उत्तराखंड- उत्तराखंड में पहाड़वासियों को लगातार मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। आलम ये है कि डबल इंजन की रफ्तार से विकास का दावा करने वाली बीजेपी के राज में भी ये संघर्ष कम नहीं हुआ है। दअरसल, उत्तराखंड के टिहरी और चकराता से दुखी करने और सरकार के दावों की पोल खोलती हुई तस्वीरें सामने आई है। पहले टिहरी जनपद की बात करें तो यहां प्रतापनगर में चौंड- लंबगांव सीएचसी अस्पताल का एक वीडियो सामने आया है। जहां दर्द से एक महिला कराह रही है लेकिन अस्पताल में महिला को उपचार देने वाला एक भी स्टाफ नहीं है। पीड़िता के तीमारदार ने वीडियो बनाकर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खोल दी। वहीं इस मामले की टिहरी जिलाप्रशासन ने भी जांच कराई। जांच में मुख्य चिकित्साधिकारी की ओर से इन सभी आरोपों का खंडन किया गया है। मुख्य चिकित्साधिकारी की ओर से जारी पत्र में कहा गया है कि अस्पताल का स्टाफ अस्पताल के प्रथम तल में महिला मरीज के उपचार में व्यस्त था। वहीं दूसरी तस्वीर चकराता के उदावा गांव की है जहां सड़क ना होने की वजह से बीमार बुजुर्ग को ग्रामीण डंडी कंडी पर लादकर 9 किलोमीटर तक पैदल चले। बताया जा रहा है कि गांव में रहने वाले 70 वर्षीय कडिया भारती की अचानक तबीयत खराब हो गई। गांव में सड़क ना होने से बीमार बुजुर्ग को डंडी कंडी के सहारे बर्फीले रास्ते से होकर ग्रामीण किसी तरह उपजिला चिकित्सालय विकासनगर लेकर आए लेकिन बुजुर्ग की हालत गंभीर होने पर यहां से उन्हें हायर सेंटर रेफर कर दिया गया, जहां उपचार के दौरान बुजुर्ग ने दम तोड़ दिया। चिकित्सकों की मानें तो बुजुर्ग को अस्पताल पहुंचाने में देरी हुई, जिस वजह से उन्हें समय से इलाज नहीं मिल पाया। वहीं राज्य में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओँ पर आरोप प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है। ऐसे में सवाल ये है कि आखिर कब पहाड़ प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं दुरूस्त होंगी।
आपको बता दें कि राज्य को बने 23 साल से ज्यादा का समय हो गया है लेकिन आज भी पहाड़वासियों को मूलभूत सुविधाएँ के लिए परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। बेहतर सड़क, शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य सुविधाओँ के अभाव में पहाड़ों से पलायन लगातार जारी है। पलायन आयोग की रिपोर्ट की माने तो उत्तराखंड में हर रोज औसतन 230 लोग पहाड़ से पलायन कर रहे हैं। जबकि 2018 से पहले तक यह आंकड़ा 138 था। रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड में वर्ष 2008 से 2018 के बीच कुल 5,02,717 लोगों ने पलायन किया। जबकि पलायन आयोग के गठन के बाद 2018 से 2022 के बीच बीते चार वर्षों में ही यह आंकड़ा 3,35,841 पहुंच गया है। बेहतर सड़क, शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य सुविधाओँ के अभाव में पहाड़ों से पलायन लगातार जारी है।
कुल मिलाकर राज्य गठन के 23 साल बाद भी पहाड़वासियों को मूलभूत सुविधाओँ के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। ये चिंता की बात है कि मौजूदा डबल इंजन की सरकार में भी लोग बेहतर सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए पहाड़ों से पलायन कर रहे हैं। हांलाकि इस बात में भी कोई दोराय नहीं है कि पहाड़ों की भौगोलिक स्थिति कठिन है ऐसे में देखना होगा कि आखिर कब तक पहाड़वासियों की समस्याओं का समाधान सरकार कर पाती है?