KNEWS DESK – बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग 6 नवंबर (शुक्रवार) को होने जा रही है। इस चरण में 18 जिलों की 121 सीटों पर मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। पहले चरण में कई दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर है — जिनमें तेजस्वी यादव, सम्राट चौधरी और मैथिली ठाकुर जैसे बड़े नाम शामिल हैं।

चुनावी माहौल जोरों पर है। एनडीए का दावा है कि इस बार महागठबंधन का “सूपड़ा साफ” होगा, जबकि महागठबंधन का कहना है कि जनता इस बार “एनडीए को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाएगी।” इसी बीच विभिन्न एजेंसियों के ओपिनियन पोल और सर्वेक्षण ने बिहार की सियासत में नई हलचल मचा दी है।
दिलचस्प बात यह है कि ज्यादातर सर्वे में जनता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती है, लेकिन सत्ता एनडीए को देना चाहती है। यह विरोधाभास बिहार की राजनीति के लिए एक अनोखा संकेत बन गया है।
जेवीसी पोल का दावा: एनडीए आगे, तेजस्वी सबसे पॉपुलर
जेवीसी पोल के अनुसार, 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में एनडीए को 120 से 140 सीटें, महागठबंधन को 93 से 112 सीटें, और जन सुराज पार्टी को 4 से 5 सीटें मिलने का अनुमान है।
बीजेपी 70 से 81 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है, जबकि जेडीयू को 42-48 सीटें मिल सकती हैं। महागठबंधन में आरजेडी को 69-78 और कांग्रेस को 9-17 सीटें मिलने का अनुमान है। मुख्यमंत्री पद के लिए पसंदीदा चेहरे के रूप में तेजस्वी यादव को 33%, नीतीश कुमार को 29%, जबकि चिराग पासवान और प्रशांत किशोर को 10-10% जनता ने चुना।
सी-वोटर्स सर्वे: तेजस्वी आगे, लेकिन नीतीश भी दौड़ में
सी-वोटर्स के सर्वे में मुख्यमंत्री के लिए योग्य चेहरे के तौर पर तेजस्वी यादव को 37%, प्रशांत किशोर को 24%, नीतीश कुमार को 16%, और सम्राट चौधरी व चिराग पासवान को 7-7% वोट मिले। हालांकि जब सर्वे में केवल नीतीश कुमार बनाम तेजस्वी यादव को सामने रखा गया, तो नीतीश कुमार को 46% और तेजस्वी यादव को 41% लोगों ने वोट दिया। दिलचस्प रूप से, 62% जनता ने नीतीश कुमार के कामकाज को संतोषजनक बताया है।
प्रशांत किशोर का उभार, लेकिन सीटें सीमित
सर्वे में यह भी सामने आया है कि जन सुराज के प्रशांत किशोर की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। वे कुछ जगहों पर नीतीश कुमार से भी आगे हैं, हालांकि उनकी पार्टी को महज 4-5 सीटें मिलने की उम्मीद जताई गई है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, पीके का वोट शेयर (6-7%) एनडीए के पारंपरिक वोट बैंक को नुकसान पहुंचा सकता है।
अक्सर देखा गया है कि चुनाव पूर्व सर्वे वास्तविक नतीजों से मेल नहीं खाते। पंजाब, छत्तीसगढ़ और यहां तक कि 2020 के बिहार चुनाव में भी कई सर्वे गलत साबित हुए थे। इसलिए इस बार भी विशेषज्ञ मानते हैं कि 2 फीसदी वोट का अंतर नतीजों को पूरी तरह पलट सकता है।