राजनीति पूरी,विधान भवन कितना जरुरी ! 

उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, लोकसभा चुनाव से पहले देवभूमि उत्तराखंड में राजधानी का मुद्दा गरमा गया है। दअरसल देहरादून के रायपुर में नए विधानसभा भवन के लिए मिली वन भूमि की एनओसी केंद्र सरकार ने निरस्त कर दी है जिसके बाद राज्य में स्थायी राजधानी बनाम अस्थायी राजधानी का मुद्दा भी गरमा गया है। बता दें कि देवभूमि उत्तराखंड में देहरादून के विधानभवन के अलावा गैरसैंण में भी विधानसभा भवन मौजूद है। ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में तो सरकार ने विधानसभा के साथ ही पूरी टाउनशिप ही बसाई हुई है, लेकिन यहां सिर्फ बजट सत्र के अलावा, 26 जनवरी, 15 अगस्त और राज्य स्थापना दिवस पर ही कोई हलचल रहती है, बाकी समय टाउनशिप वीरान रहती है। वहीं सरकार ने पूर्व में भी गैरसैंण विधानसभा भवन में संसदीय शोध केंद्र बनाने की घोषणा की थी, लेकिन इसका भी कहीं अता-पता नहीं चल पाया है। इस कारण गैरसैंण विधानसभा का प्रयोग सिर्फ बजट सत्र के दौरान ही हो पाता है। दूसरी तरफ देहरादून के मौजूदा विधानसभा भवन में सरकार लगातार नए निर्माण कराती रहती है, ऐसे में रायपुर में तीसरे विधानसभा भवन की उपयोगिता पर सवाल उठ रहे हैं…वहीं विपक्ष ने केंद्र के फैसले का स्वागत करते हुए धामी सरकार पर विधानसभा के नाम पर फिजुलखर्ची का आरोप लगाया…उनका कहना है कि राज्य की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब है…कर्ज के सहारे सरकार कर्मचारियों को वेतन दे रही है ऐसी परिस्थिति में नई विधानसभा से राज्य पर कर्ज का बोझ और बढ़ेगा…बता दें कि गैरसैंण में बनी विधानसभा भवन के नाम पर पहले ही करीब 200 करोड़ खर्च हो चुके हैं। इस भव्य भवन के निर्माण के बावजूद इसका उपयोग साल में महज कुछ ही दिन हो पाता है..सवाल ये है कि क्या धामी सरकार राज्य में फिजुलखर्ची को बढ़ावा देकर गैरसैंण में बनी राजधानी की उपयोगिता को कम करने की कोशिश कर रही थी….

 

उत्तराखंड में नई विधानसभा के निर्माण पर सियासत गरमा गई है। हुआ यूं कि विधानसभा भवन के लिए मिली वन भूमि की एनओसी केंद्र सरकार ने निरस्त कर दी है जिसके बाद देहरादून के रायपुर में प्रस्तावित नई विधानसभा और सचिवालय का निर्माण खटाई में पड़ गया है। इसके लिए दी गई करीब साठ हेक्टेयर वन भूमि हस्तांतरण की सैद्धांतिक मंजूरी केंद्र सरकार ने रद्द कर दी है। इसके पीछे मंजूरी की शर्तों का समय पर और ठीक तरह से अनुपालन ना करने को वजह बताया गया है। वहीं केंद्र के इस फैसले के बाद राज्य में सियासत गरमा गई है। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने केंद्र के फैसले का स्वागत किया है। साथ ही सरकार पर फिजुलखर्ची का आरोप लगाया है। वहीं राज्य के शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल का कहना है कि कांग्रेस सरकार के समय रायपुर में नई विधानसभा के निर्माण का फैसला लिया गया था

आपको बता दें कि राज्य सरकार की रायपुर में थानो रोड पर स्पोर्ट्स कॉलेज के पास नई विधानसभा, सचिवालय, मंत्रियों के आवास और कार्यालय बनाने की योजना है। इसके लिए फरवरी 2014 में सरकार ने रायपुर रेंज की 59.9 हेक्टेयर वन भूमि राज्य संपदा विभाग को ट्रांसफर करने का प्रस्ताव केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भेजा था। जिसके आधार पर केंद्र ने फरवरी 2016 में इसके लिए सैंद्धांतिक मंजूरी दे दी। इसके साथ ही राज्य से फेज वन की विधिवत मंजूरी के लिए सैद्धांतिक मंजूरी की शर्तों के अनुपालन का प्रस्ताव मांगा। लेकिन सरकार की ओर से करीब पांच साल बाद 2022 में इसका प्रस्ताव केंद्र को भेजा गया। इसका परीक्षण करने पर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भी पाया कि प्रस्ताव बिना नियत जगह चिन्हित किए भेजा गया है। प्रस्ताव में देरी और नियत जगह चयन ना होने के आधार पर केंद्र ने 2016 में दी गई लैंड ट्रांसफर की सैद्धांतिक मंजूरी रद्द कर दी..जिसके बाद विपक्ष अब सत्तापक्ष पर हमलावर हो गया है

 कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव से पहले देवभूमि उत्तराखंड में राजधानी का मुद्दा गरमा गया है। एक तरफ जहां गैरसैँण में विधानसभा के निर्माण पर 200 करोड़ से ज्यादा खर्च के बावजूद सरकार इसका उपयोग नहीं कर पा रही है तो दूसरी ओर रायपुर में धामी सरकार नई विधानसभा, सचिवालय, मंत्रियों के आवास और कार्यालय बनाने की योजना बना रही है…हांलाकी केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने एनओसी को निरस्त कर दिया है। ऐसे में सवाल ये है कि उत्तराखंड में तीसरे विधानसभा भवन की जरूरत क्यों है?

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