उत्तराखंड: ये कैसी मजबूरी, टिकट नहीं जरूरी!

उत्तराखंड- उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही राज्य में राजनीतिक सरगर्मियां तेज होती जा रही है। इसी के तहत नेताओं का एक दल से दूसरे दल जाना, चुनाव लड़ना या नहीं लड़ना के साथ ही अपनी ही पार्टी के मैनेजमेंट पर सवाल खड़े करना शामिल है। ऐसा ही कुल उत्तराखंड कांग्रेस में देखने को मिल रहा है। दअरसल लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के चुनाव प्रबंधन को लेकर पूर्व सीएम हरीश रावत ने चिंता जताई हैं। सोशल मीडिया पर अपनी चिंता को साझा करते हुए उन्होंने पिछले चुनावों के अनुभवों को गिनाते हुए चुनाव प्रबंधन का महत्व समझाया। साफ किया कि कप्तान को ही फ्रंट में रहकर नेतृत्व करते हुए उदाहरण पेश करना होगा। हरीश रावत की इस चिंता के बाद राज्य की राजनीति में इस मुद्दे पर चर्चा शुरू हो गई है। वहीं एक तरफ जहां हरीश रावत अपनी ही पार्टी के चुनावी मैनेजमेंट में सवाल उठा रहे हैं। तो दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं ने चुनाव लड़ने से इंकार किया है। जिसमें कांग्रेस विधायक प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य समेत अन्य नेता भी शामिल है। हालांकि खबर है कि लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार कर रहे कांग्रेस नेताओं की ना के फिलहाल कोई मायने नहीं है।

कांग्रेस हाईकमान उत्तराखंड की हर सीट पर जीत की संभावना वाले प्रत्याशी को चुनना चाहता है। जीत के पैमाने पर जो नेता सबसे बेहतर पाया जाएगा, उसे ही चुनाव लड़ना होगा। इसमें नया चेहरा भी हो सकता है और वो भी जो फिलहाल चुनाव लड़ने से इंकार कर रहे हैं। ऐसे में छह मार्च को दिल्ली में होने जा रही स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में काफी कुछ तस्वीर साफ होने की उम्मीद है। आम दावेदारों के साथ ही पार्टी बाकी दिग्गजों के नाम भी स्क्रीनिंग कमेटी अपने पैनल में रख सकती है। वहीं चुनाव से पहले भाजपा ने कांग्रेस के कई नेताओं के पार्टी में शामिल होने का दावा किया। इसी के तहत भाजपा का टिहरी लोकसभा सीट का टिकट फाइनल होने से कांग्रेस विधायक प्रीतम सिंह की भाजपा में जाने की चर्चाओं पर भी विराम लग गया है। खुद प्रीतम सिंह ने आगे आकर कहा कि जो लोग उनके भाजपा में जाने की बात कर माहौल खराब कर रहे थे, अब उनके मुंह पर तमाचा लग चुका है। सवाल ये है कि क्या ऐसी तैयारी से कांग्रेस 24 का दंगल जीत पाएगी।

कुल मिलाकर उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही राज्य में राजनीतिक सरगर्मियां तेज होती जा रही है। कहीं नेताओं का एक दल से दूसरे दल जाने की चर्चाएं, तो दूसरी ओर नेताओं के चुनाव लड़ना या नहीं लड़ना के साथ ही अपनी ही पार्टी के मैनेजमेंट पर सवाल खड़े करना शामिल है। ऐसे में देखना होगा आखिर कांग्रेस कैसे 2024 की चुनाव जंग को लड़ती है।

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