दी जिस कारण अब इनकी बिक्री कम हो गयी है. अब लोग शक्कर के खिलौने (घुल्ले)की जगह मिठाईयां ज्यादा ख़रीदते हैं. जिस कारण अब बाजारों में सन्नाटा नजर आता है. शक्कर के खिलौनो को बेच रहे दुकानदार भी ग्राहकों की आस में खड़े है लेकिन ग्राहक है कि आता ही नहीं ! वहीं दुकानदार बताते हैं कि एक तो महंगाई और दूसरी ओर मिठाइयों के वजह से ग्राहक नहीं आ रहे हैं. दुकानदारी बिल्कुल कमजोर हो गयी है.
त्योहारों की रौनक धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है. जहां लोग पांच -दस किलो शक्कर के खिलौने (घुल्ले) खरीदते थे वहीं लोग अब एक -दो किलो में काम चला रहे हैं. लोग बताते हैंकि शक्कर के खिलौने (घुल्लो) को संक्रन्ति में नहाने के बाद खाया जाता है क्योंकि हमारे यहां यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.