KNEWS DESK… भारत के लिए ये सितंबर माह बहुत खास है. G-20 शिखर सम्मेलन 9 और 10 सितंबर को पहली बार देश की राजधानी में आयोजित होने जा रहा है. ऐसे में कोई भी नहीं चाहता कि विदेशों से आने वाले नेताओं और अधिकारियों को किसी भी परेशानी का सामना करना पड़े, जिसके चलते देश की छवि को नुकसान हो. यही वजह है कि भारत की तरफ से इस सम्मेलन के लिए चाक-चौबंद व्यवस्था की गई है.
दरअसल आपको बता दें कि देश की राजधानी को इस सम्मेलन के लिए कवच और किले में तब्दील कर दिया गया है. हालांकि इतनी सख्त व्यवस्था के बाद भी नेताओं और अधिकारियों के सामने एक बड़ी समस्या है, वो हैं दिल्ली के बंदर जो कहीं भी घुसकर तबाही मचा देते हैं, तो वहीं सड़क पर जा रहे आम लोगों को भी परेशान करते हैं. हालांकि, G-20 शिखर सम्मेलन के लिए इनके लिए भी खास व्यवस्था कर 40 लोगों को तैनात किया गया है. खास बात ये है इन चालीसों को जिस तरह से ट्रेनिंग दी गई है उसकी चर्चा अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी है. दरअसल इन लोगों को लाल मुंह वाले बंदरों को भगाने के लिए लंगूरों की तरह आवाज निकालने की ट्रेनिंग दी गई है. जब दुनिया भर के नेता G-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा ले रहे होंगे तो इन सभी 40 लोगों को भी तैनात किया जाएगा और लाल मुंह वाले बंदरों को देखते ही ये लंगूरों की तरह आवाज निकालने लगेंगे.
जानिए क्यों करना पड़ता है लंगूरों के बहरूपियों का इस्तेमाल?
जानकारी के लिए बता दें कि नई दिल्ली के नगरपालिका अध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने अमेरिकी मीडिया संस्थान न्यूयॉर्क टाइम्स को कि वो बंदरों को दूर रखने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए एक अभियान चलाया गया है जिसमें 40 लोगों को लंगूर की आवाज की नकल करने की ट्रेनिंग दी गई है. साथ ही आयोजन स्थल के आसपास आदमखोर जानवरों के कटआउट भी लगाए गए हैं, जिनका वजन 30 पाउंड से अधिक है. इससे पहले बंदरों को भगाने के लिए लंगूरों का ही इस्तेमाल किया जाता था. कभी-कभी गुलेल और पत्थरों का भी इस्तेमाल होता था. लेकिन कई संगठनों ने इसे क्रूरता बताया. वहीं प्राइमेट व्यवहार का अध्ययन करने वालीं ब्रिटेन में लिंकन विश्वविद्यालय की मनोवैज्ञानिक वेलेंटीना स्क्लाफनी का कहना है कि जंगली बंदरों को भगाने के लिए लाए गए कई लंगूरों को भारतीय कानूनों का उल्लंघन करते हुए जंगलों से पकड़ा गया था. वहीं बंदरों को हिंदू समाज में देवता का प्रतिनिधि भी माना जाता है. कुछ लोग तो उन्हें प्रसाद भी खिलाते हैं. इन सभी चीजों को देखते हुए 2012 में भारत सरकार ने वास्तविक लंगूरों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया और इसके बाद से लोगों को लंगूरों की आवाज निकालने की ट्रेनिंग दिया जाने लगा. इससे पहले अमेरिका राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा जब साल 2015 में भारत आए थे तो उस समय भी इन प्रशिक्षित लोगों को तैनात किया गया था.
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गौरबतल हो कि किसी भी बड़े और प्रतिष्ठित कार्यक्रमों की मेजबानी में हर जगह की अपनी अलग चुनौती होती है. जैसे टोरंटो में 2010 में आयोजित हुए G-20 शिखर सम्मेलन और 1999 में सिएटल में विश्व व्यापार संगठन की बैठकों को विरोध प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा था. इसके अलावा ओलंपिक की मेजबानी करने से पहले, बीजिंग, पेरिस और साल्ट लेक सिटी में गरीब और बेघर निवासियों को छिपाने की कोशिश की गई थी. ऐसे कदम भारत में भी पहले उठाए जा चुके हैं.
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G-20 का जानिए क्या है मतलब?
G-20 यानी ग्रुप ऑफ 20, ये 20 देशों का एक समूह है जिसमें 20 देश साल में एक बार इकट्ठा होते हैं. इस सम्मेलन में दुनियाभर के आर्थिक मुद्दों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, भ्रष्टाचार-विरोध और पर्यावरण जैसे मुद्दों पर चर्चा होती है. इसमें जो देश अध्यक्षता करता है उसकी जिम्मेदारी होती है कि वो किसी विशेष मुद्दे पर सभी सदस्यों की आम सहमति बनाए. ये पहली बार है जब भारत में G-20 शिखर सम्मेलन आयोजित होने जा रहा है. इसके लिए तमाम तैयारियां हो चुकी हैं. भारत अपनी मेहमानवाजी के लिए जाना जाता है. ऐसे में पूरी दिल्ली को दुल्हन की तरह सजा दिया गया है. एयरपोर्ट से लेकर भारत मंडपम तक के रास्ते को G-20 शिखर सम्मेलन के रंग में रंग दिया गया है. पूरे रास्ते में खास फाउंटेन भी लगाए गए हैं. सभी अधिकारियों और नेताओं के ठहरने की खास व्यवस्था भी की गई है.
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