जनता के मूड को देखकर लिखी जाती थी पटकथा…. लेकिन अब दौर बदल चुका
संवेदनशील मुद्दों का चुनाव पर पड़ता है गहरा असर
लखनऊ 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले द केरला स्टोरी के निर्माण, उसके तथाकथित विवादित प्रसंगों को लेकर के केरला में बैन हुआ तो वही मध्य प्रदेश और यूपी में टैक्स फ्री किए जाने और आखिर में सीएम योगी योगी आदित्यनाथ द्वारा अपने कैबिनेट के साथ इस पिक्चर को देखना…..अपने आप में ही एक नए राजनीतिक बहस का विषय हो सकता है. देश की राजनीतिक परिदृश्य में समाजवादियों,वामपंथियों और राष्ट्रवादी तथा कांग्रेसियों के बीच इस फिल्म को लेकर के अपने अपने विचार हैं. लेकिन जब 2024 के चुनाव नजदीक हो तो ऐसे में द केरला स्टोरी केवल बहस का विषय ही ना रह कर के राष्ट्र वादियों और उनके धुर विरोधियों के बीच पाला खींचने में अहम भूमिका निभाने में कम नहीं… हाल ही में चुनाव आयोग की कार्यशैली पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सवालिया निशान खड़े किए हैं और यह कहा है कि संवैधानिक फ्रेम में चुनाव संबंधी कार्य किए जाने चाहिए . मौजूदा समय में विपक्ष जिसकी यूपी में अखिलेश अगुवाई करते दिखते हैं, बिहार में नीतीश कुमार तो वहीं शेष भारत में कांग्रेसी दिखाई देती है. भाजपा और विपक्ष में चुनाव जीतने की प्रतियोगिता है, चुनाव प्रचार के तौर तरीके पहले से कतई अलग है…. चुनाव प्रचार के तरीकों में जहां एक बिंदास पन है
तो वही सोशल मीडिया ने 80 फ़ीसदी से अधिक जगह घेर रखी है ऐसे में डिजिटल माध्यम की मदद से द केरला स्टोरी को देश के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचने तक ज्यादा समय नहीं लगेगा.
कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि पहले ऐसे संवेदनशील मुद्दे को एक छोर से दूसरे छोर पहुंचने में वर्षों लग जाते थे और ऐसे संवेदनशील मुद्दों का चुनाव पर खासा असर देखने को नहीं मिलता था, लेकिन मौजूदा समय बदल चुका है वह दौर था जब फिल्म के डायरेक्टर परिसर प्रड्यूसर जनता के मूड को देखकर फिल्मों की पटकथा लिखते थे तीसरी कसम चांद का टुकड़ा बैजू बावरा और इस तरीके के तमाम फिल्मों में भले ही नायक रईस पृष्ठभूमि का रहा हो फिल्म की डोर गांव के किसान ,मजदूर और युवाओं के हाथ में थी, लेकिन अब दौर बदल चुका है…. अब प्रड्यूसर और डायरेक्टर राजनीतिक और व्यवसायिक दृष्टिकोण के मुताबिक फिल्मों की पटकथा लिखते हैं, और उसे जनता में परोसते हैं….. यह कहना गलत ना होगा कि पहले फिल्मों पर जनता का का राज था और अब उन्हीं पर कॉर्पोरेट सेक्टर राज कर रहा, जहां जनता सिर्फ एक ग्राहक बनकर रह गई.