चुनाव बना मजबूरी या तीन बच्चे जरूरी !

उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, उत्तराखंड की धामी सरकार की टेंशन खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। सरकार के एक के बाद एक कई  फैसलों को कोर्ट में चुनौती दी जा रही है। इसी कड़ी में धामी सरकार की ओर से जिला पंचायतों में प्रशासक नियुक्त किये जाने के फैसले को चुनौती दी है इतना ही नहीं कोर्ट में निकाय और पंचायत चुनाव में तीन बच्चों वाले उम्मीदवारों के लिए अलग-अलग नियम होने को भी चुनौती देती याचिका पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने इन दोनों मामलों में सरकार से जबाव मांगा है.आपको बता दें कि हाईकोर्ट ने प्रदेश के निकाय और पंचायत चुनाव में तीन बच्चों वाले उम्मीदवारों के लिए अलग-अलग नियम होने को चुनौती देती याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने इस संबंध में सरकार को छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। याचिका में कहा है कि 2003 के बाद जिसके तीन बच्चे होंगे, उन्हें नगरपालिका का चुनाव नहीं लड़ने दिया जाएगा। जबकि पंचायतों में 27 सितंबर 2019 के बाद तीन बच्चों वाले के चुनाव लड़ने पर रोक है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि अब तक वे ग्रामीण इलाके में आते थे और चुनाव लड़ सकते थे लेकिन सरकार ने अब उनके ग्रामीण क्षेत्र को नगर पालिका में जोड़ दिया है। जिससे वह चुनाव लड़ने के अयोग्य हो गए हैं। याचिकाकर्ता ने कहा है कि चुनाव लड़ने के लिए उन्हें अयोग्य घोषित करना उनके साथ अन्याय है। सरकार के इस अधिनियम पर रोक लगाई जाए। वहीं दूसरी ओर धामी सरकार की ओर से  निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्षों को जिला पंचायतों में प्रशासक नियुक्त करने के फैसले पर भी कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने राज्य सरकार से जिला पंचायतों में चुनाव कराने का कार्यक्रम शपथ पत्र के माध्यम से पेश करने के लिए कहा है। वहीं कोर्ट के इस फैसले के बाद विपक्ष सत्तापक्ष पर हमलावर हो गया है।

 

नैनीताल हाईकोर्ट ने प्रदेश के निकाय और पंचायत चुनाव में तीन बच्चों वाले उम्मीदवारों के लिए अलग-अलग नियम होने को चुनौती देती याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने इस संबंध में सरकार को छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद तय की गई है। बता दें कि किच्छा निवासी नईम उल ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर सरकार के नगरपालिका ऐक्ट संशोधन अधिनियम 2003 की धारा 3 को चुनौती दी है। याचिका में कहा है कि 2003 के बाद जिसके तीन बच्चे होंगे, उन्हें नगरपालिका का चुनाव नहीं लड़ने दिया जाएगा। जबकि पंचायतों में 27 सितंबर 2019 के बाद तीन बच्चों वाले के चुनाव लड़ने पर रोक है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि अब तक वे ग्रामीण इलाके में आते थे और चुनाव लड़ सकते थे लेकिन सरकार ने अब उनके ग्रामीण क्षेत्र को नगर पालिका में जोड़ दिया है। जिससे वह चुनाव लड़ने के अयोग्य हो गए हैं। याचिकाकर्ता ने कहा है कि चुनाव लड़ने के लिए उन्हें अयोग्य घोषित करना उनके साथ अन्याय है। सरकार के इस अधिनियम पर रोक लगाई जाए।

वहीं इस बीच नैनीताल हाईकोर्ट में धामी सरकार की ओर से जिला पंचायतों में प्रशासक नियुक्त किये जाने के फैसले को भी चुनौती दी गई है….इस मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 14 दिनों के भीतर जिला पंचायतों के चुनाव का कार्यक्रम बताने के लिए कहा है। इस मामले में अब अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी। बता दें कि उधमसिंहनगर के निवर्तमान जिला पंचायत सदस्य सुमन सिंह की ओर से सरकार के इस आदेश को याचिका के जरिए चुनौती दी गई है। सरकार ने 30 नवंबर 2024 को एक अधिसूचना जारी कर कहा कि चुनाव नहीं होने तक जिला पंचायतों में निवर्तमान अध्यक्षों को प्रशासक नियुक्त करने का निर्णय लिया है। याचिका में सरकार के इस फैसले को नियम विरुद्ध बताया गया है…वहीं विपक्ष भी अब सरकार के इस फैसले पर हमलावर हो गया है

कुल मिलाकर उत्तराखंड सरकार की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है. एक ओर जहां निकाय आरक्षण को लेकर बवाल मचा हुआ है तो वहीं दूसरी ओर एक के बाद एक सरकार के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी जा रही है। ऐसे में देखना होगा कि सरकार कोर्ट में क्या जवाब दाखिल करती है

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