अमेरिका ने नागासाकी में क्यों गिराया था परमाणु बम, जानिए फैट मैन की कहानी

KNEWS DESK- 9 अगस्त यानि आज के ही दिन साल 1945 में हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम के हमले में ऑयल टैंकर्स डिजाइन करने वाले 29 साल के सुटोमु यामागुची बच गए थे। इस दौरान मित्सुबिशी के डायरेक्टर उन पर गुस्सा करते हुए कहते हैं कि सिर्फ एक बम पूरे शहर को बर्बाद नहीं कर सकता। तुम पागल हो गए हो।

यामागुची कुछ और बताते, तभी बाहर एकाएक बिजली जैसी कौंधी और तेज धमाका हुआ। यामागुची जमीन पर गिर पड़े। ऑफिस भी क्षतिग्रस्त हो गया था। पूरे कमरे में टूटी हुई खिड़कियों के शीशे और मलबा पड़ा हुआ था।

दरअसल, इस सब की वजह अमेरिका का परमाणु बम था जिसे उसने तीन दिन में दूसरी बार जापान के दूसरे शहर नागासाकी पर गिराया था। इसका कोड नेम ‘फैट मैन’ था।

1945 की बात है। नागासाकी के रहने वाले नॉटिकल इंजीनियर यामागुची मित्सुबिशी हैवी इंडस्ट्रीज के लिए तीन महीने से हिरोशिमा में काम कर रहे थे। 5 अगस्त को ऑफिस में उनसे कहा गया कि अब उनका काम यहां पर खत्म हो गया है। अब वो अपने घर नागासाकी जा सकते हैं।

6 अगस्त की सुबह यामागुची अपने दो साथियों के साथ हिरोशिमा रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ रहे थे, तभी उन्हें ख्याल आया कि वे कोई सामान छोड़ आए हैं। वे अपने साथियों को छोड़ सामान लाने के लिए वापस जाने लगे। लगभग 8:15 बजे उन्होंने एक अमेरिकी बी-29 बमवर्षक विमान को शहर के ऊपर उड़ते हुए देखा। इसी दौरान यामागुची ने विमान से छोटी वस्तु को पैराशूट के साथ गिरते हुए देखा। अचानक आसमान से आंखों को अंधा कर देने वाली रोशनी फैल गई और फिर अचानक से कानफोड़ू धमाका हुआ। धमाके के साथ ही बवंडर जैसे उठा और यामागुची पास के आलू के खेत में जा गिरे। वह उस वक्त ग्राउंड जीरो से तीन किमी से भी कम दूरी पर थे।

यामागुची ने बताया था कि सिनेमाहॉल में मूवी शुरू होने से पहले वाली फीलिंग थी, जब खाली फ्रेम बिना किसी आवाज के चमक रहा होता है। परमाणु बम के विस्फोट ने सुबह के सूरज को लगभग धुंधला करने के लिए पर्याप्त धूल और मलबा उड़ा दिया था। उन्होंने सफेद धुएं के एक रेले को 3000 फीट तक उठते देखा जो मशरूम बादल जैसा था।

इसके बाद यामागुची मित्सुबिशी शिपयार्ड के पास पहुंचे। यहां पर मित्सुबिशी में काम करने वाले उनके दो साथी अकीरा इवानागा और कुनियोशी सातो मिले, जो इस परमाणु विस्फोट में बच गए थे।

यामागुची ने अपने दो साथियों के साथ एक कैंप में किसी तरह रात बिताई। इसके बाद 7 अगस्त को वे लोग रेलवे स्टेशन की ओर चल पड़े जिसके बारे में उन्होंने सुना था कि ट्रेनें अभी भी किसी तरह चल रही हैं।

जब वह स्टेशन जा रहे थे तो रास्ते में परमाणु बम से मची तबाही साफ दिख रही थी। कई जगहों पर अभी भी आग लगी हुई थी। इमारतों और सड़कों पर जली और पिघली हुई लाशें पड़ी हुई थीं। चलने के लिए भी जगह नहीं थी। कई पुल मलबे में बदल गए थे। पूरा शहर धूल से सना पड़ा था।

एक नदी पार करने के लिए यामागुची को शवों की एक परत के बीच से तैरने के लिए मजबूर होना पड़ा। स्टेशन पहुंचने पर वह जले हुए और हतप्रभ यात्रियों से भरी एक ट्रेन में चढ़े और अपने घर नागासाकी की रातभर की जर्नी के लिए निकल पड़े।

नागासाकी में गिरा परमाणु बम भी यामागुची का कुछ नहीं बिगाड़ सका

देखा जाए तो नागासाकी पर गिरा परमाणु बम हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम से भी अधिक शक्तिशाली था, लेकिन पहाड़ी इलाका होने की वजह से यामागुची के ऑफिस पर उतना असर नहीं हुआ।

यह इलाका उस जगह से लगभग 3 किमी की दूरी पर था जहां परमाणु बम गिराया गया। हालांकि, परमाणु बम का इतना असर जरूर हुआ कि यामागुची के घावों पर जो पटि्टयां बंधी थीं तो वो उड़ गईं। इसके बावजूद वह बच गए। यानी तीन दिन में दूसरी बार परमाणु बम के केंद्र से 3 किमी की दूरी पर होने से उनकी जान बच गई।

इसके बाद यामागुची को अपनी पत्नी और बेटे की चिंता हुई और वे घर की ओर भागे। जब उन्होंने देखा कि उनके घर का एक हिस्सा मलबे में बदल गया है तो उन्हें अनहोनी की आशंका हुई।

हालांकि, जल्द ही उन्हें पता चला कि दोनों को केवल मामूली चोटें आई हैं। दरअसल जब विस्फोट हुआ तो उनकी पत्नी और बच्चे एक सुरंग में छिप गए थे। यह भाग्य का एक और अजीब मोड़ था। यानी अगर यामागुची को हिरोशिमा में चोट नहीं लगी होती तो उनका परिवार नागासाकी में मारा गया होता।

दुनिया को परमाणु बम की भयावहता बताई
रेडिएशन के इतने सारे जोखिम झेलने के बावजूद यामागुची धीरे-धीरे ठीक हो गए और सामान्य जीवन जीने लगे। उन्होंने जापान पर कब्जे के दौरान अमेरिकी सेना के लिए अनुवादक के रूप में काम किया और बाद में मित्सुबिशी में अपना इंजीनियरिंग करियर फिर से शुरू करने से पहले स्कूल में पढ़ाया।

1950 के दशक में उनके और उनकी पत्नी के दो और बच्चे हुए। दोनों लड़कियां थीं। यामागुची कविता लिखकर हिरोशिमा और नागासाकी की भयावह यादों को भुला रहे थे। उन्होंने 2000 के दशक तक सार्वजनिक रूप से अपने अनुभवों पर चर्चा नहीं की। बाद में उन्होंने अपना संस्मरण जारी किया और परमाणु हथियार विरोधी आंदोलन का हिस्सा बन गए।

इसी बीच 2005 में बेटे कात्सुतोशी पर भी रेडिशन ने गहरा असर किया। कात्सुतोशी की कैंसर से मौत के बाद यामागुची का रुख बदल गया और दूसरे विश्व युद्ध के अंत में उनके साथ क्या हुआ था, इसके बारे में उन्होंने खुलकर बोलने का फैसला किया।

साल 2006 में यामागुची ने न्यूयॉर्क की यात्रा की और संयुक्त राष्ट्र के समक्ष परमाणु निरस्त्रीकरण के बारे में बातें कीं। इस दौरान उन्होंने अपने भाषण में कहा कि दो बार परमाणु बमबारी का अनुभव करने और बच निकलने के बाद, इसके बारे में बात करना मेरी नियति है।

देखा जाए तो यामागुची दो परमाणु विस्फोट झेलने वाले एकमात्र व्यक्ति नहीं थे। जब नागासाकी में दूसरा बम गिरा तो उनके सहकर्मी अकीरा इवानागा और कुनियोशी सातो भी नागासाकी में थे। इसके अलावा भी लगभग 165 लोगों ने दोनों हमलों का अनुभव किया होगा।

इसके बावजूद यामागुची एकमात्र व्यक्ति थे जिन्हें जापानी सरकार ने आधिकारिक तौर पर ‘निज्यू हिबाकुशा’ या दो बार परमाणु धमाके को झेलने वाले व्यक्ति’ के रूप में मान्यता दी थी। आखिरकार उन्होंने 2009 में यह सम्मान हासिल किया। एक साल बाद 2010 में 93 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई।

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