जवागल श्रीनाथ जब 90 के दशक में टीम इंडिया से जुड़े तो भारतीय टीम में तेज तर्रार गेंदबाज की कमी थी।उनकी तेज गेंदो के कारण उनको मैसूर एक्सप्रेस कहा जाने लगा। उनका गेंदबाजी एक्शन एक दम किताबी था। कर्नाटक के गेंदबाज श्रीनाथ ने 4 विश्वकप खेले लेकिन कभी भी उनको कप्तानी का मौका नहीं मिला। इसका कारण था उस समय विश्वक्रिकेट की सोच। सिर्फ पाकिस्तान के ऑलराउंडर इमरानखान ही उस वक्त ऐसे कप्तान थे जो गेंदबाजी कर सकते थे। सभी टीमें एक बल्लेबाज को ही कप्तान बनाने में विश्वास रखते थे। यही कारण था कि साल 1992 के विश्वकप से साल 2003 के विश्वकप तक के लंबे करियर के दौरान जवागल श्रीनाथ को कप्तानी का एक बार भी प्रस्ताव तक नही आया।साल 2006 में आईसीसी ने उन्हे मैच रेफरी नियुक्त कर लिया…
ऐसा रहा करियर
जवागल श्रीनाथ 90 के दशक में भारतीय तेज गेंदबाजी आक्रमण के अगुवा रहे। श्रीनाथ ने 1991 से 2003 के बीच 67 टेस्ट और 229 एकदिवसीय खेले है, जिसमें उन्होंने क्रमशः 236 और 315 विकेट लिए हैं
नहीं मिला वह सम्मान जिसके वह हकदार थे
हाल ही में पोलॉक ने वेस्टइंडीज के पूर्व तेज गेंदबाज माइकल होल्डिंग और इंग्लैंड के स्टुअर्ट ब्रॉड के साथ एक कार्यक्रम पर कहा था, ‘मुझे लगता है कि भारत के जवागल श्रीनाथ को वह श्रेय नहीं मिला जिसके वह हकदार थे।’
पोलॉक की बात से कई लोग इत्तेफाक रखते हैं…हालांकि इसका एक कारण प्रतियोगिता भी हो सकता है.. .
श्रीनाथ के दौर में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में तेज गेंदबाजों की शानदार जोड़िया थी…पाकिस्तान के वसीम अकरम और वकार यूनुस, वेस्टइंडीज के लिए कर्टली एम्ब्रोस और कर्टनी वाल्श, ऑस्ट्रेलिया के ग्लेन मैक्ग्रा और ब्रेट ली शामिल थे। न्यूजीलैंड की ओर से डियोन नैश और क्रिस क्रेन्स की जोड़ी थी। दक्षिण अफ्रीका टीम में खुद शॉन पॉलोक और एलेन डॉनाल्ड बहुत घातक थे…
इस कारण जवगल श्रीनाथ भारतीय फैंस के बीच तुलना के शिकार हो गए। उनकी वेंकटेश प्रसाद के साथ जोड़ी थी, इस जोड़ी ने भारत को बीच बीच में सफलता तो दिलाई लेकिन विदेशी गेंदबाजों जितनी प्रभावी यह जोड़ी नहीं थी