देहरादून, भोजन में लोग साक सब्जियों के साथ ही बड़ी संख्या में मांस का भी सेवन करते हैं। जगह जगह आपको मांस बिक्री की दुकानेें भी देखने को मिल जायेंगी। मांस की बिक्री में ज्यादातर बकरे व मुर्गे का मांस बिकता है। लेकिन क्या आपको पता है कि यह मांस कहां से आता है। और क्या जो मांस आप दुकानों से खरीदते हैं। वह कितना सुरक्षित है। इसको लेकर एक चैंकाने वाला खुलासा हुआ है। दरअसल मांस की दुकानों में जो मांस आता है उसका परीक्षण होता है लेकिन लम्बे समय से राजधानी में मांस बिना परीक्षण के दुकानों में धड़ल्ले से बिक रहा है। जब इसको लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी तो हाईकोर्ट ने इसे लेकर नगर निगम देहरादून और खाद्य सुरक्षा विभाग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। जिसकी अगली सुनवाई 16 अप्रैल को होगी।
स्लाटर हाउस पिछले चार सालों से बंद
देहरादून में बिना जांच के मांस बिक्री को लेकर शहर निवासी विकेश सिंह नेगी के द्वारा दायर की गयी एक जनहित याचिका में बताया गया है कि शहर में केवल एकमात्र स्लाटर हाउस है वो भी बीते चार वर्षों से बंद है। इसका मतलब शहर में जो मटन चिकन की दुकानों में मांस बिक रहा है वह बिना कोई परीक्षण किये बिक रहा है।
देहरादून में बिना जांच के मांस बिक्री को लेकर शहर निवासी विकेश सिंह नेगी के द्वारा दायर की गयी एक जनहित याचिका में बताया गया है कि शहर में केवल एकमात्र स्लाटर हाउस है वो भी बीते चार वर्षों से बंद है। इसका मतलब शहर में जो मटन चिकन की दुकानों में मांस बिक रहा है वह बिना कोई परीक्षण किये बिक रहा है।
खाद्य सुरक्षा विभाग और नगर निगम दोनों परीक्षण से पल्ला झाड़ रहे
याचिका कर्ता ने बताया कि जब उसके द्वारा मांस परीक्षण के सम्बन्ध मेें आरटीआइ में पूछा तो खाद्य सुरक्षा विभाग द्वारा कहा गया कि दुकानों का आबंटननगर निगम देहरादून करता है इसलिए परीक्षण भी वह ही करेगा वहीं नगर निगम देहरादून से पूछने पर जवाब मिला कि दुकानों का लाइसेंस खाद्य सुरक्षा विभाग द्वारा दिया जाता है। इसलिए जांच का जिम्मा उसका है। साफ है कि दोनो अपनी जिम्मेदारियां एक दूसरे पर डाल रहे हैं और लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इसकी सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने मामले में खाद्य सुरक्षा विभाग और नगर निगम देहरादून को नोटिस जारी कर 16 अप्रैल तक जवाब मांगा है।
याचिका कर्ता ने बताया कि जब उसके द्वारा मांस परीक्षण के सम्बन्ध मेें आरटीआइ में पूछा तो खाद्य सुरक्षा विभाग द्वारा कहा गया कि दुकानों का आबंटननगर निगम देहरादून करता है इसलिए परीक्षण भी वह ही करेगा वहीं नगर निगम देहरादून से पूछने पर जवाब मिला कि दुकानों का लाइसेंस खाद्य सुरक्षा विभाग द्वारा दिया जाता है। इसलिए जांच का जिम्मा उसका है। साफ है कि दोनो अपनी जिम्मेदारियां एक दूसरे पर डाल रहे हैं और लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इसकी सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने मामले में खाद्य सुरक्षा विभाग और नगर निगम देहरादून को नोटिस जारी कर 16 अप्रैल तक जवाब मांगा है।