छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला लिया है. उन्होने कहा है कि अविवाहित बेटी भी अपने माता-पिता से शादी के खर्च का दावा कर सकती है. हाईकोर्ट ने यह बात हिंदू दत्तक भरण-पोषण अधिनियम 1956 के प्रावधानों के तहत ए याचिका पर कही. दरअसल, हाईकोर्ट ने यह फैसला दुर्ग जिला की निवासी और भिलाई स्टील प्लांट में कार्यरत रहे भानुराम की बेटी राजेश्वरी द्वारा 2016 में दायर की गई याचिका के सुनवाई में कही. इस याचिका में बेटी माता-पिता से शादी की खर्च दिलाने की मांग की थी.
फैमिली कोर्ट ने आवेदन किया खारिज
7 जनवरी 2016 को फैमिली कोर्ट ने यह कहते हुए आवेदन को खारिज कर दिया था कि अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि एक बेटी अपनी शादी की राशि का दावा कर सकती है. फैमिली कोर्ट ने यह तर्क दिया था कि हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम 1956 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि एक बेटी अपनी शादी के खर्च के लिए माता-पिता पर दावा कर सके.
अविवाहित बेटी के पक्ष में जारी करने का निर्देश
अपनी याचिका में, सुश्री राजेश्वरी ने कहा कि प्रतिवादी, भानु राम, सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं और उन्हें सेवानिवृत्ति के बकाया के रूप में ₹55 लाख प्राप्त होने की संभावना है. इसलिए, प्रतिवादी-नियोक्ता भिलाई स्टील प्लांट को उनके एक हिस्से को जारी करने का निर्देश देते हुए उचित रिट जारी की जाए. यानी 20 लाख रुपये वैवाहिक खर्च के रूप उसकी अविवाहित बेटी के पक्ष में जारी करने का निर्देश दिया जाए.
राजेश्वरी के पक्ष में हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला
हाईकोर्ट में जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय एस अग्रवाल की पीठ ने 21 मार्च को राजेश्वरी की याचिका को यह कहते हुए सुनावई के लिए स्वीकार कर लिया कि एक अविवाहित बेटी हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के प्रावधानों के तहत अपने माता-पिता से अपनी शादी की राशि का दावा कर सकती है.