KNEWS DESK : दिल्ली के ललित कला अकादमी में इस वक्त पूरे देश से आई कई महिलाएं अपनी कला का प्रदर्शन कर रही हैं. देश के दूर-दराज कोने से आईं, ये महिलाएं कला के जरिए कहानी को कैनवास पर उतार रही हैं. कहानी में कहीं रंग चटक गाढ़ा है, तो कहीं बिल्कुल स्याह काला. क्योंकि इनकी अपनी-अपनी कहानियां भी इससे जुड़ी हैं. इस पेटिंग्स की प्रदर्शनी में उत्तर प्रदेश की शहरों और गांवों से भी कई महिलाओं ने दस्तक दी है. उन्होंने अपनी कहानी हमारे साथ साझा की
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जो बचपन में देखा, उसे बिखेर रही हूं- डॉ मृदला वर्मा
मेरठ से रंग और ब्रश के साथ दिल्ली पहुंची डॉ मृदला वर्मा कहती हैं कि यह सफर इतना आसान नहीं रहा. मेरठ में ऐसी कला का कोई स्कोप नहीं है. इसलिए हम जैसी महिलाओं को दिल्ली का रुख करना पड़ता है. इसके लिए परिवार का समर्थन भी काफी जरूरी होता है. लेकिन महिला होने पर ये अवसर उतनी आसानी से नहीं मिलते हैं. इसलिए मैं अपने कैनवास पर अक्सर आदिवासी महिलाओं की तस्वीर उकेरती हूं. वे कहीं दूर से अपने यूनिक आभूषणों के जरिए एक पहचान देने की कोशिश करती हैं.
उन बच्चियों के लिए कला के रास्ते बंद हैं, जिन्हें बाहर जाने का मौका नहीं मिलता- डॉ सारिका
गोरखपुर से लोक कला का ककहरा सीखने के बाद कानपुर के आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सारिका महिलाओं के उस तबके की बात करती हैं, जिनके लिए आज भी जिंदगी बहुत मुश्किल हैं. उनका कहना है कि मैं असिस्टेंट प्रोफेसर हूं, बच्चों को कला सिखाती हूं. लेकिन कई ऐसे बच्चे हैं, जिनके अंदर प्रतिभा तो हैं, लेकिन उपकरण खरीदने के पैसे भी नहीं हैं. कई बार तो मैं उन्हें खुद पेंट्स और उपकरण मुहैया कराती हूं. कानपुर या गोरखपुर जैसे शहरों में अभी कला के लिए वैसा माहौल नहीं हैं. ऐसे में बाहर निकला होता है. लेकिन उन बच्चियों के लिए कला के रास्ते बंद हैं, जिन्हें बाहर जाने का मौका नहीं मिलता. और यह एक सच्चाई है. कला कहीं भी पैदा हो सकती है. बस उसे व्यक्त करने के लिए प्लेटफॉर्म मिलने चाहिए.
ऑनलाइन है नया स्कोप
डॉ सारिका बताती है कि इंटरनेट की दुनिया ने काफी हालात बदले हैं. अब कानपुर जैसे शहरों में आर्टिस्टों को काम मिल जाते हैं और ऑनलाइन एक्जीबिशन का फायदा मिलता है. इन दोनों के अलावा कई और उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की माहिलाएं अपने कला के साथ दिल्ली पहुंची हैं.