Knews Desk: नहाए-खाए के साथ तीन दिवसीय जीवित पुत्रिका व्रत, जिसे जितिया या जिउतिया भी कहा जाता है, शुरू हो चुका है। महिलाएं खासकर माएं अपनी संतान की लंबी आयु की कामना के लिए ये व्रत करती हैं। जितिया, मां अपने संतान की सुरक्षा और उनके लंबे जीवन की प्राप्ति के लिए करती हैं बिहार, झारखंड, और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में जितिया या जिउतिया व्रत मनाया जाता है। इस पर्व में निर्जला उपवास का पालन किया जाता है, जिससे इसका महत्व और बढ़ जाता है।
यद्यपि इस व्रत की मूल मान्यताएं पुत्र के सुरक्षा से जुड़ी हैं, लेकिन बदले दौर में इसे विभिन्न परंपराओं में संतान के लिए मान्यता दी जाती है, जिसमें बेटा और बेटी दोनों को समाहित किया जाता है। वे माताएं भी जो केवल पुत्री हैं, वे भी इस व्रत को अपनी बेटी की लंबी आयु और सुरक्षा के लिए करती हैं। इस पर्व के साथ कई तरह की मान्यताएं जुड़ी हैं, लेकिन यहां हम दो प्रमुख मान्यताओं का जिक्र करेंगे।
गरुड़ से राजा जीमूत वाहन ने बचाई थी बच्चे की जान
कहा जाता है कि सतयुग में एक राजा जीमूत वाहन थे। एक बार वह अपने ससुराल गए तो वहां लोगों को दुखी पाया। लोग डरे हुए थे और गरुड़ से पीड़ित हो रहे थे। लोगों को प्रतिदिन एक बच्चे या बूढ़े को गरुड़ का शिकार बनाना पड़ता था। उस दिन एक महिला के पुत्र की बारी थी, इसलिए महिला बिलख-बिलख कर रो रही थी। इसके परिणामस्वरूप, राजा मां के विलाप को सुनकर दुखी हो गए। तब जीमूत वाहन ने अपना शरीर गरुड़ के आगे हाजिर कर दिया। गरुड़ ने जीमूत वाहन की उदारता को देखकर उसे एक वरदान दिया, कहा कि भाद्रपद मास के प्रदोष व्यापिनी अष्टमी तिथि में स्त्री राजा जीमूत वाहन की पूजा करेगी, उसके पुत्र की आयु छिन्न नहीं होगी।
अभिमन्यु की पत्नी ने भी किया था जितिया
दूसरी कथा महाभारत के द्वापर युग से जुड़ी है। कहा जाता है कि जितिया व्रत करके अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा ने गर्भ में पल रहे शिशु का उसके पार्थिव दोस्त अश्वत्थामा के हमले से बचाया था। इस संदर्भ में उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु की रक्षा करने में भगवान श्रीकृष्ण ने भी भागीदारी की थी।
कब है उपवास, जानिए पारण की तिथि
इस साल जितिया व्रत की तिथि को लेकर दो तरह की बातें सामने आ रही है. कुछ लोग 6 तारीख को उपवास की तारीख बता रहे हैं तो कुछ लोग सात अक्टूबर को. प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित मार्कंडेय दूबे ने जितिया कब है इसे व्याख्या के साथ बताया है. वह कहते हैं- जीवित्पुत्रिका व्रत में सबसे बड़ी शास्त्रीय व्यवस्था है की प्रदोष काल में अष्टमी तिथि होनी चाहिए. प्रदोष काल अर्थात संध्या से रात्रि तक का समय अष्टमी तिथि युक्त होना चाहिए.
उस समय ही राजा जीमूत वाहन की पूजा की जाए और यह संयोग इस वर्ष 6 अक्टूबर 2023 शुक्रवार को प्राप्त हो रहा है. गोपालगंज जिले के रहने वाले पंडित मार्कंडेय दूबे ने कहा कि काशी के पंचांगों, निर्णय सिंधु, कृतसर समूच्चय तथा निर्णयामृत इत्यादि कई ग्रंथो का सारांश यही है की 6 अक्टूबर 2023 शुक्रवार को जीवित्पुत्रिका व्रत के नियमित उपवास कर 7 अक्टूबर 2023 को दिन में 10:21 के बाद पारण किया जाए.