गोवंश हुए गायब ,मुकदमा हुआ दायर !

उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के मेयर सौरभ थपलियाल और नगर आयुक्त नमामि बंसल के नेतृत्व में नगर निगम की टीम ने आखिरकार एक व्यक्ति को पट्टे पर दिए गए नगर निगम गौशाला पर छापा मारा और पाया कि गायें दयनीय हालत में है और उनमें से कई की मौत होने वाली है और रिकॉर्ड के मुताबिक गायों की संख्या कम पाई गई। नगर निगम की टीम को मौके पर कुछ एक्सपायर हो चुकी दवाइयाँ भी मिलीं। लगातार शिकायतों के बावजूद नगर निगम देहरादून शंकरपुर गौशाला के कुप्रबंधन के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने में विफल रहा है। महापौर सौरभ थपलियाल के नेतृत्व में हाल ही में किए गए औचक निरीक्षण ने एक बार फिर घोर अनियमितताओं को उजागर किया है, जिससे नगर निगम की जवाबदेही पर गंभीर चिंताएँ पैदा हुई हैं।आपको बता दें इससे पहले भी प्रदेश में गौशालाओं की दयनीय स्थिति देखने को मिली है जिसमे गौ हत्या ,गौ चारा, अस्वस्थ गौमाता जैसी अनिमताये पाए गई। हर बार कठोर कार्यवाही ने नाम पर टाला गया आज यही वजह है की अब गौ हत्या के साथ गौशाला से गाय तक गायब होने लगी है। गोशाला के लिए प्रति पशु के हिसाब से 80 रूपये का भुगतान किया जाता है 225 पशु गायब है इनके एक दिन की देख रेख का करीब 18 हजार बिल बनता है। और एक माह में करीब साढ़े पांच लाख जो नगर निगम से भुगतान किया जाता रहा है पशुओ के गायब होने के बाद भी इसका भुगतान दून एनिमल वेलफेयर फाउंडेशन नाम की संस्था को किया गया। नगर निगम ने मामले की गंभीरता को देखते हुए संस्था पर मुकदमा दर्ज किया है।अब आप अंदाजा लगा सकते है की इस तरह की संस्थाएं गौ रक्षा के नाम पर सरकार को हर साल करोडो का चूना लगा रही है। इस पुरे मामले पर राजनिति तेज हो गई है विपक्ष ने भी निगम की कार्यपरणाली पर सवाल खड़े कर दिये है।

आपको बता दे देहरादून जिले में शंकरपुर गौशाला को उसी व्यक्ति को पट्टे पर दिया गया है जिस पर रतनपुर और ऋषिकेश में भी गायों की उपेक्षा का आरोप लगाया गया था। उन्होंने यह भी दावा किया कि शंकरपुर में रिकॉर्ड और जमीनी स्थिति में पूरी तरह से अंतर है जिसमे करीब 225 गोवंश गायब मिले है और 14 गोवंश बुरी हालत में मिले है। इन खामियों के बावजूद, गौशाला का प्रबंधन करने वाला व्यक्ति निगम से बड़ी मात्रा में धन वसूल रहा है। कथित तौर पर निगम रतनपुर में गौशाला के लिए भी भुगतान कर रहा था, जिसका प्रबंधन भी बुरी तरह से खराब था और लगातार सार्वजनिक शिकायतों के कारण इसे बंद करना पड़ा।
इस मामले में कई संगठनों ने निगम अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई किए जाने से पहले पशुपालन मंत्री सौरभ बहुगुणा, जिलाधिकारी सविन बंसल से मिलना पड़ा था। उन्होंने जिलाधिकारी और मुख्य नगर आयुक्त को 14 सूत्रीय मांग पत्र सौंपा था, जिसमें क्रूरता और अनियमितताओं का ब्यौरा दिया गया था। महापौर के आश्वासन के बावजूद पहले कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई बार-बार की शिकायतों को नगर निगम ने क्यों नजरअंदाज किया।

देहरादून मेयर के औचक निरीक्षण में दयनीय स्थिति में पड़े पशु एक्सपायर हो चुकी दवाइयाँ, प्राथमिक उपचार की कमी और गायब रिकॉर्ड पाए गए हैं। मौजूद पशुओं की संख्या पंजीकृत पशुओं की संख्या से 225 कम थी और मृत पशुओं की पहचान की अंगूठियाँ वापस नहीं की गई थीं। जिला प्रशासन को कार्रवाई करने में इतना समय क्यों लगा। विपक्ष ने इसे सरकार की घोर लापरवाही बताया है।

हलाकि कि निरीक्षण के बाद मेयर थपलियाल ने गौशाला का प्रबंधन करने वाली संस्था के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया है। हालांकि यह एक सकारात्मक कदम है लेकिन यह देखना अभी बाकी है कि क्या इससे वास्तव में सुधार होगा या यह महज एक इशारा बनकर रह जाएगा। क्या निगरानी के लिए जिम्मेदार पशु चिकित्सा अधिकारियों को भी जवाबदेह ठहराया जाएगा। यह घटना नगर निगम की निगरानी के बारे में व्यापक चिंताएँ पैदा करती है। नगर निगम देहरादून में एक शिकायत प्रकोष्ठ है फिर भी कहि न कहि शिकायतों को अनदेखा किया गया है। क्या पशु कल्याण की रक्षा करने में सरकार विफल हो रही है भविष्य में ऐसी लापरवाही को रोकने के लिए क्या उपाय किए जाएँगे। शंकरपुर गौशाला का मामला प्रशासन के लिए एक चेतावनी है। नगर निगम प्रशासन जमीनी हकीकत को समझ पाता है या नहीं आने वाला समय बतायेगा।

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