‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर आगे बढ़ी मोदी सरकार, पूर्व राष्ट्रपति ने कमेटी की गठित

उत्तराखंड-  2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। दअरसल,  केंद्र सरकार ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर बड़ा कदम उठाते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेठी गठित की है। पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में बनी कमेटी कानून के सभी पहलुओं पर विचार करेगी और एक देश, एक चुनाव की संभावना का पता लगाएगी। कमेटी लोगों की राय भी लेगी। वहीं मोदी सरकार ने 18 सितंबर से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र भी बुलाया है। सूत्रों के हवाले से खबर है कि सरकार संसद के विशेष सत्र में ‘एक देश, एक चुनाव’ से जुड़ा बिल ला सकती है। विशेष सत्र की घोषणा के बाद मुंबई में चल रही INDIA गठबंधन की बैठक में भी ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर चर्चा हुई है। माना जा रहा है कि एकजुट विपक्ष को मोदी की ये बड़ी चुनौती होगी। वहीं उत्तराखंड जैसे कई छोटे राज्यों के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से काफी लाभ माना जा रहा है क्योंकि बार- बार चुनाव की आचार संहिता लगने से विकास में अवरूद्ध पैदा होने के साथ ही राज्य पर वित्तीय बोझ बढ़ता है। वहीं राज्य में इस मुद्दे पर सियासत भी गरमा गई है। कांग्रेस का आरोप है कि सरकार जनहित से जुड़े मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए सरकार ऐसे फैसले ले रही है। वहीं बीजेपी ने केंद्र सरकार की ओर से ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की तरफ बढ़ाए जा रहे कदमों की सराहना करते हुए विपक्ष पर जमकर निशाना साधा है।

आपको बता दें कि उत्तराखंड में आगामी समय में लोकसभा और निकाय का चुनाव होना है। सभी राजनीतिक दलों इसे जीतने की तैयारियों में जुटे हैं। मौजूदा समय में राज्य की पांचों लोकसभा सीटों पर बीजेपी के सांसद हैं। कांग्रेस जहां बीजेपी के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी के सहारे जीत का दावा कर रही है तो वहीं भाजपा को पूरी उम्मीद है कि भाजपा विकास के मॉडल पर जीत दर्ज करेगी।

कुल मिलाकर 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले देश में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर नई बहस छिड़ गई है। सवाल ये है कि क्या मोदी सरकार विशेष सत्र में एक देश, एक चुनाव’ से जुड़ा बिल ला सकती है या फिर ये मुद्दा चर्चा में रहने के लिए उठाया जा रहा है। क्या ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ एकजुट हुए विपक्ष को मोदी की बड़ी चुनौती होगी? सवाल तो ये भी है कि देश में साल 1952, 1957, 1962 और 1967  में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव हो चुके हैं लेकिन 1968-1969 के बीच कुछ राज्यों की विधानसभा भंग होने से ये व्यवस्था टूटी। सवाल ये है कि ऐसी स्थिति क्या ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ लागू होने के बाद उत्पन्न नहीं होगी।

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