बागपत अदालत के ऐतिहासिक फैसले के बाद छावनी में तब्दील हुआ लाक्षागृह

रिपोर्ट –  कुलदीप पंडित

उत्तर प्रदेश  – बागपत की अदालत ने 5 फरवरी को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए महाभारत कालीन टीले को लाक्षागृह मानते हुए यह ऐतिहासिक फैसला अदालत ने हिंदुओं के पक्ष में सुनाया है| जिसमें टीले की 108 बीघा भूमि का स्वामित्व हिन्दू पक्ष को दिया गया है| वर्ष 1970 से इस मामले की सुनवाई चल रही थी |

अदालत ने प्राचीन टीले को लाक्षागृह ही माना है। मुस्लिम पक्ष के प्राचीन टीले पर बदरुद्दीन की दरगाह और कब्रिस्तान होने के दावे को खारिज कर दिया है। ज्ञानवापी के बाद हिन्दू पक्ष को बरनावा के लाक्षागृह के हक में फैसला आने के बाद जहां हिन्दू पक्ष में खुशी का माहौल है तो वहीं मुस्लिम पक्ष फैसले के खिलाफ अपील करने का मन बना चुका है। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि हमने तमाम दस्तावेज़ अदालत में पेश कर दिए थे, दस्तावेजों में यहां बदरुदीन के अलावा दो अन्य मज़ारें भी थी और सूफी शेख बदरुदीन ने यहीं से ईमान का प्रचार प्रसार किया था।

लाक्षागृह परिसर के अंदर व बाहर भारी पुलिस बल तैनात

बागपत की एक स्थानीय अदालत ने सोमवार को जिले के ऐतिहासिक टीला ‘महाभारत के लाक्षागृह’ को शेख बदरुद्दीन की दरगाह व कब्रिस्तान बताने वाली मुस्लिम पक्ष की ओर से दायर करीब 54 वर्ष पुरानी याचिका को खारिज कर दिया। अदालत का फैसला आने के बाद शांति व्यवस्था के मद्देनजर लाक्षागृह परिसर के अंदर व बाहर भारी पुलिस बल को तैनात किया गया है| यहां किसी भी बाहरी व्यक्ति के आने जाने पर पूर्ण रोक लगा दी गयी है। बडौत मेरठ मार्ग पर हिंडन नदी के पुल पर भी पुलिस पिकेट बना दी गई है।

क्या था लाक्षागृह और बदरुदीन दरगाह का विवाद

दरअसल 1970 में बरनावा के मुकिद खान ने मेरठ की सरधना तहसील में ब्रह्मचारी कृषदत्त को प्रतिवादी बनाते हुए एक वाद दर्ज कराया था। जिसमें कहा गया था कि बरनावा के टीले पर जहां सूफी शेख बदरुदीन की मजार और अन्य जगह में कब्रिस्तान है। जिनको कृष्णदत्त खुर्द बुर्द कर रहें है। यह मुकदमा दो दशक तक मेरठ की सरधना तहसील में चला उसके बाद बागपत जिले के गठन के बाद ये वाद बागपत स्थानांतरित हो गया। यहाँ भी गवाही और साक्ष्यों का दौर चला, इस मुकदमे में 208 तारीखें लगी| फैसला आने के बाद प्रशासन ने भी मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए लाक्षागृह पर भारी फोर्स तैनात कर दी और अधिकारी पल पल की जानकारी ले रहें है।

पांडवों का जलाने के लिए बनाया गया था लाक्षागृह

गौरतलब है कि महाभारत काल में दुर्योधन ने पांडवों को जलाने के लिए लाक्षागृह बनाया था| लाक्षागृह को लाख से बनाया गया था| पांडवों को इस साजिश का पता चल गया था| वो सुरंग के ज़रिए बचकर निकल गए थे| जिस सुरंग से पांडव भागे वो आज भी हिंडन नदी के किनारे मौजूद है| बरनावा को ही महाभारत में वर्णित वारणावत माना जाता है| यह हिंडन और कृष्णा नदी के संगम पर बसा है| बरनावा गांव में दो सुरंगें हैं, जिनसे लाक्षागृह होने के सबूत मिलें हैं|

खुदाई में मिले थे महाभारत काल के साक्ष्य

मुस्लिम पक्ष का दावा है कि यहां उनके बदरुद्दीन नामक संत की मजार थी। इसे बाद में हटा दिया गया। यहां उनका कब्रिस्तान है। इसी विवादित 108 बीघे जमीन पर पांडव कालीन एक सुरंग है। दावा किया जाता है कि इसी सुरंग के जरिए पांडव लाक्षागृह से बचकर भागे थे। इतिहासकारों का दावा है कि इस जगह पर जो अधिकतर खुदाई हुई है। उसमें को साक्ष्य मिले हैं। वे सभी हजारों साल पुराने हैं, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि यहां पर मिले हुए ज्यादातर सबूत हिंदू सभ्यता के ज्यादा करीब है। मुस्लिम पक्ष के दावे पर हैरानी जताई जाती रही है। इसी जमीन पर गुरुकुल एवं कृष्णदत्त आश्रम चलाने वाले आचार्य का कहना हैं कि कब्र और मुस्लिम विचार तो भारत मे कुछ समय पहले आया, जबकि पहले हजारों सालों से ये जगह पांडवकालीन है।
लाक्षागृह की वर्ष 1952 में एएसआई की देखरेख में खुदाई शुरू हुई थी। खुदाई में मिले अवशेष दुर्लभ श्रेणी के थे। खुदाई में 4500 वर्ष पुराने मिट्टी के बर्तन मिले थे। महाभारत काल को भी इसी काल का माना जाता है। लाक्षागृह टीला 30 एकड़ में फैला हुआ है। यह 100 फीट ऊंचा है। इस टीले के नीचे एक गुफा भी मौजूद है।

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