निकाय चुनावों की हलचल ख़त्म होते ही यूपी की सियासत लोकसभा चुनावों की तरफ करवट लेने वाली है. सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने जातीय जनगणना का जो मुद्दा उठाया है, उसकी काट खोजने में भाजपा की पूरी मशीनरी लगी हुयी है. जातीय जनगणना के मुद्दे पर कांग्रेस नेता राहुल गाँधी भी विपक्ष के सुर से सुर मिला रहे हैं और अब कमोबेश पूरे देश में ये एक बड़ा मुद्दा बन रहा है. कर्नाटक चुनावों के दौरान राहुल ने जितनी आबादी, उतना हक़ का नारा लगाया तो यह साफ़ हो गया कि राहुल इस मुद्दे पर लोहिया और कांशीराम के सिद्धांतो के साथ खड़े हो गए हैं.
यूपी के सीएम योगी आदित्य नाथ इस मामले को दूसरे तरीके से मोड़ने की कवायद में लगे हैं. यूपी के चार लाख से अधिक प्राईमरी शिक्षकों के जरिये सूबे में परिवार सर्वेक्षण का काम शुरू हो चुका है. इस सर्वे में हर परिवार , उसकी जाति और आर्थिक, शैक्षणिक स्थिति की जानकारी जुटाई जा रही है. सर्वे को 31 जुलाई तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. जानकारों का कहना है कि इस सर्वे के बाद प्रदेश में सामाजिक सुरक्षा की कुछ नयी योजना की शुरुआत कर के एक बड़ी आबादी को लाभार्थी समूहों में बदला जाएगा. भाजपा के लोग इसे योगी का ट्रंप कार्ड बता रहे हैं. यूपी में सबसे बड़ी आबादी ओबीसी समुदाय की है और इस वोट बैंक को लुभाने के लिए यह कदम कारगर हो सकता है. इस डाटा का उपयोग भाजपा नया लाभार्थी वर्ग तैयार करने में करेगी.
इस सर्वे में अब तक मिल रही सरकारी सहायता के आंकड़े भी शामिल किये जा रहे हैं और उन्हें या सहायता लगातार मिल रही है या नहीं यह भी पता किया जा रहा है. अधिकारियों का कहना है कि सर्वे के परिणामों के आधार पर सरकार उन लोगों को भी वजीफा या पेंशन जैसी सहायताएँ देगी जो अब तक इससे वंचित रहे हैं.हालाकिं विपक्ष सरकार की इस बात से सहमत न हो कर इसमें राजनितिक फायदे देख रहा है. समाजवादी पार्टी का कहना है कि इस सर्वे का असली उद्देश्य जातियों को उनका अधिकार दिलाना नहीं बल्कि सरकारी सहायताओं के जरिये ओबीसी और दलित समुदाय को अघोषित रिश्वत देना है. सपा का कहना है कि समग्र विकास और अधिकार की जगह भाजपा इस समूह को लाभार्थी बना कर उनकी आवाज दबाना चाहती है ताकि लोगों को सरकार की खैरात बाटकर लोगों का वोट लिया जा सके. उत्तर प्रदेश में शिक्षा से ले कर पेंशन तक कई ऐसी योजनाएं चल रही हैं जिसमें गरीब और आरक्षित वर्ग के लोगों को सरकार द्वारा सहायता दी जा रही है मगर अब ये योजनाएं राजनीतिक अखाड़े में नए दांव के तौर पर सामने आएँगी.