KNEWS DESK… उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का पेपर मिल कॉलोनी का इलाका 9 मई 2003 को तब सुर्खियों में आ गया, जब यहां सिर्फ दो कमरों के अपार्टमेंट में रहने वाली 24 साल की तेजतर्रार युवती की हत्या हो जाती है। हमलावरों ने कमरे में घुसकर लड़की को गोलियों से भून डाला था। ये लड़की कोई और नहीं, उस समय देश के कवि सम्मेलनों में वीर रस की कविताएं सुनाने वाली तेजतर्रार मधुमिता शुक्ला थी।
दरअसल आपको बता दें कि कवि सम्मेलनों में मधुमिता शुक्ला को सुनने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ती थी। अपने करियर में पीक पर होने के कारण मधुमिता की पहचान भी कई रसूखदार लोगों से हो गई थी, यही कारण था कि जैसे ही मधुमिता की हत्या हुई तो पूरे देश में ये खबर सनसनी की तरह फैल गई थी।
जानकारी के लिए बता दें कि मधुमिता हत्याकांड तब और अधिक सुर्खियों में आ गया, जब तत्कालीन मुलायम सरकार में मंत्री अमरमणि त्रिपाठी का नाम भी इसमें उछलने लगा। जांच एजेंसियां भी मंत्री पर सीधा शिकंजा कसने में आनाकानी कर रही थी। उस समय केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, जो इस पूरी घटना पर नजर रख रही थी। मधुमिता हत्याकांड के दो साल पहले भी अमरमणि त्रिपाठी का नाम एक अपहरण केस में उछला था। अमरमणि त्रिपाठी पर आरोप था कि उसने एक बड़े कारोबारी के 15 साल के बेटे का अपहरण करके अपने बंगले में रखा था। ये मामला जब सामने आया था तो राजनाथ सिंह सूबे के मुखिया थे और उन्होंने अमरमणि त्रिपाठी को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। भाजपा ने भी अमरमणि त्रिपाठी से किनारा कर लिया था और इसके बाद अमरमणि त्रिपाठी 2002 में बसपा और उसके बाद 2003 में सपा में शामिल हो गए थे। लेकिन मधुमिता शुक्ला हत्याकांड ने अमरमणि त्रिपाठी के सियासी करियर में बड़ा दाग लगा दिया। अमरमणि अब चौतरफा शिकंजे में फंसने लगे थे।
मधुमिता शुक्ला की जीवनी
गौरबतल हो कि मधुमिता शुक्ला मूलत: लखीमपुर खीरी जिले की रहने वाली थी और उसे बचपन से ही कविताएं लिखने का शौक था। जब 15 साल की हुई तो कवि सम्मेलनों में भी हिस्सा लेने लगी। जब वह वीर रस की कविताएं पढ़ती थी तो सामने बैठी जनता जोश से भर जाती थी। मधुमिता शुक्ला वीर रस की कविताओं के कारण ख्याति बटोर रही थी। इसी दरमियान मधुमिता का संपर्क अमरमणि से हुआ। वह अमरमणि के संपर्क में जैसे ही आई, उसकी पहचान अन्य रसूखदार लोगों से भी बढ़ने लगी। अमरमणि त्रिपाठी की करीबी होने के कारण मंच पर भी मधुमिता को तवज्जो मिलने लगी। यही कारण था कि अमरमणि की नजदीकी मधुमिता को भी रास आने लगी थी।
अमरमणि त्रिपाठी और मधुमिता में प्रेम संबंध
पहले से शादीशुदा अमरमणि त्रिपाठी और मधुमिता शुक्ला में प्रेम संबंध स्थापित हो गए। दोनों के बीच शारीरिक संबंध स्थापित होने पर बाद मधुमिता शुक्ला गर्भवती हो गई थी। मंत्री अमरमणि अबॉर्शन के लिए मधुमिता शुक्ला पर दबाव बनाने लगा था और मधुमिता के साथ अपने रिश्ते को स्वीकार करने का इरादा नहीं था, लेकिन मधुमिता किसी भी स्थिति में अबॉर्शन के लिए तैयार नहीं थी। इसका नतीजा ये हुआ कि 9 मई 2003 को गर्भावस्था में ही मधुमिता शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड को शूटर्स संतोष राय, अमरमणि त्रिपाठी के भतीजे रोहित मणि त्रिपाठी और पवन पांडेय का नाम सामने आया। इसके अलावा अमरमणि त्रिपाठी और उसकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को भी इस हत्याकांड में मुख्य आरोपी बनाया गया था।
बहन ने किया संघर्ष..मंत्री को सलाखों तक पहुंचाया
मधुमिता हत्याकांड में लखनऊ के महानगर थाने में हत्या का केस दर्ज कराया गया था। मंत्री अमरमणि त्रिपाठी का नाम सामने आने के बाद पूरा मामला देश भर की मीडिया में सुर्खियों में आ गया था। जांच के दौरान मधुमिता की डायरी व अन्य सबूत भी जुटाए गए थे। घटना के इकलौते गवाह घर के नौकर को सुरक्षा दी गई। अमरमणि के घर की जांच की गई, लेकिन मधुमिता की बहन जांच से संतुष्ट नहीं थी। आखिरकार मामले की जांच CBCID को सौंप दी गई। इस मामले में अहम मोड़ जून 2003 में आया, जब जांच कर रहे 1967 बैच के IPS महेंद्र लालका को तत्काल मायावती सरकार ने निलंबित कर दिया, क्योंकि IPS लालका ने हत्याकांड में मंत्री अमरमणि की संलिप्तता पाई थी।
केंद्र सरकार का दबाव, 45 दिनों में बहाल हुए IPS महेंद्र लालका
बता दें कि केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार इस पूरे मामले पर नजर रख रही थी। केंद्र सरकार के दबाव में निलंबित IPS अधिकारी महेंद्र लालका को 45 दिनों के अंदर ही बहाल करने का आदेश जारी कर दिया गया। IPS लालका के समर्थन में IPS एसोसिएशन भी खड़ा हो गया था। आखिरकार पूरा मामला CBI को ट्रांसफर कर दिया गया।
मधुमिता हत्याकांड बना राजनीतिक मुद्दा
अमरमणि त्रिपाठी का नाम सामने आने के बाद मधुमिता शुक्ला हत्याकांड एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया था। CBI को केस ट्रांसफर होने के बाद जांच में तेजी आई और सितंबर 2003 में अमरमणि त्रिपाठी को गिरफ्तार कर लिया गया। इस हत्याकांड में अमरमणि त्रिपाठी की पत्नी मधुमणि ने भी सहयोग किया था, इस कारण उसे भी आरोपी बनाया गया था।
जेल से लड़ा चुनाव और हासिल की जीत
हत्याकांड की जांच के दौरान ही अमरमणि त्रिपाठी ने गोरखपुर जेल में रहते हुए ही साल 2007 का यूपी विधानसभा चुनाव लड़ा और निर्दलीय प्रत्याशी को 20 हजार वोटों से हराया। CBI जांच के दौरान ही दो गवाह भी बयान से पलट गए थे। अमरमणि के रसूख के कारण मधुमिता शुक्ला का परिवार खतरे को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।
सुप्रीम कोर्ट ने भी सुनाई सजा
बता दें कि आखिरकार अलग-अलग अदालतों में सुनवाई और CBI की लंबी जांच के बाद एक पत्र ने पूरे केस को ही पलटकर रख दिया। इस दौरान केस को उत्तराखंड भी ट्रांसफर कर दिया गया और देहरादून की विशेष कोर्ट ने अमरमणि त्रिपाठी, मधुमणि त्रिपाठी और 3 अन्य आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई। इस फैसले को जब अमरमणि ने चुनौती दी तो हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी सजा को बरकरार रखा। मधुमिता की बहन निधि ने इंसाफ के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी।
मधुमिता के एक पत्र और DNA टेस्ट ने पलट दिया पूरा केस
दरअसल इस केस में मधुमिता शुक्ला के एक पत्र ने अहम भूमिका निभाई। प्रेग्नेंट होने के बाद मधुमिता ने अमरमणि को एक भावुक पत्र लिखा था, जिसे जांच एजेंसियों ने कमरे से बरामद किया था। मधुमिता ने लिखा था कि 4 माह से मैं मां बनने का सपना देख रही हूं। तुम इस बच्चे को स्वीकार करने से मना कर सकते हो पर मैं नहीं। क्या मैं कोख में रखकर इसकी हत्या कर दूं? तुम्हें मेरे दर्द का अंदाजा नहीं है? तुमने मुझे सिर्फ एक उपभोग की वस्तु समझा है। मधुमिता का यह पत्र जांच टीम को हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में अहम साबित हुआ। मधुमिता की गर्भ में पल रहे बच्चे का DNA टेस्ट कराने के लिए कहा गया तो अमरमणि को DNA सैंपल देने से इनकार कर दिया, लेकिन जब DNA टेस्ट हुआ तो बच्चे का DNA अमरमणि से मिल गया। इसके बाद उसे सजा मिली।
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