देहरादून- पहाड़ी बोली परंपराओं और संस्कृति के संरक्षण पर हमेशा से ही जोर दिया जाता है। अनेक कार्यक्रमों के माध्यम से संस्कृति संरक्षण की बात पर जोर दिया जाता है। देहरादून में आयोजित मातृभाषा उत्सव में उत्तराखंड की मातृभाषा के संरक्षण पर जोर दिया गया। कार्यक्रम में आए अनेक कवियों ने कविता और अपनी रचनाओं के माध्यम से बोली भाषा को बचाने की अपील की।
बीते मंगलवार को हिम कलश उत्तराखंड और कलश लोक संस्कृति चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से छह नंबर पुलिया पर शुभारंभ वाटिका में मंगलवार को देर शाम मातृभाषा उत्सव मनाया गया। कार्यक्रम में उत्तराखंड की संकटग्रस्त क्षेत्रीय भाषाओं और मातृ भाषाओं के संरक्षण पर दिया गया। वहीं हिम कलश की थीम गीत की प्रस्तुति दी गई। गढ़वाली, कुमाउनी,जौनसारी,जाड,बोकसा,रं,माछ्र्या बंगाणी,जोहारी रंवाल्टी थारू समेत 11 मातृभाषाओं का परिचय और इन बोली भाषाओं में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में बतैर मुख्य अतिथि गढ गौरव नरेन्द्र सिंह नेगी ने कहा कि मातृभाषाओं के संरक्षण के लिए ऐसे ही प्रयास जरूरी है और नई पीढी तक हमारी बोली भाषा को पहुंचाने के लिए हम सबको जागरूक होना ही पडे़गा। दून विवि के कुलपति प्रो सुरेखा डंगवाल ने कहा कि उच्च शिक्षा में मातृभाषा के लिए पाठ्यक्रम निर्धारित होने से उनका संरक्षण और संवर्धन संभव है।