रिपोर्ट- मो0 रज़ी सिद्दीकी
बाराबंकी। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में नई तकनीक से इको फ्रेंडली खेती की शुरुआत की गई है। CSIR और CIMAP (सेंट्रल इंस्टीट्यूट मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स) ने बाराबंकी जिले के भगौली इलाके में उत्तर प्रदेश का पहला ‘सस्टेनेबल एरोमा क्लस्टर’ लॉन्च किया है। जिसमें किसानों को सिखाया जा रहा है कि किस तरह से आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल खेती की जाए और उसे बंपर मुनाफा कमाया जाए। साथ ही इस तकनीक से पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान नहीं पहुंचता है।
भगौली में पर्यावरण के अनुकूल तरीके से खेती करके 30 किसानों की भूमि पर सीमैप द्वारा टिकाऊ क्लस्टर विकसित किया गया है। क्लस्टर कृषि में स्थायी प्रथाओं के उपयोग का एक उदाहरण स्थापित करेगा और देश को शून्य-कार्बन उत्सर्जन लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगा। सीमैप ने क्लस्टर में मिंट की एक उच्च उपज वाली किस्म (सीआईएम-उन्नति) लगाई है, जो पौधों के कीटों और बीमारियों सहित जैविक तनाव के लिए प्रतिरोधी है और सूखा, असमय बारिश, लवणता, गर्मी, ठंड और भारी धातुओं सहित अजैविक तनावों के प्रति सहिष्णु है। क्लस्टर पूरे राज्य में किसानों को दोहराने के लिए एक मॉडल के रूप में काम करेगा।
सीमैप के वैज्ञानिकों ने किसानों दिखाया कि कैसे खेतों की सिंचाई के लिए और सटीक और कुशल तरीके से कीटनाशकों के छिड़काव के लिए ड्रोन का उपयोग किया जाता है। उन्हें दिखाया गया कि कैसे हाथ से सिंचाई करने से पानी की बर्बादी होती है और हाथ से कीटनाशक छिड़काव से इसमें शामिल लोगों के साथ-साथ पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। किसानों को मिट्टी परीक्षण के टिप्स भी दिए गए। इस अवसर पर पुदीने का तेल निकालने के लिए सौर ऊर्जा संचालित इकाइयों का भी उद्घाटन किया गया।
किसानों ने बताया कि संस्थान ने क्लस्टर के विकास में अर्ली मिंट टेक्नोलॉजी नामक एक बेहतर कृषि तकनीक का इस्तेमाल किया है। तकनीक 20-25% सिंचाई के पानी को बचाती है और खरपतवार के संक्रमण को कम करती है। इसके अलावा, यह फसल की जल्दी परिपक्वता में मदद करता है। CIMAP द्वारा विकसित क्लस्टर का उद्देश्य कृषि में स्थायी प्रथाओं को अपनाकर शून्य-कार्बन उत्सर्जन करना है। पर्यावरण को बचाने और स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने के लिए इसी तरह के क्लस्टर राज्य के अन्य हिस्सों में स्थापित किए जाएंगे।