क्या है तहरीक-ए-हुर्रियत का इतिहास, क्यों केंद्र सरकार ने किया बैन?

KNEWS DESK- केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के तहरीक-ए-हुर्रियत संगठन पर बैन लगा दिया है। इसे UAPA के तहत 5 साल के लिए बैन कर दिया गया है। तो चलिए आपको बताते हैं कि क्या है तहरीक-ए-हुर्रियत का इतिहास?

तहरीक-ए-हुर्रियत का गठन अगस्त 2004 में सैयद अली शाह गिलानी ने किया था। साल 1929 में कश्मीर के बारामूला जनपद स्थित बांदीपोरा तहसील के जुरीमंज गांव में जन्मे सैयद अली शाह गिलानी पाकिस्तान परस्त नेता थे। वह 1953 में जमात-ए-इस्लामी कश्मीर के सदस्य बने। सोपोर विधानसभा क्षेत्र से वह 1972, 1977 और 1987 में विधानसभा पहुंचे. गिलानी की गिनती उन लोगों में की जाती थी जो भारत में रहकर पाकिस्तानी की तरीफों के पुल बांधते थे। 1975 में सरकार ने जमात पर प्रतिबंध लगा दिया, इसलिए गिलानी ने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के बैनर तले 1987 का विधानसभा चुनाव लड़ा। हालांकि, अगले ही साल उनको इस फ्रंट से बेदखल कर दिया गया।

सैयद अली शाह गिलानी ने साल 2004 में जमात-ए-इस्लामी से कहा कि वह अपनी अलग पार्टी बनाना चाहते हैं। इस पर जमात ने उन्हें न सिर्फ रोका बल्कि निलंबित भी कर दिया। ऐसे में गिलानी ने पार्टी बनाने का विचार छोड़ दिया और जमात का नेतृत्व करने की कोशिश करने लगे। इससे जमात पर दबाव पड़ा और उसने अगस्त 2004 में गिलानी को फिर से शामिल कर लिया। उन्हें अपनी पार्टी शुरू करने की इजाजत भी दे दी। उसी महीने गिलानी ने तहरीक-ए-हुर्रियत नाम से नई पार्टी बना ली। हालांकि जमात-ए-इस्लामी ने अगले ही साल 2005 में गिलानी को अपनी सलाहकार परिषद से हटा दिया।

पार्टी बनने के बाद अक्तूबर 2004 में गिलानी इसके अध्यक्ष भी चुन लिए गए, जिसका कार्यकाल तीन साल का था। कार्यकाल पूरा होने पर एक बार फिर उन्हें तहरीक-ए-हुर्रियत का अध्यक्ष बना दिया गया। इसके बाद लगातार अपनी पार्टी की कमान संभालते रहे हालांकि पार्टी का नियमित चुनाव नहीं कराने पर 2017 में उन्हें अपनी ही पार्टी में सिर्फ एक साल का विस्तार दिया गया। अगले ही साल घर में नजरबंद गिलानी ने अपनी तबीयत खराब होने का हवाला देते हुए पार्टी मुखिया के पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद मुहम्मद अशरफ सेहराई को तहरीक-ए-हुर्रियत का अध्यक्ष बनाया गया।

तहरीक-ए-हुर्रियत के गठन के बाद सैयद अली शाह गिलानी ने इसे हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का सहयोगी संगठन बना दिया।या यूं कहें कि गिलानी ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का हिस्सा बनने के लिए ही अपनी पार्टी बनाई थी। बता दें कि जम्मू-कश्मीर में 1993 में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन किया गया था, जो वहां के 26 संगठनों का समूह है। असल में ये सभी संगठन पाकिस्तान परस्त और अलगाववादी रुख वाले हैं। इनमें जमात-ए-इस्लामी और जेकेएलएफ का नाम भी शामिल है।

गिलानी की पार्टी के हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का हिस्सा बनने के बाद अगले साल ही इसमें फूट पड़ गई और इसके दो हिस्से हो गए। साल 2005 में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नरमपंथी धड़े की अगुवाई मीरवाइज उमर फारुख को मिली, जबकि गिलानी कट्टरपंथी गुट के अगुवा बन गए।

2020 में गिलानी ने अचानक हुर्रियत कॉन्फ्रेंस भी छोड़ने की घोषणा कर दी थी। एक सितंबर 2021 को श्रीनगर में गिलानी की मौत हो गई। उसी साल मुहम्मद अशरफ सेहराई ने भी दम तोड़ दिया। गिलानी और सेहराई के निधन के बाद भी संगठन सक्रिय बना हुआ था। उसके सदस्य लगातार आतंकी और देश विरोधी गतिविधियों में शामिल पाए जा रहे थे।

तहरीक-ए-हुर्रियत, जम्मू-कश्मीर को यूएपीए के तहत गैरकानूनी संगठन घोषित करने के साथ ही सरकार ने इसका गजट नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है। इसमें बताया गया है कि तहरीक-ए-हुर्रियत ने घाटी में सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी करने के लिए पैसे इकट्ठा किए। यही नहीं, यह आतंकवादी गतिविधियों के लिए भी फंड जुटाता रहा है। यह संगठन भारत के संवैधानिक संस्थानों को प्रति सम्मान की भावना नहीं रखता है। सुरक्षा बलों के जवान जिन आतंकवादियों को अपनी जान पर खेलकर मुठभेड़ में मार गिराते हैं, उनको तहरीक-ए-हुर्रियत के सदस्य श्रद्धांजलि देते हैं। यह संगठन लोकतंत्र में भी विश्वास नहीं रखता है।

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