रिपोर्ट – सुनील शर्मा
जयपुर – राज्यपाल कलराज मिश्र और मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा की उपस्थिति में राजस्थान का 75वां स्थापना दिवस पर मनाया गया, जिसमें कलाकारों ने राजस्थानी संस्कृति के रंग बिखेरे | इस इस खास अवसर पर राजस्थान के राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं।
राजस्थान का 75वां स्थापना दिवस
बता दें कि 30 अप्रैल वर्ष 1949 में 19 रियासतों और 3 ठिकाने को मिलाकर ‘राजस्थान’ की स्थापना हुई थी,जिसमें कि करीब साढ़े आठ साल का समय लगा था |आजादी से पहले इसे ‘राजपूताना’ के नाम से जाना था, लेकिन साथ 7 चरणों में रियासतों का एकीकरण पूरा होने के बाद इसका नाम ‘राजस्थान’ रखा गया|
नाट्य की प्रस्तुतियों में राजस्थान की संस्कृति का गौरव गान किया प्रस्तुत
आपको बता दें कि राजभवन में शनिवार को राजस्थान का स्थापना दिवस समारोह बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। राज्यपाल कलराज मिश्र, मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा, उप मुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा सहित प्रदेश के विभिन्न पंथ, मजहब के लोग, गणमान्य जन विशेष रूप से उपस्थित रहे। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के कलाकारों ने इस दौरान गीत, नृत्य, लोक नाट्य की प्रस्तुतियों में राजस्थान की संस्कृति का गौरव गान किया। कलाकारों ने समारोह में राम—वंदना करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की मनोहारी छवि से भी साक्षात् कराया। आरंभ में राज्यपाल कलराज मिश्र ने राजस्थान निर्माण के विभिन्न चरणों, रियासतों के एकीकरण से बने आधुनिक राजस्थान और यहां के लोगों की जीवटता की चर्चा करते हुए राजस्थान में सात वार और नौ त्योहार की संस्कृति की भी विशेष रूप से चर्चा की। उन्होंने कहा कि उत्सवधर्मिता में यहां के लोगों ने विषम भौगोलिक परिस्थितियों में भी जीते हुए अभावों में भी पर्व, तीज—त्योंहार और संस्कृति के भाव भरे है।
राजस्थान भक्ति और शक्ति का संगम प्रदेश है – कलराज मिश्र (राज्यपाल)
उन्होंने राजस्थान की पर्यटन विरासत को महत्वपूर्ण बताते हुए ‘पधारो म्हारे देश’ की मनुहार के जरिए यहां के चित्ताकर्षक पर्यटन स्थलों पर पर्यटक आमंत्रण के अधिकाधिक प्रयास करने पर भी जोर दिया। राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि राजस्थान भक्ति और शक्ति का संगम प्रदेश है। उन्होंने महाराणा प्रताप के शौर्य, भामाशाह की दानवीरता, पन्नाधाय के बलिदान को स्मरण करते हुए कहा कि गौरवमय राजस्थान का स्थापना दिवस सद्भाव की हमारी संस्कृति को सहेजने का है। उन्होंने राजस्थान दिवस पर संकल्पित होकर राज्य के सर्वांगीण विकास में सभी की भागीदारी सुनिश्चित करने पर जोर दिया। राजस्थान स्थापना दिवस की शुरुआत कलाकारों ने पारंपरिक राजस्थानी वाद्य यंत्रों के मेल से लंगा, मांगणियार द्वारा बनाई मधुर धुन “डेजर्ट सिंफनी” में सजे “निबुड़ा” गीत से की। इसमें सिंधी सारंगी, मोरचंग, अलगोजा, खड़ताल, मंजीरा, झांझ आदि का माधुर्य लुभाने वाला था। इसके बाद जयपुर घराने के कथक नृत्य में गणेश वंदना की गई। संस्कृति की विभिन्न छवियों संग बाद में कलाकारों ने पश्चिमी राजस्थान के प्रसिद्ध आंगी गैर की भाव—भरी प्रस्तुति दी। इसमें कलाकारों ने वृताकार घेरे में ढोल थाली की थाप पर हाथ में छड़ियां लिए पारंपरिक परिधानों में गैर खेली।
कलाकारों ने लोक गीतों संग नृत्य की मोहक छटाएं बिखेरी
राजस्थान का पारम्परिक घूमर नृत्य और भवाई प्रस्तुत करते कलाकारों ने जहां लोक गीतों संग नृत्य की मोहक छटाएं बिखेरी वहीं सहरिया स्वांग के अंतर्गत कलाकारों द्वारा बॉडी पेंट लगाकर सिर पर पत्तियां ओढ़े आदिवासी करतब किया । राजस्थान के पार्मरिक सपेरा समुदाय द्वारा किया जाने वाला कालबेलिया नृत्य के अंतर्गत कलाकारों का अंग विन्यास चकित करने वाला था। कलाकारों ने प्रकृति और जीवन से जुड़े सरोकारों में राजस्थान की धरती से जुड़े शृंगार की इस दौरान भावाभिव्यक्ति की। मयूर नृत्य के अंतर्गत कलाकारों ने जहां भगवान श्री कृष्ण और राधा के अलौकिक प्रेम को दर्शाया वहीं फिनाले के अंतर्गत राम-वंदना कर भगवान राम के पावन स्वरूप और उनके जीवन चरित्र का विरल गान किया। राजस्थान स्थापना दिवस पर एक घंटे तक चले इस रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम की राज्यपाल कलराज मिश्र और मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने सराहना की। उन्होंने कहा कि कलाएं इसी तरह मन को रंजित कर हमें भाव—संवेदनाओं में जीवंत करती है। पूर्व में राज्यपाल के सचिव गौरव गोयल ने आगंतुकों का स्वागत किया। सभी का आभार राज्यपाल के प्रमुख विशेषाधिकारी गोविन्द राम जायसवाल ने जताया।