उत्तराखंड: दल बदल का दर्द !

उत्तराखंड- उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव से पहले राज्य में दल- बदल का खेल शुरू हो गया है। चुनाव से पहले विपक्षी दलों के एकजुटता के साथ भाजपा की जीत के रथ को रोकने के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। अभी हाल ही में आम आदमी पार्टी से सैंकड़ों नेताओं ने भाजपा का दामन थामा, इसके बाद अब कांग्रेस खैमे के भी सैंकड़ों नेता भाजपा में शामिल हो गए हैं। कांग्रेस की पछुवादून जिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष लक्ष्मी अग्रवाल, कांग्रेस नेता पीके अग्रवाल समेत पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया है। वहीं राज्य में एक तरफ जहां नेताओं का दल बदल हो रहा है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की चिंता पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं की दावेदारियों ने बढ़ा दी है।

दअरसल पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने हरिद्वार लोकसभा सीट से अपने बेटे को टिकट देने की इच्छा जताई है। इस बीच कांग्रेस नेता डॉ. हरक सिंह रावत जो कि हरिद्वार लोकसभा सीट से तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने अब खुद ही चुनाव ना लड़ने की इच्छा जताई है। उनका कहना है कि अगर पार्टी टिकट देगी तो वो पीछे भी नहीं हटेंगे लेकिन अब खुद दावेदारी नहीं करेंगे। उनके इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं। कांग्रेस की ओर से हरिद्वार लोकसभा सीट पर अब तक पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत खुले दावेदार नजर आ रहे थे लेकिन अब चुनाव से ठीक पहले हरक सिंह ने अपने कदम पीछे खींचने के संकेत दिए हैं। इस बीच राज्य में होने वाले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हरक सिंह रावत की एक बार फिर भाजपा में वापसी की अफवाह उड़ाई जा रही है। बीजेपी के नेता उन्हें बधाई भी देने लग गए हैं। हरक सिंह रावत का कहना है कि कल क्या होगा यह तो उन्हें भी नहीं पता फिलहाल उनकी इस बारे में किसी भी भाजपा नेता से बात नहीं हुई है। ऐसे में सवाल ये है कि क्या चुनाव से पहले हरक भाजपा में शामिल होंगे, क्या राजनीति अब सिर्फ अवसरवादिता ही रह गई है। विचारधारा की इसमें अब कोई गुंजाइश नहीं है।

कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव से पहले राज्य में दलबदल का खेल शुरू हो गया है। भाजपा चुनाव से पहले एक के बाद एक बड़े झटके विपक्षी दलों को दे रही है। इसके बाद भी भाजपा कांग्रेस, यूकेडी, आम आदमी पार्टी समेत तमाम नेताओं से संपर्क साधकर उन्हें पार्टी में लाने की तैयारी कर रही है। ऐसे में सवाल ये है कि एक के बाद एक विपक्ष के नेताओं के पार्टी छोड़ने से विपक्षी दल भाजपा को कैसे टक्कर दे पाएंगे। क्या चुनाव से पहले हरक सिंह रावत भाजपा में शामिल होंगे, क्या राजनीति अब सिर्फ अवसरवादिता का शिकार हो गई है। क्या राजनीति में अब विचारधारा की कोई जगह नहीं ऐसे अनगिनत सवाल अपने जवाब की तलाश में हैं?

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