रिपोर्ट – मोहसिन खान
गोंडा – जिला अस्पताल भले ही राज्य चिकित्सा महाविद्यालय का हिस्सा बन गया हो लेकिन स्वास्थ्य व्यवस्थाएं सुधरने का नाम नहीं ले रही हैं। सिर में चोट लगने वाले मरीजों को सस्ती जांच के लिए अस्पताल में 1.5 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित की गई सीटी स्कैन मशीन पिछले 2 साल से खराब पड़ी धूल फांक रही है।
मरीजों को बाहर से करवानी पड़ रही महंगी जांच
बता दें कि प्रतिदिन लगभग 200 से 300 मरीज मेडिकल कॉलेज में उपचार कराने आते हैं, जिसमें से औसतन 100 से 200 मरीजों को सीटी स्कैन कराने का परामर्श दिया जाता है। अस्पताल के क्षेत्रीय निदान केंद्र में सीटी स्कैन की सुविधा मात्र 500 रुपये शुल्क जमा करने के बाद मिल जाती थी, लेकिन यहां की सीटी स्कैन मशीन दो साल से ही खराब पड़ी है। जिससे मरीजों को बाहर से महंगी जांच करवानी पड़ रही है| बाहर निजी सेंटरों पर सीटी स्कैन की जांच के लिए 2500 से 3000 रुपये तक चुकाने पड़ रहे हैं। मशीन खराब होने के कारण मरीजों को हर रोज औसतन 5 से 6 लाख रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। वहीं जिम्मेदार सिर्फ एजेंसी को पत्र लिखने की बात कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं।
अस्पताल प्रशासन की बेपरवाह अंदाज से नहीं मिल पा रहा मरीजों को बेहतर इलाज
जिला अस्पताल मे ज्यादातर लोग इस उम्मीद से आते है कि बेहतर और निशुल्क इलाज हो सके लेकिन अस्पताल प्रशासन की बेपरवाह अंदाज से ना ही मरीजों को बेहतर इलाज मिल पा रहा है और ना ही सरकारी तंत्र का लाभ सालों से ख़राब पड़ी सिटी स्कैन मशीन महज़ शोपीस बना हुआ जिसका खामियाजा आम जनता को उठाना पढ़ रहा है |आखिरकार 2 साल से ख़राब पड़ी सिटी स्कैन मशीन को क्यों नहीं बन पा रहीं है? ऐसे मे डिप्टी सीएम बृजेश पाठक को मामले पर संज्ञान लेकर लापरवाह लोगों पर कार्रवाई कर एक नजीर पेश करना करना चाहिए जिससे उत्तर प्रदेश इस तरह की लापरवाही ना मिले और सरकारी तंत्र का लाभ मरीजों को मिल सके।