उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दल तैयारियों में जुटे हैं। चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दलों की ओर से विकास के दावे और वादे भी जनता से किए जा रहे हैं। लेकिन प्रदेश की जनता बार-बार किए जा रहे वादों से परेशान होकर अब लोकसभा चुनाव के बहिष्कार का मन बना चुकी है। जिससे सत्ताधारी दल की टेंशन बढ़ गई है। आपको बता दें कि डोईवाला विधानसभा के सनगांव में सड़क नहीं होने से ग्रामीण परेशान हैं। ऐसे में ग्रामीणों ने लोकसभा चुनाव के बहिष्कार का एलान किया है,साथ ही गांव में बोर्ड लगातार नेताओँ से वोट मांगने गांव में ना आने की अपील भी की जा रही है। ग्रामीणों के इस ऐलान के बाद आनन फानन में अधिकारी ग्रामीणों के पास पहुंचे और उन्हें समझाया, लेकिन ग्रामीण अपनी मांगों पर अड़े हैं। ग्रामीणों की ओर से चुनाव बहिष्कार के पीछे की बड़ी वजह यह है कि ग्रामीण बीते लंबे समय से पक्की सड़क की मांग कर रहे हैं। साल 2017 में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी सड़क बनाने की घोषणा की थी. मगर अभी तक ग्रामीणों को पक्की सड़क की सौगात नहीं मिल पाई है। अब सनगांव के ग्रामीणों ने अपने गांव की सीमा पर सड़क नहीं तो वोट नहीं, और लोकसभा चुनाव 2024 पूर्ण बहिष्कार का बैनर लगा दिया है, ग्राम प्रधान हेमंती रावत ने बताया कि ग्रामीण पिछले लंबे समय से सूर्याधार पुल से सन गांव 4 किलोमीटर सड़क के डामरीकरण, सनगांव नाही कला 8 किलोमीटर सड़क निर्माण, ढटोली बैंड से रानीखेत 1 किलोमीटर की सड़क निर्माण की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार की ओर से ग्रामीणों की आवाज नहीं सुनी जा रही है। बरसात के समय में ग्रामीणों का शहर से संपर्क टूट जाता है। जिसके चलते गांव से ग्रामीण पलायन कर रहे हैं। और जो नेता हमारे गांव में वोट मांगने आएगा, उनको गांव की सीमा से वापस भेजा जाएगा। जब तक हमारी सड़क नहीं बनेगी, तब तक हम वोट का बहिष्कार करते रहेंगे। आपको बता दें कि प्रदेशभर में मूलभूत सुविधाओँ के लिए लोगों को संघर्ष करना पड़ रहा है। अभी हाल ही में उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण और थराली प्रखंड़ की सीमा विनायकधार में 5 किलोमीटर सड़क के लिए ग्रामीणों ने जंगल में धरना प्रदर्शन कर सरकार को चेताने का काम किया। वहीं इन्ही मूलभूत सुविधाओँ के अभाव में पहाड़ के पहाड़ खाली हो रहे हैं। लोग बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के लिए पहाड़ छोडने को मजबूर है सवाल ये है कि डबल इंजन की रफ्तार से विकास का दावा करने वाली भाजपा आखिर सनगांव के ग्रामीणों की सड़क निर्माण की मांग पूरी क्यों नहीं कर रही है। क्या ग्रामीणों का चुनाव बहिष्कार भाजपा के लिए चुनाव से पहले खतरे की घंटी तो नहीं है
लोकसभा चुनाव से पहले उत्तराखंड भाजपा की टेंशन ग्रामीणों के चुनाव बहिष्कार ने बढ़ा दी है। दअरसल डोईवाला विधानसभा के सनगांव में सड़क नहीं होने से ग्रामीण परेशान हैं। ऐसे में ग्रामीणों ने लोकसभा चुनाव के बहिष्कार का एलान किया है,साथ ही गांव में बोर्ड लगातार नेताओँ से वोट मांगने गांव में ना आने की अपील भी की जा रही है। ग्रामीणों के इस ऐलान के बाद आनन फानन में अधिकारी ग्रामीणों के पास पहुंचे और उन्हें समझाया, लेकिन ग्रामीण अपनी मांगों पर अड़े हैं। ग्रामीणों की ओर से चुनाव बहिष्कार के पीछे की बड़ी वजह यह है कि ग्रामीण बीते लंबे समय से पक्की सड़क की मांग कर रहे हैं। साल 2017 में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी सड़क बनाने की घोषणा की थी. मगर अभी तक ग्रामीणों को पक्की सड़क की सौगात नहीं मिल पाई है। अब सनगांव के ग्रामीणों ने अपने गांव की सीमा पर सड़क नहीं तो वोट नहीं, और लोकसभा चुनाव 2024 पूर्ण बहिष्कार का बैनर लगा दिया है
आपको बता दें कि राज्य को बने 23 साल से ज्यादा का समय हो गया है। लेकिन आज भी पहाड़वासियों को मूलभूत सुविधाएँ के लिए परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है…बेहतर सड़क, शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य सुविधाओँ के अभाव में पहाड़ों से पलायन लगातार जारी है। पलायन आयोग की रिपोर्ट की माने तो उत्तराखंड में हर रोज औसतन 230 लोग पहाड़ से पलायन कर रहे हैं। जबकि 2018 से पहले तक यह आंकड़ा 138 था। रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड में वर्ष 2008 से 2018 के बीच कुल 5,02,717 लोगों ने पलायन किया। जबकि पलायन आयोग के गठन के बाद 2018 से 2022 के बीच बीते चार वर्षों में ही यह आंकड़ा 3,35,841 पहुंच गया है…बेहतर सड़क, शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य सुविधाओँ के अभाव में पहाड़ों से पलायन लगातार जारी है…वहीं राज्य में सड़क के मुद्दे पर सियासत गरमा गई है।
कुल मिलाकर एक तरफ जहां चुनाव आयोग लोगों से अधिक से अधिक मतदान की अपील कर रहा है. तो दूसरी ओर ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाओँ के लिए चुनाव बहिष्कार का फैसला लेना पड़ रहा है। सवाल ये है कि डबल इंजन की रफ्तार से विकास का दावा करने वाली भाजपा आखिर सनगांव के ग्रामीणों की सड़क निर्माण की मांग पूरी क्यों नहीं कर रही है। क्या ग्रामीणों का चुनाव बहिष्कार भाजपा के लिए चुनाव से पहले खतरे की घंटी है।