राजस्थान में खत्म होगा ‘दो बच्चे’ का नियम, पंचायत चुनाव में अब तीन बच्चों वाले भी लड़ सकेंगे चुनाव

डिजिटल डेस्क- राजस्थान में अब “हम दो, हमारे दो” का नारा इतिहास बनने जा रहा है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार 35 साल पुराने उस कानून में बदलाव की तैयारी कर रही है, जिसके तहत दो से अधिक बच्चे वाले व्यक्ति पंचायत या स्थानीय निकाय के चुनाव नहीं लड़ सकते थे। इस फैसले के लागू होने के बाद अब तीन या अधिक बच्चों वाले उम्मीदवार भी सरपंच, पार्षद, मेयर, जिला प्रमुख जैसे पदों पर चुनाव लड़ सकेंगे। राज्य सरकार ने इस बदलाव के पीछे ‘समान अवसर और नीति-संतुलन’ का तर्क दिया है। सरकार का कहना है कि जब सरकारी नौकरियों में दो बच्चों की सीमा 2018 में खत्म कर दी गई, तो पंचायत प्रतिनिधियों और निकाय चुनावों के लिए यह शर्त जारी रखना तर्कसंगत नहीं है। सरकार का मानना है कि यह कानून अब सामाजिक वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं रह गया है और इसे हटाना आवश्यक है।

फैसले को लेकर राजनीतिक खींचतान शुरू

हालांकि, इस फैसले को लेकर राजनीतिक विवाद भी शुरू हो गया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि बीजेपी सरकार यह कदम “जनसंख्या के धार्मिक संतुलन” को ध्यान में रखकर उठा रही है। कांग्रेस नेता प्रताप खाचरियावास ने कहा, “यह कानून बदलना हिंदू और मुस्लिम जनसंख्या के मुद्दे पर राजनीति करना है। दो बच्चों की सीमा से जहां आबादी पर नियंत्रण था, वहीं अब इस कानून में ढील देने से बेरोजगारी और सामाजिक असंतुलन बढ़ेगा।” कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी सरकार आरएसएस के दबाव में यह कदम उठा रही है। दरअसल, कुछ महीने पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि “हिंदुओं को अधिक बच्चे पैदा करने चाहिए।” इसके बाद बीजेपी और संघ से जुड़े कई नेताओं ने इस बयान का समर्थन भी किया था। अब भजनलाल सरकार का यह निर्णय उसी दिशा में कदम माना जा रहा है।

1995 से लागू है कानून

गौरतलब है कि यह कानून 1995 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत की सरकार के दौरान लागू हुआ था। इसका उद्देश्य था कि जनसंख्या नियंत्रण को प्रोत्साहित किया जाए और ग्रामीण क्षेत्रों में ‘छोटा परिवार, सुखी परिवार’ की भावना को बढ़ावा मिले। राजस्थान में बीजेपी ने विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान भी इस मुद्दे को उठाया था। पार्टी के कई विधायकों ने विधानसभा में यह तर्क दिया था कि जब लोकसभा या विधानसभा चुनावों के लिए कोई ऐसी शर्त नहीं है, तो पंचायत और निकाय चुनावों में यह बाध्यता क्यों होनी चाहिए।

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