उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी धामी सरकार की मुश्किलें राज्य के शिक्षकों ने बढ़ा दी है…दअरसल पिछले लंबे समय से सिर्फ आश्वासन मिलने और मांगों पर कोई सकारात्मक कार्रवाई ना होने से शिक्षक नाराज है। नाराज शिक्षकों ने सरकार पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया है। साथ ही चेतावनी दी है कि सरकार ने लंबित मांगों पर ठोस कार्यवाही नहीं की तो 2024 के लोकसभा चुनाव का बहिष्कार किया जाएगा। इसके साथ ही शिक्षकों ने ऐलान किया है कि वे ना तो विभागीय प्रशिक्षण में शामिल होंगे और ना ही अब ऑनलाइन हाजिरी भरेंगे। प्रभारी के रूप में प्रधानाचार्य का काम देख रहे शिक्षक भी अपनी जिम्मेदारी छोड़ देंगे। इसके साथ ही छह नवंबर को शिक्षा निदेशालय की तालाबंदी भी नाराज शिक्षक करेंगे..राजकीय शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष राम सिंह चौहान ने बताया कि चार अगस्त को शिक्षा मंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में 35 मांगों पर चर्चा हुई थी। करीब-करीब सब पर उचित कार्रवाई का आश्वासन भी दिया गया। पर, कोई कदम नहीं उठाया गया। ऐसे में शिक्षकों को यह आंदोलन आगे बढ़ाने का निर्णय करना पड़ा है। उन्होने बताया कि छह नवंबर को नाराज शिक्षक ऑनलाइन जुड़कर संकल्प लेंगे कि वो लोकसभा चुनाव में मतदान नहीं करेंगे….वहीं राजकीय शिक्षक संघ के इस चुनावी बहिष्कार के बाद तमाम विपक्षी दलों ने सरकार पर हमला शुरू कर दिया है। ऐसे में सवाल ये है कि क्या राज्य के सबसे बड़े संगठन के चुनावी बहिष्कार से बीजेपी की जीत का रथ रुक जाएगा….
लोकसभा चुनाव के लिए उत्तराखंड में अब 6 महीने से भी कम का समय रह गया है….सरकार और संगठन ने इस दंगल को जीतने के लिए प्लान भी तैयार कर लिया है। लेकिन इन्ही तैयारियों के बीच सरकार और संगठन की टेंशन राज्य के शिक्षकों ने बढ़ा दी है। दअरसल राज्य के सबसे बड़े कर्मचारी संगठन राजकीय शिक्षक संघ ने लोकसभा चुनाव के बहिष्कार का फैसला लिया है। इसके साथ ही शिक्षकों ने ऐलान किया है कि वे ना तो विभागीय प्रशिक्षण में शामिल होंगे और ना ही अब ऑनलाइन हाजिरी भरेंगे। प्रभारी के रूप में प्रधानाचार्य का काम देख रहे शिक्षक भी अपनी जिम्मेदारी छोड़ देंगे। इसके साथ ही छह नवंबर को शिक्षा निदेशालय की तालाबंदी भी नाराज शिक्षक करेंगे..राजकीय शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष राम सिंह चौहान ने बताया कि चार अगस्त को शिक्षा मंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में 35 मांगों पर चर्चा हुई थी। करीब-करीब सब पर उचित कार्रवाई का आश्वासन भी दिया गया। पर, कोई कदम नहीं उठाया गया। ऐसे में शिक्षकों को यह आंदोलन आगे बढ़ाने का निर्णय करना पड़ा है। उन्होने बताया कि छह नवंबर को नाराज शिक्षक ऑनलाइन जुड़कर संकल्प लेंगे कि वो लोकसभा चुनाव में मतदान नहीं करेंगे….
आपको बता दें कि राज्य के शिक्षकों की नाराजगी की कई वजहें हैं। जिसके तहत बीते कई वर्षों से एलटी, हेडमास्टर और प्रिंसिपल के प्रमोशन की प्रक्रिया लटकी हुई है। शिक्षक वर्षों से एक ही पद पर काम करते हुए रिटायर हो रहे हैं। अब तक सरकार इसका समाधान नहीं निकाल पाई है। इसी तरह का विवाद चयन और प्रोन्नत वेतनमान पर एक इंक्रीमेंट का भी है। इसका समाधान भी नहीं हुआ है। वर्ष 2018 में रुके यात्रावकाश पर मंत्री के निर्देश पर कुछ समय पहले डीजी-शिक्षा ने आदेश कर दिया था। लेकिन, वित्त विभाग की आपत्ति के बाद उस आदेश को स्थगित कर दिया गया। एक के बाद एक कई मांगों पर कार्रवाई ना होने से नाराज शिक्षकों ने थक हारकर चुनाव के बहिष्कार का फैसला लिया है….वहीं शिक्षकों के इस ऐलान के बाद सत्तापक्ष और विपक्ष आमने सामने आ गया है
कुल मिलाकर केंद्र के साथ ही राज्य सरकार की मुश्किलें कर्मचारी संगठनों ने बढ़ा दी है। हांलाकि सरकार जल्द समाधान का आश्वासन तो दे रही है। लेकिन समाधान नहीं कर पा रही है। इसके पीछे की भी कई वजहें मानी जा रही है। माना जा रहा है कि अगर सरकार शिक्षकों की मांगों का निस्तारण करती है तो अन्य संगठन भी अपनी मांगों को मनाने के लिए सड़कों पर उतरेंगे….ऐसे में सरकार पर दबाव और बढ़ जाएगा…सवाल ये है कि क्या सरकार चुनाव से पहले राजकीय शिक्षक संघ की नाराजगी को दूर कर पाएगी, क्या शिक्षकों की नाराजगी बीजेपी की जीत की हैट्रिक पर ब्रेक लगा देगी