भारत का पहला प्रोजेक्ट, रेडियो टैग लगाकर जंगल में छोड़े आठ पेंगोलिन

सिवनी:– दुर्लभ वन्यजीवों में शामिल पेंगोलिन को संरक्षित करने भारत का पहला पेंगोलिन इकोलाजिकल एंड कंजर्वेशन प्रोजेक्ट पर दो साल से काम चल रहा है। पेंच टाइगर रिजर्व के अलावा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में विभिन्न स्थानों से रेस्क्यू किए गए आठ पेंगोलिन को रेडियो ट्रांसमीटर (रेडियो टेग) लगाकर जंगल में छोड़ा गया है।

पेंगोलिन के स्केल्स यानी शरीर की ऊपरी कड़ी परत का उपयोग दवा बनाने में होता है, जो महंगे दामों पर बिकती है। इसी कारण दुनियाभर में तस्करी होती है। अब पेंगोलिन विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गया है।
दुर्लभ पेंगोलिन को संरक्षित करने मध्यप्रदेश वन विभाग और वाइल्डलाइफ कंर्जेवेशन ट्रस्ट (डब्ल्यूसीटी) मिलकर पेंगोलिन की गतिविधियों पर अनुसंधान कर रहा है। अनुसंधान पूरा होने के बाद विश्लेषण के आधार पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जाएगी, ताकि पेंगोलिन संरक्षण की दिशा में आवश्यक कदम उठाए जा सके।

खोजे जा रहे प्राकृतिक रहवास

पेंगोलिन किस क्षेत्र में विचरण कर रहा है, रेडियो टेग से इसका पता लगाया जा सकता है। अनुसंधान के दौरान पेंगोलिन के प्राकृतिक आवास भी खोजे गए हैं, ताकि शिकारियों से छुड़ाए गए पेंगोलिन को उनके उपयुक्त रहवास में छोड़ा जा सके। पेंगोलिन जमीन में गड्ढा तैयार करने में माहिर होता है। सख्त से सख्त जमीन पर पेंगोलिन आसानी से कई फीट गहरा गड्ढा तैयार कर सकता है। अनुसंधान में प्राप्त जानकारी के आधार पर डब्ल्यूसीटी ने ऐसे पेंगोलिन बाक्स तैयार किए हैं, जिसमें आवागमन के दौरान वन्यजीव विचलित नहीं होगा। गौरतलब है कि दुनियाभर में पाई जाने वाले पेंगोलिन की सभी आठ प्रजातियों के विलुप्त होने पर संकट मंडरा रहा है। भारत में मिलने वाला पेंगोलिन आकार में सभी प्रजातियों में सबसे बड़ा होता है। पेंगोलिन का मुख्य भोजन चीटी व दीमक होता है।

पेंच में छह व सतपुड़ा में छोड़े गए दो पेंगोलिन

दो पेंगोलिन सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र में छोड़े गए हैं जबकि छह पेंगोलिन को पेंच टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया है। इनमें से कुछ मादा पेंगोलिन भी शामिल हैं। प्रजनन से पेंगोलिन की संख्या बढ़ रही है।
ऐसा होता है पेंगोलिन
-शर्मीले प्रवृति का निशाचरी जीव रात में कुछ समय के लिए बाहर निकलता है।
शिकारियों व बचाव अभियान में पकड़े गए पेंगोलिन को रेडियो टैग लगाकर जंगल में छोड़ने के बाद लगातार निगरानी की जा रही है। पेंगोलिन की संख्या बढ़ रही है।
-रजनीश कुमार सिंह डिप्टी डायरेक्टर, पेंच टाइगर रिजर्व।
अनुसंधान से दुर्लभ पेंगोलिन की भारतीय प्रजाति को संरक्षित करने में मदद मिलेगी। यह भारत का पहला प्रोजेक्ट है, जिसमें पेंगोलिन के व्यवहार, रहवास, भोजन व अन्य गतिविधियों पर गहन अनुसंधान किया जा रहा है।

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