डिजिटल डेस्क- दिल्ली दंगा (2020) से जुड़े बड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को अहम सुनवाई हुई। अदालत में शरजील इमाम, उमर खालिद, मीरान हैदर और गुल्फीशा फातिमा समेत कई आरोपियों की जमानत याचिकाओं पर चर्चा हुई। जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन. वी. अंजिरिया की पीठ ने दलीलें सुनने के बाद सुनवाई को 3 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दिया। गुल्फीशा फातिमा की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत से कहा कि “फातिमा को जेल में बंद हुए 5 साल 5 महीने हो चुके हैं। चार्जशीट 16 सितंबर 2020 को दाखिल की गई थी, लेकिन इसके बाद से हर साल एक ‘पूरक चार्जशीट’ दायर की जा रही है मानो यह कोई वार्षिक अनुष्ठान बन गया हो। सिंघवी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सिद्धांतों के अनुसार फातिमा को समानता के आधार पर जमानत मिलनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि “वह एक महिला हैं और इतने लंबे समय से जेल में बंद हैं, इसलिए इस पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
अब तक पेश हो चुके 939 गवाह
सिंघवी ने यह भी बताया कि अक्टूबर 2024 तक करीब 939 गवाह पेश किए जा चुके हैं, जबकि आरोप तय होने की प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हुई है। उन्होंने कहा, “यहां गुण-दोष का सवाल नहीं है, बल्कि यह न्याय में देरी का मामला है।” वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने उमर खालिद की तरफ से पैरवी करते हुए कहा कि “दंगों के समय उमर दिल्ली में मौजूद ही नहीं था। अगर वह वहां नहीं था, तो उसे इस साजिश से कैसे जोड़ा जा सकता है?
उन्होंने यह भी कहा कि मामले में कुल 751 एफआईआर दर्ज की गई हैं, लेकिन खालिद को केवल राजनीतिक कारणों से एक मामले में आरोपी बनाया गया।
शरजील इमाम की दलील
शरजील इमाम की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने कहा कि अभियोजन पक्ष को जांच पूरी करने में तीन साल लग गए, जिसके चलते मुकदमे की सुनवाई आगे नहीं बढ़ सकी। उन्होंने तर्क दिया कि जांच को अनिश्चितकाल तक जारी रखकर अभियुक्तों को जेल में रखना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। वहीं, दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा कि “2020 के दंगे कोई अचानक भड़की हिंसा नहीं थे, बल्कि यह एक संगठित साजिश थी, जिसका उद्देश्य केंद्र सरकार को अस्थिर करना और देश में अराजकता फैलाना था। पुलिस ने कहा कि देशभर में हिंसा फैलाने की कोशिश की गई थी और इसे सत्ता परिवर्तन की योजना के तहत अंजाम दिया गया।
हाईकोर्ट पहले कर चुका है जमानत से इनकार
इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट सभी आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर चुका है। अदालत ने कहा था कि नागरिकों को विरोध का अधिकार है, लेकिन प्रदर्शन की आड़ में हिंसा या षड्यंत्र किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है।