उभान ने मंच से दिया सन्देश उत्तराखंड एक, उत्तराखंड की भाषा एक

उत्तराखंड, देहरादून : प्रेस क्लब देहरादून में उत्तराखंडी भाषा न्यास (उभान्) के तत्वाधान में उत्तराखंड एक उत्तराखंडी भाषा एक पर एक पत्रकार वार्ता का आयोजन किया गया। इस वार्ता की अध्यक्षता न्यास के अध्यक्ष नीलाबर पांडेय द्वारा की गई। मंच संचालन डॉ. एम.आर. सकलानी द्वारा किया गया।

मंच संचालन करते हुए डॉ. सकलानी ने कहा कि उत्तराखंड एक उत्तराखंड की भाषा एक विचार का हम स्वागत करते हैं । जब उत्तराखंड राज्य स्थापित हुआ था उसी दौर से इस विषय पर काम आरंभ हो जाना चाहिए था। डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल ने कहा कि हिंदी भी पहले कोई भाषा नहीं थी, उसको भी कई लोक भाषाओं के शब्दों को जोड़कर तैयार किया गया था। पृथ्वी सिंह केदारखंडी ने कहा कि हमने पूरा मन बनाया है कि हम गढ़वाली और कुमांऊनी भाषा को अलग-अलग बात न करें। हमें उत्तराखंड के लिए एक भाषा की बात करनी चाहिए। उन्होंने कहा संविधान की आठवीं सूची में गढ़वाली 12वीं और कुमाऊनी 22 वें नंबर पर है यदि दोनों लोक भाषाएं उत्तराखंडी के रूप में एक होती हैं तो हमारा प्रतिशत बढ़कर 80 से ऊपर होगा। जिससे हमारी भाषाओं को संविधान में स्थान मिलने में आसानी हो जायेगी।

डॉ बिहारीलाल जलंधरी ने कहा कि आज हम गढ़वाली कुमांऊनी के नाम पर बंटे हुए हैं। हमारी पहचान उत्तराखंड है और यदि उत्तराखंडी के लिए या उत्तराखंड की प्रतिनिधि भाषा के लिए काम करें, जैसे हिंदी और अंग्रेजी अस्तित्व में आई, कई लोक भाषाओं के शब्द इसके साथ जुड़े उसके बाद आज यह राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम कर रही है। इस प्रकार हम गढ़वाली, कुमांऊनी, जौनसारी या अन्य उत्तराखंड की जिन भाषाओं का साहित्य उपलब्ध है, उनके समान शब्दों को संकलित कर एक विषय तैयार करने की बात कर रहे हैं, जिसमें हमें सफलता मिली है और मौळ्यार नाम से एक प्रारूप पाठ्यक्रम की सौ से अधिक प्रवासी संस्थाओं द्वारा नौनिहालों को पढ़ाया जा रहा है। हमें उत्तराखंड में भाषा के आधार पर रोजगार का साधन विकसित करना होगा। त्रिभाषीय फॉर्मूला के तहत उत्तराखंड में नौनिहालों को शिक्षा दी जा सके, जो इसकी परीक्षा पास करेगा उसे शासकीय सेवा में स्थान मिलेगा व भाषा के रूप में आरक्षण भी मिले।

न्यास के अध्यक्ष नीलाम्बर पांडेय ने कहा कि हम खड़ी बोली के प्रथम कवि ‘गुमानी पंत’ का नाम भूल गए। वह पहले खड़ी बोली के कवि रहे। उन्होंने कहा क्या उत्तराखंड के स्कूलों में जैसे हिंदी में बृज, अवधी, मगधी, सधुक्कड़ी, मैथिली, आदि भाषाओं के कालजई साहित्यकारों को पढ़ रहे हैं, उसी तरह उतराखंडी भाषा में कुमांऊनी और गढ़वाली के कालजई साहित्यकारों की रचनाओं को पढ़ेंगे। हमारा उद्देश्य है कि जिस तरह भारत सरकार द्वारा हिन्दी को संरक्षण दिया गया है, उसी तरह उत्तराखंड सरकार इस मुहिम के लिए उतराखंडी भाषा परिषद की स्थापना करे।

कोषाध्यक्ष सुल्तान सिंह तोमर ने कहा कि राज्य बनने के साथ ही इस विषय पर सरकार को काम करना चाहिए था। लेकिन इन 23 वर्षों में जो काम सरकार नहीं कर पाई उत्तराखंडी भाषा न्यास ने उस पर काम करने की ठानी है। हम यह प्रस्ताव लगातार सरकार को देते रहेंगे।

संगोष्ठी में कई विद्वानों ने अपने विचार रखे। उपस्थित मनीषियों में न्यास के अध्यक्ष नीलांबर पांडेय, सचिव डॉ बिहारीलाल जलंधरी, कोषाध्यक्ष सुल्तान सिंह तोमर, प्रभारी उत्तराखंड डॉ एम.आर. सकलानी, प्रभारी दिल्ली पृथ्वी सिंह केदारखंडी, प्रभारी पंजाब श्री उत्तम सिंह बागड़ी, संयोजक गढ़वाल मंडल डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल, सुरेश मनमौजी, लोकेंद्र प्रसाद नौटियाल, उत्तरापंत बहुगुणा, जगदीश प्रसाद अंथवाल, नरेंद्र शर्मा अमन, ओंकार सिंह नेगी आदि कई व्यक्तियों ने भाग लिया। विद्वानों ने इस विचार का खुले दिल से स्वागत किया तथा भविष्य में साथ मिलकर काम करने के लिए अपनी सहमति दी।

 

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