सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को दी सशर्त अंतरिम जमानत, SIT जांच के आदेश

KNEWS DESK – सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अशोका यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को सशर्त अंतरिम जमानत दे दी है। कोर्ट ने उनके सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर दर्ज एफआईआर के बाद गिरफ्तारी पर संज्ञान लेते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी सबका अधिकार है, लेकिन इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।

हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रोफेसर के कुछ बयानों में कथित तौर पर “डॉग व्हिसलिंग” — यानी गुप्त संदेश के ज़रिये समर्थन जुटाने की कोशिश — दिखाई देती है, जिसे गंभीरता से लिया गया है।

भारत-पाक संघर्ष पर टिप्पणी से रोक

कोर्ट ने प्रोफेसर महमूदाबाद को अंतरिम राहत तो दी, लेकिन उन पर कई सख्त शर्तें भी लागू की हैं। कोर्ट ने उन्हें आदेश दिया है कि वे भारत-पाकिस्तान सैन्य संघर्ष से जुड़े किसी भी विषय पर ऑनलाइन पोस्ट या लेख प्रकाशित नहीं करेंगे। इस मुद्दे पर कोई भाषण या सार्वजनिक वक्तव्य भी नहीं देंगे। उन्हें अपना पासपोर्ट चीफ ज्यूडीशियल मजिस्ट्रेट के समक्ष जमा कराना होगा। कोर्ट ने कहा कि इन शर्तों का उल्लंघन जमानत रद्द करने का आधार बन सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) के गठन का भी आदेश दिया है। कोर्ट ने हरियाणा के पुलिस महानिदेशक (DGP) को निर्देश दिया है कि वे एक आईजी रैंक के अधिकारी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय SIT गठित करें। इस टीम में एक महिला अधिकारी को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाएगा।

मामला क्या है?

प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा किया था, जो विवादों में गया। इस पोस्ट को लेकर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई और बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। गिरफ्तारी के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिका दायर की थी।

अशोका यूनिवर्सिटी से जुड़े इस प्रकरण को लेकर शैक्षणिक जगत में भी काफी चर्चा है। कई शिक्षाविदों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थन में आवाज उठाई है, वहीं दूसरी ओर देश विरोधी गतिविधियों को लेकर सख्ती की मांग भी बढ़ी है।

अगली सुनवाई तक निगरानी जारी

कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि SIT की जांच पर कोई रोक नहीं है और अगली सुनवाई तक निगरानी बनी रहेगी। प्रोफेसर की रिहाई के बाद अब यह देखना होगा कि यह मामला कानूनी और सामाजिक रूप से किस दिशा में आगे बढ़ता है।